Thursday, May 7, 2015

राज्यसभा की सीट की सुपारी में क्या क्या सितम होगा आम आदमी पार्टी पर। कुमार के संबंध नई कड़ी है। मीडिया की सुपारी केजरीवाल खा रहे है।

"भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!"
कुमार विश्वास अपने को सदी का सबसे बड़ा कवि मानते है ये मैं नहीं कह रहा हूं आपको उनकी साईट्स पर जाकर पता चल जाएंका कि इससे कम उनमें कुछ भी नहीं। उन्होंने कविता की दिशा और दशा बदल दी। वन मैन चैंज्ड द फेस ऑफ पोएट्री। पूरी दुनिया में 3140 शो किए है। यानि लगातार दस साल तक की अवधि है कुल मिलाकर। इसके अलावा 8380 घंटे तक इन्होंने मुस्कान बिखेरी है। खैर कविताओं का स्तर क्या है ये तो कोई आलोचक ही बता सकता है लेकिन अभी तक कोई प्रतिभाशाली आलोचक इनकी किताब को पढ़ने को तैयार नहीं हुआ है लेकिन एक बार पूछने पर उन्होंने जवाब दिया था कि दुनिया को कबीर और तुलसी को समझने में 300 साल लगे थे। खैर छो़ड़िये वो तो इनका धंधा है उस पर हम लोगों को कुछ कहने का हक नहीं है। लेकिन सार्वजनिक जीवन में इनकी छवि टीवी से निर्मित छवि है। टीवी पर आप अगर किसी शोहदे को देखना चाहते है तो इनमें आराम से देख सकते है। गले के दो बटन खोल कर गले में लटकी मोटी सोने की चेन, हाथों की उंगुलियों में मोटी अगूठियां और हाथ में जो ब्रेसलेट होता है शायद वो भी सोने का ही होगा। ये इनकी आम दर्शनीय छवि थी नेता के कपड़े पहनने तक। कई बूार टीवी चैनलों पर देखा होगा। लेकिन राहुल गांधी को चुनौती देते वक्त गांव गांव घूमते ये किसको घुमा रहे है इस पर किसी बाहर के आदमी की नजर नहीं पड़़ी। न ही मीडिया ने इस पर कोई सवाल उठाया जिसको ये रात दिन पानी पी पी कर कोसते है। क्योंकि मीडिया की नजर सिर्फ इनकी कविताओं और चुनौती पर थी। लेकिन इन्हीं की पार्टी के लोगों ने अपने चक्षु खोल रखे थे। लेकिन सब कुछ कही सामने नहीं आया । क्योंकि इनकी पार्टी के खैरख्वाह इंतजार कर रहे थे कि कब उपयुक्त मौका आए और इनपर वार किया जाए। काफी जुबानदराज नेता है किसी को जुबानदराजी में टिकने नहीं देते। और उसमें सिर्फ आदर्श की कहानियां होती है। क्योंकि इनकी कहानियों के उलट इनके मंच के साथी भी ऐसी बहुत सी कहानी सुनाते है। लेकिन चुनाव में दिल्ली में भारी बहुमत मिला। केजरीवाल ने अपने विरोधियों को पिछवाड़े पर लात मार कर बाहर कर एकमात्र बुद्धिमान का खिताब हासिल कर लिया। जनता ने पांच साल केजरीवाल पर वोट दिया था इस बात का पूरा इस्तेमाल कर पार्टी का मतलब सिर्फ केजरीवाल साबित कर दिया। यहां तक तो कोई बात नहीं थी। लेकिन विधायकों के इतने बहुमत से एक मुसीबत खड़ी हो गई और वो थी कि तीन राज्यसभा सीट पर कौन जाएंगा। अनार तीन और बीमार तीस। तब तो हल्ला मचना ही था। फिर ठिकाने लगाने का काम शुरू हुआ। एक सीट तो पक्की थी और है वो अनूप सांडा के महान चमचे को मिलनी तय है। दूसरी सीट पर एक अल्पसंख्यक या महिला का दावा था। तीसरी सीट पर आशुतोष, आशीष और कुमार के बीच में कांटे की टक्कर थी। आशीष ने जितनी तेजी से हाईकमान को अपने कब्जें में किया उससे दोनो चेहरे बड़े मायूस हुए। लेकिन चाल और कुचाल तो हिस्से है राजनीति के। शुरूआत हुई पहले एक अफवाह चली कि कुमार विश्वास का स्टिंग्स हुआ था अमेठी में। अफवास से सनसनी पैदा हुई। सरकार के पिट्ठूओं ने वीडियोऔर ऑडियोंकी तलाश में अमेठी के स्कूल, कॉलिज सब छान मारे लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। और एक दिन अचानक एक खत सामने आ जाता है वो भी ऐसा जिसमें कथित तौर पर कुमार साहब के रंगीले पन की कहानी बताईं गई थी। लेकिन उस पर कुमार साहब खेल गए। हल्ला हुआ और सारा दोष उन लोगो पर मढ़ दिया गया जो केजरी के निशाने पर थे। खैर विरोधी साफ हुए और ये वार भी साफ हो गया। और अचानक एक ऐसी महिला इस देश के इतिहास में पहली बार एक अजीब मांग लेकर पब्लिक के सामने नुमाया हुई जो अब तक न देखी गई और न सुनी गई। एक महिला मांग करती है कि सोशल मीडिया पर उसकी बदनामी हो रही है और कुमार विश्वास की पत्नी करा रही है जिससे उसकी जिंदगी खराब हो गई है। लिहाजा कुमार विश्वास मीडिया के सामने आकर सफाई दे कि उसके अवैध रिश्तें कुमार साहब के साथ नहीं थे। गजब का आरोप। गजब का खेल। इतनी शानदार स्क्रिप्ट की कुमार की सारी कविताएँ फेल हो गई। एक महिला जो कोई आरोप नहीं लगा रही है लेकिन कह रही है आप दुनिया को कहो कि हमारे आपसे कोई रिश्ते नहीं है। गजब का मेलोड्रामा। जिसने भी लिखा खूबसूरती से लिखा।अब कुमार साहब इससे निबटे।और जिस तरह से क्रम बनता आ रहा उससे दिख रहा है कि पहले अफवाह फिर खत और अब एक कथित पीड़ित और फिर उम्मीद करनी चाहिए कि ओर कुछ भी भी आस्तींनों में छिपा हुआ है। जो मौका मिलते ही जनता को नुमाया होगा। आशुतोष जी जुबान के शिकार हो रहे हैलगातार जाने क्या-क्या लग रहा उन्हे और वो क्या समझ रहे हैऔर फिर जाने क्याक्या कह रहे है। ऐसे में कुमार साफ और आशुतोष हाफ लेकिन आशीष खेतान साहब पूरे है। केजरीवाल की आंख के तारे है और पार्टी को भी प्यारे है क्योंकि केजरीवाल के दिल की करक प्रशांत भूषण परिवार को देख लेने में लगे है। यानि एक तरफ छवि भी बनी है दूसरी और अरविंद केजरीवाल के सुनहरे साए भी बन गए है। लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी है। कुछ दिन पहले आशुतोश की जुबान फिसलने पर लिखा था कि राज्यसभा सीट का दबाव जाने क्या कहलाएंगा और कराएंगा। ये उसी की एक कड़ी है दोस्तों अभी आगे आगे देखिए और दिखता है क्या क्या। आम आदमी पार्टी की नाटक मंडली के षडयंत्रकारियों के पास जनता के मनोरंजन का पूरा मसाला मौजूद है।
लिखना तो नहीं चाहिए क्योंकि अरविंद केजरीवाल को फिर किसी ने खुफिया खबर दी है कि मीडिया ने उनकी आम आदमी पार्टी की सुपारी ले ली है। ये केजरीवाल है बहुत शरीफ आदमी है। और बदमाश मीडिया इन बेचारे की गाय खोलने में लगा है।

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