सलमान खान को जमानत मिल गई। मिलनी ही चाहिए थी। आखिर एक ब्रांड जेल में कैसे रह सकता था। कई लोग बिके होंगे। मालूम नहीं। सबूत नहीं। जरूरत भी नहीं। क्योंकि सबूत वाहं है ही नहीं। वहां एक दयावान एंग्री यंग मैन रहता है। जिसके शानदार टायर के नीचे कुचलने वाले कीड़ों-मकोंडों के इंसाफ के लिए नहीं बनाई गई है ये ईमारतें। शानदार ब़ॉडी और देश का सबसे बड़ा सिनेमा का ब्रांड आखिर आंखों में आंसू ले आया और मीडिया के ऐंकरों के सीने चाक हो गए। आंखों से लहूं गिर गया। शब्दों की वर्णमाला खत्म कर दी विकिपीडिया से पढ़ कर अपने ऐंकर लिखने वाले प्रोड्यूसरों ने। आखिर खबर इस तरह होनी थी। मां सलमा बेचारी आघात में है। पिता ने क्या किया इस पर भी लंबा-चौंडा व्याखान हो गया। कई चैनलों पर रोते हुए पीडि़त परिवार लग रहा था बनावटी आंसू निकाल रहे है। इसीलिए सलमान के साथ कंधें से कंधा मिलाकर खड़े मीडिया में महारथी सवाल पूछने में लगे थे कि क्या होगा सलमान को सजा दिलाकर क्या इनके पिता वापस आ जाएंगे। बात एक दम दुरूस्त लग रही है। आखिर पैसे वाले आदमी को जेल के पीछे जाकर क्या करना चाहिए। वो बाहर ही अच्छा है। लेकिन कई बार सोचता हूं हो सकता है आपको ये देशद्रोह लगे लेकिन पूछा जा सकता है कि अगर दाऊद इब्राहिम मुंबई बम हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को पैसा दे तो क्या अदालतों के बाहर खड़े हुए लोग इसी तरह उसके समर्थन में नारे लगाएंगे। जरूर हो सकता है। काले कोट पर कुछ भी कहना आफत को न्यौता देना है। देश में अदालत क्या है। इस पर काफी कुछ कहना-सुनना आपको परेशानी में डाल सकता है। 2007-8 में एक वकील साहब ने माई-बाप लोगो को याद दिलाया था कि भाई ऐसे लोगो की तादाद काफी है जो लोअर कोर्ट से सजा पाएँ हुए है लेकिन उनकी अपील दस-दस सालों से पैंडिग है। कई सारे ऐसे केस है जिसमें आदमी जेल में है कोई धणी-धौरी नहीं है। और जेल के सींखचों के पीछे अपनी उम्र गुजार चुके है लेकिन उनकी अपील बेचारों की सुनवाई पर ही नहीं आई । कोई बात नहीं उनकी औकात इतनी नहीं है कि एक पेशी पर 25 लाख रूपए वाले न्याय के मित्रों को खड़े कर सके। दरअसल इनती बात के बावजूद भी अपना गुस्सा उन पर हो ही नहीं सकता आखिर बाबा तुलसीदास बहुत पहले गए कि समरथ को नहीं दोष गुसांई। लेकिन ये देश कितना मजबूर है लोग कानून की औकात कितनी मानते है और बड़े लोगो के कुत्तों को कितनी खुशी होती है दूध और रोटी की कल्पना भर करने से। वो लोग कौन है जिनके लिए सलमान खान के जेल जाना इंसाफ नहीं है। वो कौन लोग है जो उसकी जमानत मिलने के नाम पर यज्ञ करते है, जश्न मनाते है तालियां बजाते है। न्यूज रूम में तालियां बजातेे हुए लोगो का मैं भी साक्षी हूं। इन लोगों के लिए तिरंगे की हैसियत कितनी है। वी द पीपुल और विधि के समक्ष समानता के अधिकार का क्या मतलब है। क्या देश नाम की चीज पर इनका कोई विश्वास है। या फिर ये टीवी के फ्रैम में आने के लिए तरसती हुई फ्रस्ट्रैटेड लोगो की भीड़ है। इन सवालों के जवाब आसान नहीं है लेकिन एक बात तय है कि हत्यारों को भी यहां मसीहा कहने वाले लोगो की कमी नहीं है। और ये भीड़ वो भीड़ भी है जिसके लिए देश का मतलब सत्ता या ताकत या फिर पैसे वाले लोग है। ये भीड़ हजारों सालों से हमलावरों के फेंकें गए टुकड़ों पर जिंदा रहने वाली भीड है, ये वो भीड़ ही हो सकती है जो आज दिन के टुकड़ों के लिए आने वाली नस्लों की आगे पीढ़ियों को गुलाम बनवा देने मे नहीं चूकती। ये वो भीड़ है जो हड़्डी में खून के लालच में हडिड्यों से मसूड़ों को कुचलती हुई भीड़ है। सलमान खान की उस कंपनी को तारीफ मिलनी चाहिए जिसने सोते हुए लोगो को कुचलने वाले एक इंसान को देश में दानी महापुरूष में तब्दील कर दिया। बाकि रही बात उस मुंबईंया दुनिया की जिसकी नैतिकता और देश प्रेम या फिर बाकि कुछ भी अगर जानना है तो उस दुनिया को सिर्फ बोलते हुए सुन लीजिए उनकी औकात का पता चल जाएंगा रोटी के लिए हिंदी के मोहताज लोग हिंदी तो छोड़ों अपनी कोई भी मृातभाषा भी नहीं बोल पाते है और इस बारे में गोवा फिल्म फेस्टीवल के गोवा को चुनने पर वहां के गायक रेमो फर्नांडीज का एक आर्टिकल्स जरूर पढ़ना चाहिए और लेकिन एक भीड़ ऐसी भी जिसको इस जमानत से दुख पहुंचा है उनकी भी कोई निजि दुश्मनी नहीं है सलमान खान से लेकिन उनको लगता है कि देश का कानून (अगर कोई बचता है तो) चांदी के जूते खां खा कर रक्कासाओं की तरह ताकतवर लोगों की महफिल में नाच रहा है। फिर से मेरे पसंदीदा कवि श्रीकांत वर्मा की पंक्तियों का सहारा लेता हूं बात जिन से शुरू की थी उन पर खत्म करने के लिए।......
महामहिम!
चोर दरवाज़े से निकल चलिए !
बाहर
हत्यारे हैं !
चोर दरवाज़े से निकल चलिए !
बाहर
हत्यारे हैं !
बहुक़्म आप
खोल दिए मैनें
जेल के दरवाज़े,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा
खोल दिए मैनें
जेल के दरवाज़े,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा
महामहिम !
डरिए ! निकल चलिए !
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद" !
डरिए ! निकल चलिए !
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद" !
सब के हाथों में
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं,
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब ?
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं,
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब ?
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