Thursday, May 7, 2015

मोदी जी हस्तिनापुर में है और हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं।

"सशोधित रियल एस्टेट विधेयक के कई प्रावधान विल्डरों को रियायत देने वाले नजर आ रहे है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। इसलिए और भी नहीं , क्योंकि आम लोग बिल्डरों की मनमानी से पहले ही त्रस्त है, बिल्डर अपनी परियोजनाओ ं में देरी करने और शर्तों में फेरबदल करने के साथ -सात अन्य तरह की मनमानी करने के लिए कुख्यात हो चुके हैं उनहें रियायत देने की बजाय सख्ती करने की जरूरत है और यदि सरकार के किसी कदम से ऐसा नहीं होता है तो उसे आम आदमी की नाराजगी का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार के पास अपने तर्क हो सकते है लेकि नुसे इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि आखिर क्या कराण है कि एक के बाद एक विधेयक के मामलों मेंयही सामने आ रहा है कि आम जनता के हितों की अपेक्षित चिंता नहीं की जा रही है। रियल एस्टेट विधेयक में एक दर्जन से अधिक बदलवा कई सवाल खड़े कर रहे है। असबसे ज्यादा आपत्ति जुर्माने के प्रावधान को कथित तौर पर हल्का करने और नक्शे में फेरबदल की रियायत देने को लेकर है ।"
ये किसी सरकार विरोधी चश्मे को आंखों पर चढ़ाएँ हुए पत्रकार या फिर दूसरी पार्टी के नेता का बयान नहीं है बल्कि ये उस अखबार का एडिटोरियल का हिस्सा है जो भारतीय जनता पार्टी का मुखपत्र बन चुका है। जिसके पॉलिटिकल एडीटर पप्पू के एक बयान के बाद फ्रंट पेज पर सवाल दागते है या फिर सरकार के प्रवक्ता के तौर पर लिखते है। दरअसल ये सरकार तीन बड़े महान आदमियों को समर्पित है। एक है गड़करी साहब जिनके झूठ और सच में अंतर करना इतना मुश्किल है कि कब वो उद्योगपतियों के यॉट पर घूम आते है और उसे व्यक्तिगत बताने लगते है। कभी वो पूर्ति से अपना रिश्ता होने से इंकार कर देते है और फिर कुछ दिन बाद वो उसी पूर्ति को करोड़ों का लोन दिलाने के लिए गारंटी देते है व्यक्तिगत। कभी वो कहते है कि कांग्रेस के प्रोपेगंडा का जवाब देने के लिए मोदी जी ने उनको नियुक्त किया है मानो वो गोयबल्स के परिवार से हो। किसानो के हित रक्षक होने का दावा करने वाले व्यक्ति का किसानों के हक में कुछ भी नहीं सिर्फ जुबान के।
एक और मंत्री है नाम है अरूण जेटली साहब । कई सौ करोड़ के मालिक। और देश के गरीबों की कितनी चिंता करते है। इतनी कि काली कमाई को देश में वापस लाने के लिए लुटेरों को एक और छूट देने के लिए रात दिन बीमार हो जाते है। जाने क्या क्या सोचते है जनता के लिए लेकिन जनता उनको जबरदस्त तमाचा लगाती है अमृतसर के मैदान में। लेकिन वो देश का भाग्य तय कर रहे है।
एक और नाम है जिसको मैं अक्सर देखता हूं कि वो आए-बाएं साए बोलते रहते है। किसानों के लिए पप्पू की आवाज में उन्होंने बताया कि उसको गेंहू और जौं के बीच का अंतर मालूम नहीं। लेकिन इस महान मंत्री का मुंह कभी अरूण जेटली की तरफ नहीं घूमता है जो बेचारे गरीबों की चिंता कर रहे है क्या उन्हें मालूम है कि गरीबी क्या होती है। क्या उन्हें मालूम है दो हजार रूपए में बच्चा बेच कर अगले बच्चें के लिए कपड़ों का इंतजाम करना कैसा होता है। गड़करी से पूछना चाहिए कि विकास नाम का बच्चा कैसे आता है । किसानों को गन्ने के अलावा भी कुछ होता है ये उनसे भी पूछना चाहिए।
पूछने को तो बहुत सी बाते है। लेकिन एक साल पूरा हो रहा है और मोदी सरकार जो बिल लाई है या फिर अध्यादेश वो सब अमीरो और कॉरपोरेट को लूट की छूट दे रहे है। बाकि किसी को बोलने का हक नहीं। जुबानदराजी में इस सरकार और चाटुकारों का कोई तोड़ नहीं है। सालों से यूपीए सरकार में दूसरे दलालों की वजह से अपना इंतजार कर रहे दलाल खुल कर खेल रहे है। कोई ये पूछने को तैयार ही नहीं कि खेतों में नारे लगा रहे किसान तक मोदी जी पहुंचने की फुर्सत कब मिलेंगी। लग रहा है कि जैसे दमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी की परवाह नहीं है। यशोदाबेन आरटीआई लगाते हुए घूम रही है कि उसे किस हैसियत से सुरक्षा दी जा रही है किसी अधिकारी की हिम्मत नहीं हो रही है बता पाएं। देश का गृहमंत्री शर्मिंदा होता है कि प्रधानमंत्री को पहले सूचना दे रहा है गृहमंत्री के अंडर आने वाला डिपार्टमेंट। ऐसी सैकड़ों कहानियां हवा में गूंज रही है लेकिन सबसे बड़ी और दुखद बात है कि कश्मीर में अलगाववादियों को कुचलने की बात करने वाले और उस बल्लियों उछलने वाले भाजपाई दिखाई नहीं दे रहे है जब घाटी में खुलेआम धर्म के नाम पर पाकिस्तान में जाने के नारे लगाए जा रहे है, जब घाटी में पाकिस्तानी झंडे लहराए जा रहे है। और वो पंडित जिनको बसाने के नाम पर घडियाली आंसूओं की इतनी झडी लगाई थी भाजपाईयों ने कि झेलम से बड़ी नदी बन बन कर सूखी होगी वो पंड़ित झूठों के महानायक के सामने बस हाथ बांधें खडे़ है। और अलगाववादी खुलेआम उनको धमकियों से नवाज रहे है। बात बहुत हो सकती है भक्तगणों के विचार के लिए लेकिन श्रीकांत वर्मा की कविता शायद कुछ सही कहने की कोशिश करे ---
हस्तिनापुर का रिवाज--
मैं फिर कहता हूँ\धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा \मगर मेरी\कोई नहीं सुनता!\हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं -\जो सुनते हैं\बहरे हैं या\अनसुनी करने के लिए\नियुक्त किए गए हैं\मैं फिर कहता हूँ\धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा -\मगर मेरी\कोई नहीं सुनता\तब सुनो या\मत सुनो\हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!\हस्तिनापुर में\तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है,\विचार -\और याद रखो\आजकल महामारी की तरह फैल जाता है\विचार।

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