केजरीवाल ने माफी मांग ली। टीवी चैनल्स वाले यही मांग रहे थे। खबर के तमाम क्रिएटिव एंगल खत्म हो चुके थे( जितना दिमाग से काम करता है उस हिसाब से दोहन हो चुका था) पेड़ को किसी ने गवाह बनाया किसी ने पेड के रोने की आवाज सुनी, किसी ने पेड़ का नंबर ही दिखा दिया। और दूसरी और गजेन्द्र के अंतिम संस्कार के मौके पर गए मीडिया के लोगो ने अपनी आवाज में रोने का इंपैेक्ट पैदा किया। कई बार ट्रैनिंग के बाद हासिल प्रतिभा का इस्तेमाल किया। गजेन्द्र के बच्चेें से ज्यादा रोने की असफल कोशिश की। कई बार नाराजगी हुई होगी शायद बिसलरी मिली या नहीं किसी अगली रिपोर्टिंग पर जब इस रिपोर्टिंग के एक्सपीरियंस शेयर करेंगे। लेकिन इस पूरी कवायद में अगर किसी आदमी की सबसे ज्यादा इज्जत उतर रही है तो वो है आशुतोष जी।( ये बात मेरे लिए काफी दुखद है क्योंकि अपने सीनियर को इस तरह देखना कोई नहीं चाहता) आशुतोष ने अपनी स्वामीभक्ति की हद तक जाकर एक मरे हुए इंसान की मजाक बनाते हुए इंसानियत को ही ताक पर रख दिया। इस बार उन्होंने केजरीवाल के लिए बयान जारी नहीं किया इस बार केजरीवा की आलोचना करने वालों पर भौंका। क्या राज्यसभा की सीट की तमन्ना आशुतोष जी आपको इंसानियत के एक तमगे से भी दूर कर देंगी। आपने अपने मन की आवाज पर राजनीति ज्वॉईन की ये अच्छा था। सामने आकर किया, सीना ठोंककर किया। अच्छा किया लेकिन उसके बाद आपने जिस तरह केजरीवाल की स्वामिभक्ति में अपने रिपोर्टिंग करियर के दौरान हासिल उपलब्धियों को मिटाना शुरू कर दिया। नमस्कार मैं आशुतोष बोल रहा हूं सुनने के लिए के लिए देश के लाखो लोग आपके बुलेटिन का इंतजार करते थे। लेकिन इस बात को आपने हद कर दी रिपोर्टर के तीखे सवाल के जवाब में जो आपने तंज कसा था वो तंज नहीं था बल्कि देश के करोडो किसानों के मुंह पर तमाचा थे। आपने कहा कि आगे कभी ऐसा होगा तो मुख्यमंत्री ..आगे ऐसा होगा या नहीं लेकिन आप जैसा आदमी कम से कम मीडिया को इस तरह का जवाब न दे। आपने माफी मांग ली लेकिन उस माफी पर आपके मुख्यमंत्री ने माफी मांग कर ये साबित कर दिया कि आपने उस पालतू की तरह व्यवहार किया जो मालिक को दिखाने के लिए मालिक के रिश्तेदारों पर पर भी भौंकने लगता है आपसे ज्यादा आपके मालिक को हमारी जरूरत है। जब तक आप मीडिया में थे आपकी जरूरत थी अब चमचे और भांड बहुत मिल जाएंगे केजरीवाल को लेकिन गाली देने के बाद भी मीडिया को तो बुलाना ही पड़ेगा।
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