आंखों को बंद -
- खोल कर देखा
मसला कानों को कई बार
खुद को च्यूंटियों से काट कर जानना चाहा
कही ये सपना तो नहीं
इंसानियत को दीवारों के नीचे दबाएँ
इन दफ्तरों में
बैठे कानों को आदत है
पिन गिरने भर से चौंक जाने की
विदेशी हत्यारों के बनवाये
महल में
नकल करते
सत्ता के पत्तों में उलझें
इन लोगों के कानों तक पहुंची ये चींखें किसकी है
किसकी है इतनी हिम्मत चीख सके अपनी मर्जी से यहां
महल में बैठे बाबूओं की आंखों में
रोशनी भी उनकी मर्जी से आती है
इन गलियारों में कोई चेहरा
तयशुदा माप से अलग नहीं
लाखों मासूम लोगों के खून पर
खडी इस ईमारत के गलियारे कभी चुभे नहीं
काले साहबों की आंखों को
ताकत का साईरन बजाते
लाल बत्ती की कारों में बैठ कर आते
जेब में खोंसी विदेशी कलमें
कागजों में तैयार करते है
देश की गर्दन का माप,
फाईलों में दर्ज करते कुछ ऐसे
ताकि दलालों के जूतों में दबी रहे ये गर्दन
लच्छेदार शब्दों से, खूबसूरत फाईलो में
करोडो़ं लोगों की जिंदगी को और नरक करते
चंद लोगों के जूतों को सिर पर रखे
ये बाबू, ये नेता
चौंक गये बेलगाम आवाजों से
कभी सुनी नहीं इन गलियारों में
हैरत में डूबे गुस्से में भरे
बाबूओं ने पूछा एक- दूसरे से
राख में बदल गये लोगों में
बारूद कहां से आ गयी
उम्मीद को बर्फ के पैरों में दबा कर
बे आवाज काम पर जाते पुतलों में
ये हौंसला कहां से आया
मोबाईल पर विदेशी कंपनियों में
नौकर बनने का ख्वाब पाले हुई पुतलियों में
तिरंगा कहां से लहराया
कैसे सुलझा पाये वो
इन गलियारों तक पहुंचने का तिलिस्म
सौ साल की महल की जिंदगी में
सर झुकाये आये है गुलाम
सिर्फ गुलाम,
भूल से भी कभी
दरवाजे के लोहे को भी नहीं लगी खरोंच
दरवाजे पर ठोंकरे मारते कौन है ये लोग
हैरत में है जाल बुनने वाले
नारे लगाते लोगों की शक्ल सूरत
गुलामों से
अलग नहीं कुछ भी
फिर तौर तरीका इंसानों का कहां आया
कौन है वो जो इन गुलामों को
बादशाह सलामत और उसके वजीरों तक ले आया
तेईस साल की एक जिंदगी
गुमनाम सी जिंदगी
जिसके दर्द से
उधर गई गुलामों के होठों की सीवन
एक गले में घुट गयी चीख से
टूट गई पैरों की जंजीरे
चेहरे और बदन के जख्मों ने
बदल कर रख दिया
गुलामों का गला
अब ये चीख
इन बाबूओं के कानों को फाड कर
दिल तक पहुंच रही है
खौंफ में डूबे
ताकत के दलालों को बस हैरत है
कैसे एक जिंदगी की डोर टूटने से
टूट सकते है कई सपने
सपनों के टूटने से
टूट सकती है गुलामी की जंजीरें
पत्थर की आंखों में हो सकती है हरकत
कुत्तों के भौंकने से निडर होकर
घुस सकते है वो महलो में
हो सकता है बदल जाये ये तस्वीर
खुद कुत्तों की तादाद बढ़ाकर
फिर से लौटा ली जाएं शांति
हड्डियों को मुंह में डाले
खुद के खून से प्यास बुझाते
कुत्तों की भीड़
गुलामों को चीथ दे
लौटा दे उनको
गुमनामी के अंधकार में वापस
लेकिन
ये बाबू याद रखेंगे
एक ख्बाव टूटने से
टूट सकते है तिलिस्म
ढह सकती है
झूठ की ईमारत़
और सबसे बड़ी
बात
उग सकते है हजारो लाखों ख्वाब
पथराई आंखों में भी