Sunday, November 4, 2012

एक दिन तुम से मिलूंगा मैं

एक दिन मैं तुमसे मिलूंगा,
एक बार मिलना है मैंने सोच रखा है
आंखों में आंखें डालकर
वो सब बताऊंगा जो तुम जानना चाहोगें,
इतने सारे चेहरों को हटाकर
सारे झूठ को पार कर
मैं आऊंगा, एक रोज तुमसे मिलने.
मेरी मजबूरियां, मेरी जरूरतें ,
उस दिन रोक न सकेंगी मेरे पैर
मेरी हंसी, मेरी आवाज में
कोई पर्दा नहीं होगा उस दिन
मेरी उदासियों में शामिल नहीं होगा कोई झूठ
मेरी बातें किसी अंधें कुएं से आती हुई आवाज नहीं
जबां से कोई छल नहीं
दिन भर मेरे आस-पास मैं रहूंगा
सिर्फ मैं
वक्त के रंग, चलन से दूर
वो लड़का जिसके लिए
आसमान में लड़ी पतंगों की लड़ाईं
की
कीमत दिल्ली की गद्दी से ज्यादा होती थी।
दुनिया के किसी भी आतिशबाजी से दिलचस्प
नालियों मे लड़ते पिल्लों की लडाईं।
मां से खूबसूरत कोई चीज बनी थी दुनिया में
बाप से ज्यादा ताकतवर इंसान
दिन के रथ पर चढ़कर
मिट्टी के महाभारत से निकल कर
पहुंच गया इस शहर में
तब से अब तक मुलाकात नहीं हुई़
इस वादे के साथ मिलूंगा मैं तुमसे
एक रोज, यूहीं बस एक सच के साथ
देख लो मुझे
मैं वही हूं
मैं वही हूं ।

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