Sunday, November 4, 2012

सलीका सीख गया हूं रहने का

इन दिनों
सलीके से रहना आ गया।
कौन से हाथ में पकड़ना है
चाकू और कांटा
कहां से काटना है
और कहां से लगाना है कांटा
वाईन के साथ उठाना है
पहले कौन सा चिप्स
भूने हुए आलू के साथ कौन सी वाईन बेहतर है।
कितने एंगल पर झुकना है,
झुकते हुए आंखें कहा रखनी है
एक लड़की, एक महिला और बूढ़ी औरत के लिए
दायें से रास्ता दे कर आगे निकलना है,
बाएं पर रूकना है.
मेरी मुस्कुराहट का पैमाना भी
लगभग सही हो गया है
मैंने मेहनत से सीखा है
कितने दांतों को खोलना चाहिए
ताकतवर के सामने हंसते हुए
किनती घृणा से डूब जाना चाहिए चेहरा
कमजोर को साथ बिठाकर
मेरी बातों में भी
नपा-तुला अंदाज है
मेरे मजाक में छिपे हुए राज है
आप मुझ पर हंस रहे हो
मुझे जवाब देना है
तुम्हारी पहुंच देखकर
मेरे से गलती नहीं होती है
कार का मेक बताने में
एंटीक की कीमत आंकने में
अक्सर दुनिया के किस शहर की
क्या चीज बेहतर है.
क्यों ऑफिस में
सुंदर सेक्रेट्री हो
शाम के वक्त रखने वाली लड़की की उम्र क्या हो
किस अंदाज में उस लड़की का इस्तेमाल करना है
चारे और प्यार दोनों की तरह
ताकतवर की निगाह में चढ़ जाएं तो
किस खूबसूरती से लड़की को छोड़ देना है उसकी बाहों में
फिर हिसाब रखना है फायदे का
ये सलीका, ये अदब,
ये तरीका मेरी सालों की मेहनत का नतीजा है।
मेहनत इस अदब को सीखने में नहीं
मेरे दोस्त पहले का सीखा हुएं को भूलने में लगी
जिंदा होने में तकलीफ नहीं
मारे हुए को दफनाने में हुई।

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