गिरीश मलिक को जानते है । क्या आपने नाम नहीं सुना। नहीं वो कोई अरबपति नहीं है। फिल्म स्टार भी नहीं है। राजनेता भी नहीं है। मीडिया के पंसदीदा अंडर वर्ल्ड का कोई डॉन भी नहीं है,गिरीश मलिक। कैसे जानेगा ये देश गिरीश मलिक को। आपकी बात सही है । कोई नहीं जान पायेगा कि गिरीश मलिक कौन है। यहां तक कि वो भी नहीं जिन पर आरोप है कि उन्होने गिरीश मलिक का इस्तेमाल कर देश के करोड़ों लोगों के रोजगार को विदेशियों को बेच दिया। गिरीश मलिक लखनऊ में एक छोटे से लाईजनर है। यानि देशी भाषा में कहे तो पैसे का काम पैसे से कराते है और अपना कमीशन खाते है। लेकिन वो अमरसिंह तो नहीं है। फिर क्या है। हैरान न हो हम आप को बताते है कि ये गिरीश मलिक कौन है। गिरीश मलिक वो शख्स है जिसके कुछ बोल इस देश में एफडीआई को लाने में कामयाब हो गये। अब आपसे ज्यादा पहेलियां न बुझाते हुए बात साफ करता हूं। गिरीश मलिक यूपी के एनआरएचएम घोटाले में एक ऐसी कुंजी है जिससे यूपीए सरकार ने मायावती के समर्थन का ताला खोला। गिरीश मलिक सीबीआई की पहली एफआईआर में आरोपी बनाया गया। लखनऊ में काम करने वाले गिरीश मलिक ने बाद में जाने कैसे सीबीआई के एप्रूवर बनने का जुगाड किया और वो सीबीआई के गवाह के तौर पर आजकल गाजियाबाद की अदालत में आते है। एफडीआई के मुद्दे पर वोटिंग से पहले मायवती ने दिल्ली के प्रेस क्लब में एक प्रेस कांफ्रैस की और साफ तौर पर कहा कि एफडीआई देश के खिलाफ है। लेकिन मायावती अपने स्टैंड को साफ नहीं कर पायी कि वो एफडीआई के पक्ष में वोट करेंगी कि विपक्ष में। लोगो को उम्मीद थी कि फायदे के लिये कुछ भी कर देने वाली मायावती शायद इस बार अपने स्टैंड पर कायम रहेगी। हालांकि रिपोर्टर का आकलन था कि ये आखिरी क्षणों में वॉक आउट कर सरकार को मदद कर देंगी। और हैरानी की बात नहीं है हर आदमी की नजर में सीबीआई एक मात्र वजह थी मायावती के सरकार को मदद करने की। खैर ये प्रेस कांफ्रैंस हुई। खबरे छपी भी और इलेक्ट्रानिक मीडिया में चली भी। और चैनल्स को चलना होता है और अखबार को छपना था न्यूज ऐसे ही छपी कि सरकार को पशोपेश में रखा माया और मुलायम ने। ये अलग बात है कि मीडिया तब तक कमलनाथ का विश्वास भरा बयान दिखा चुका था जिसमें कमलनाथ ने कहा था कि नंबर हमारे पास है।
प्रेस कांफ्रैस के अगले ही दिन अखबार में छोटी सी खबर छपी। खबर का मजमून कुछ यूं था। एनआरएचएम घोटाले में जिरह के दौरान एक गवाह गिरीश मलिक ने अदालत में बताया कि उसने ठेका हासिल करने के लिये कई लोगों को मोटी मोटी रिश्वतें दीं। इनमें से सबसे बड़ा नाम था नवनीत सहगल का। मलिक के बयान के मुताबिक उसने 42 लाख रूपये की रकम पी के जैन नाम के शख्स के साथ 13 मॉल एवेन्यू के मकान पर जाकर नवनीत सहगल को सौंपी। गिरीश के मुताबिक ये पैसे बसपा के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को देने के लिये था। खबर बेहद छोटी थी। किसी ने ध्यान नहीं दिया। संसद में एफडीआई पर वोट हुआ। मायावती ने उम्मीद के मुताबिक लोकसभा से बाहिष्कार किया। मुलायम ने भी किया। सरकार को नंबर मिल गये। अब मुकाबला था राज्य सभा में। राज्य सभा में सरकार इतने अल्पमत में थी कि या तो मुलायम या फिर मायावती एक को मतदान करना ही था नहीं तो सरकार ये बिल पास नहीं करा सकती थी। अब नजर माया और मुलायम पर थी। लोगो का फिर से आकलन था कि सीबीआई का शिकंजा जिस पर कड़ा होगा उसको अपने बयान के पूरे उलट करना होगा। राज्यसभा में वोटिंग हुआ और मायावती ने सरकार के पक्ष में वोट किया। मुख्य विपक्षी पार्टी को गालियां देते हुये। मायावती ये बाजीगरी कई बार कर चुकी है कि बीजे पी को गाली देते हुए उसकी मदद से मुख्यमंत्री बनना। लेकिन इस बार बात समझ में नहीं आ रही थी।
ऐसे ही बैठे बैठे सोचा गया कि क्या हुआ ऐसा कि माया ने किया। तभी याद आया कि अरे गिरीश मलिक का बयान क्या था। 13 मॉल एवेन्यू का मकान जिस पर नवनीत सहगल को पैसा दिया गया किसका था। बस कागज निकाले गये और हैरानी छू मंतर हुई। मायावती को वोट करना पड़ा सीबीआई के दबाव के कारण ये कागजों में साफ लिखा हुआ है।
मामला साफ साफ समझते है। मामले में आरोपी कम गवाह गिरीश मलिक ने सीबीआई को बयान दिया।
सीआरपीसी 161के तहत जांच अधिकारी के सामने गिरीश मलिक ने बयान दिया कि वो खुद 42 लाख रूपया लेकर मामले के एक अन्य आरोपी पी के जैन के साथ 13 मॉल एवेन्यू गया था। अब जान ले कि 13 मॉल एवेन्यू मायावती का सरकारी बंगला था। गिरीश ने वहां मायावती के सबसे करीबी अफसर नवनीत सहगल को वहां 42 लाख रूपये दिये। नवनीत सहगल मायावती सरकार चलाते थे। बयान में एक सावधानी बरती गई कि वो पैसा बाबूसिंह कुशवाहा को देना था और इसी के लिये नवनीत सहगल को दिया गया।लेकिन ये बचाव कानून की निगाह में बेकार इस लिये है क्योंकि गिरीश मलिक अपने बयान के पहले हिस्से में कह चुका था कि उसने नवनीत सहगल का तय पैसा नवनीत के दलाल डी के सिंह को दे दिया था। और पैसा लेने के बाद डीके सिंह ने फोन पर गवाह की बातचीत नवनीत सहगल से कराई। लखनऊ में सत्ता के गलियारों में या फिर छोटे से छोटे ठेकों की दलाली करने वाला मामूली आदमी भी ये जानता है कि नवनीत सहगल का सारा नंबर दो काम कौन संभालता था। डी के सिंह नवनीत सहगल का सबसे करीबी आदमी था। उसको नवनीत के पैसे दिये गये। और नवनीत सहगल को बाबूसिंह कुशवाहा का पैसा दिया गया। लखनऊ में कोई भी आपको ये आसानी से बता देगा कि बाबूसिंह कुशवाहा की और नवनीत सहगल में किसकी औकात माया के दरबार में क्या थी. नवनीत सहगल के सामन खड़े रहने वाले बाबूसिंह कुशवाहा को देने के लिये पैसा पकड़ेगे नवनीत सहगल ये सिर्फ देश की सबसे महान जांच एजेंसी ही विश्वास कर सकती थी लखनऊ का आम आदमी नहीं। और यही वो पेंच है जिसने सरकार के सारे समीकरण साध दिये। कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने एनआरएचएम घोटाले की जांच शुरू की थी। ये जांच बेहद बे मन से शुरू हुई थी। सीबीआई जांच करना ही नहीं चाहती थी। दरअसल एनआरएचएम उन योजनाओं में से एक है जो केन्द्र सरकार ने जोर शोर के साथ शुरू की लेकिन सारी दलालों के हाथो में चली गयी। ज्यादातर राज्यों में हजारों करोड़ के फंड की लूट हुई। सरकार ने न कोई विशेष प्रावधान लगाये ना भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ कोई कठोर नियम। लूट की छूट। लिहाजा माया राज में लूट का खुला खेल खेला गया। ऐसी लूट जो पिंडारियों को भी शर्मा कर रख दे। करोड़ों लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले मध्यकालीन ठगों को नीचा दिखा दे। लूट में राजनीति थी, मर्डर थे ब्यूरोक्रेट थे, दलाल थे, मंत्री थे और संत्री थे। सब कोई शामिल था उपर से नीचे तक। सीबीआई ने जांच शुरू की। परते खुली। निशाना था मुख्यमंत्री मायावती और उनके सबसे करीबी नवनीत सहगल। पूरे राज्य की नौकरशाही नतमस्तक थी नवनीत सहगल के सामने। जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी निशाना साफ होता जा रहा था। बस यही से शुरू हुआ केन्द्र का खेल। सीबीआई के डायरेक्टर की रीढ़ की तलाश करना मतलब लखनऊ के इमामबाड़े में पहली बार घुस कर बिना किसी मदद के बाहर आना है।
गिरीश मलिक ने सीबीआई के अधिकारी के सामने साफ तौर पर बयान दिया कि उसने मायावती के सरकारी आवास पर पैसे दिये नवनीत सहगल को। कानून की जरा सी भी समझ रखने वाले आम आदमी को भी ये मालूम है कि इसमें नवनीत सहगल को संदिग्धों की सूची में रखने के पर्याप्त कारण है। मायावती के बंगले का इस्तेमाल और रिश्वत भी सबसे करीबी अफसर को माया पर भी पहली नजर में गवाह या आरोपी बनाने या फिर पूछताछ करने का आग्रह पहली ही नजर में बनता है। ये ही वो कागज है जो मायावती को एफडीआई पर बाहिष्कार तो दूर की बात बेशर्मी से उसके पक्ष में वोट करने का कारण बना। मायावती जानती है कि सीबीआई का शिकंजा कसा तो बात एनआरएचएम तक ही नहीं रह पायेगी। उस वक्त भी राजनीतिक हल्कों में चर्चा थी कि मायावती ने नवनीत सहगल को बचाने के लिये केन्द्र सरकार से डील करके उन्हें ज्यादातर मुद्दों पर समर्थन देने का वायदा किया है। बात अफवाह थी। लेकिन एफडीआई में दो चीजें चीख चीख कर कह रही है एक तो गिरीश मलिक का बयान और ऊपर से अपने सार्वजनिक तौर पर झूठा बनकर भी सरकार के पक्ष में मतदान। कानून की व्याख्या करने वाले विद्धान बहुत है इस देश में। लाखों रूपये लेकर कुछ साबित कर सकते है। इसी लिये इस मामले में आखिरी क्या होगा ये तो शायद सालों बाद सामने आयेगा। लेकिन कुछ कागज हमेशा के लिये इतिहास की अंधी गलियों में दफन हो जायेंगे जिसमें से एक गिरीश मलिक का बयान भी होगा। अमेरिका हर अहसान का बदला देता है अपने पालतूओं को शायद गिरीश को भी कुछ दे दे वॉल मार्ट। ये अलग बात है कि एफडीआई के लिए प्रधानमंत्री से भी ज्यादा मददगार साबित हुये ए पी सिंह यानि अमर प्रताप सिंह को एनएचआरसी में एक सीट का दिलाने का सरकार का वादा शायद विपक्ष के चलते पूरा न हो। हम तो कह सकते है कि एफडीआई का प्रस्ताव को कांग्रेस लाई लेकिन उसको देश में लायी अमर प्रताप सिंह की सीबीआई।
प्रेस कांफ्रैस के अगले ही दिन अखबार में छोटी सी खबर छपी। खबर का मजमून कुछ यूं था। एनआरएचएम घोटाले में जिरह के दौरान एक गवाह गिरीश मलिक ने अदालत में बताया कि उसने ठेका हासिल करने के लिये कई लोगों को मोटी मोटी रिश्वतें दीं। इनमें से सबसे बड़ा नाम था नवनीत सहगल का। मलिक के बयान के मुताबिक उसने 42 लाख रूपये की रकम पी के जैन नाम के शख्स के साथ 13 मॉल एवेन्यू के मकान पर जाकर नवनीत सहगल को सौंपी। गिरीश के मुताबिक ये पैसे बसपा के मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को देने के लिये था। खबर बेहद छोटी थी। किसी ने ध्यान नहीं दिया। संसद में एफडीआई पर वोट हुआ। मायावती ने उम्मीद के मुताबिक लोकसभा से बाहिष्कार किया। मुलायम ने भी किया। सरकार को नंबर मिल गये। अब मुकाबला था राज्य सभा में। राज्य सभा में सरकार इतने अल्पमत में थी कि या तो मुलायम या फिर मायावती एक को मतदान करना ही था नहीं तो सरकार ये बिल पास नहीं करा सकती थी। अब नजर माया और मुलायम पर थी। लोगो का फिर से आकलन था कि सीबीआई का शिकंजा जिस पर कड़ा होगा उसको अपने बयान के पूरे उलट करना होगा। राज्यसभा में वोटिंग हुआ और मायावती ने सरकार के पक्ष में वोट किया। मुख्य विपक्षी पार्टी को गालियां देते हुये। मायावती ये बाजीगरी कई बार कर चुकी है कि बीजे पी को गाली देते हुए उसकी मदद से मुख्यमंत्री बनना। लेकिन इस बार बात समझ में नहीं आ रही थी।
ऐसे ही बैठे बैठे सोचा गया कि क्या हुआ ऐसा कि माया ने किया। तभी याद आया कि अरे गिरीश मलिक का बयान क्या था। 13 मॉल एवेन्यू का मकान जिस पर नवनीत सहगल को पैसा दिया गया किसका था। बस कागज निकाले गये और हैरानी छू मंतर हुई। मायावती को वोट करना पड़ा सीबीआई के दबाव के कारण ये कागजों में साफ लिखा हुआ है।
मामला साफ साफ समझते है। मामले में आरोपी कम गवाह गिरीश मलिक ने सीबीआई को बयान दिया।
सीआरपीसी 161के तहत जांच अधिकारी के सामने गिरीश मलिक ने बयान दिया कि वो खुद 42 लाख रूपया लेकर मामले के एक अन्य आरोपी पी के जैन के साथ 13 मॉल एवेन्यू गया था। अब जान ले कि 13 मॉल एवेन्यू मायावती का सरकारी बंगला था। गिरीश ने वहां मायावती के सबसे करीबी अफसर नवनीत सहगल को वहां 42 लाख रूपये दिये। नवनीत सहगल मायावती सरकार चलाते थे। बयान में एक सावधानी बरती गई कि वो पैसा बाबूसिंह कुशवाहा को देना था और इसी के लिये नवनीत सहगल को दिया गया।लेकिन ये बचाव कानून की निगाह में बेकार इस लिये है क्योंकि गिरीश मलिक अपने बयान के पहले हिस्से में कह चुका था कि उसने नवनीत सहगल का तय पैसा नवनीत के दलाल डी के सिंह को दे दिया था। और पैसा लेने के बाद डीके सिंह ने फोन पर गवाह की बातचीत नवनीत सहगल से कराई। लखनऊ में सत्ता के गलियारों में या फिर छोटे से छोटे ठेकों की दलाली करने वाला मामूली आदमी भी ये जानता है कि नवनीत सहगल का सारा नंबर दो काम कौन संभालता था। डी के सिंह नवनीत सहगल का सबसे करीबी आदमी था। उसको नवनीत के पैसे दिये गये। और नवनीत सहगल को बाबूसिंह कुशवाहा का पैसा दिया गया। लखनऊ में कोई भी आपको ये आसानी से बता देगा कि बाबूसिंह कुशवाहा की और नवनीत सहगल में किसकी औकात माया के दरबार में क्या थी. नवनीत सहगल के सामन खड़े रहने वाले बाबूसिंह कुशवाहा को देने के लिये पैसा पकड़ेगे नवनीत सहगल ये सिर्फ देश की सबसे महान जांच एजेंसी ही विश्वास कर सकती थी लखनऊ का आम आदमी नहीं। और यही वो पेंच है जिसने सरकार के सारे समीकरण साध दिये। कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने एनआरएचएम घोटाले की जांच शुरू की थी। ये जांच बेहद बे मन से शुरू हुई थी। सीबीआई जांच करना ही नहीं चाहती थी। दरअसल एनआरएचएम उन योजनाओं में से एक है जो केन्द्र सरकार ने जोर शोर के साथ शुरू की लेकिन सारी दलालों के हाथो में चली गयी। ज्यादातर राज्यों में हजारों करोड़ के फंड की लूट हुई। सरकार ने न कोई विशेष प्रावधान लगाये ना भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ कोई कठोर नियम। लूट की छूट। लिहाजा माया राज में लूट का खुला खेल खेला गया। ऐसी लूट जो पिंडारियों को भी शर्मा कर रख दे। करोड़ों लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले मध्यकालीन ठगों को नीचा दिखा दे। लूट में राजनीति थी, मर्डर थे ब्यूरोक्रेट थे, दलाल थे, मंत्री थे और संत्री थे। सब कोई शामिल था उपर से नीचे तक। सीबीआई ने जांच शुरू की। परते खुली। निशाना था मुख्यमंत्री मायावती और उनके सबसे करीबी नवनीत सहगल। पूरे राज्य की नौकरशाही नतमस्तक थी नवनीत सहगल के सामने। जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी निशाना साफ होता जा रहा था। बस यही से शुरू हुआ केन्द्र का खेल। सीबीआई के डायरेक्टर की रीढ़ की तलाश करना मतलब लखनऊ के इमामबाड़े में पहली बार घुस कर बिना किसी मदद के बाहर आना है।
गिरीश मलिक ने सीबीआई के अधिकारी के सामने साफ तौर पर बयान दिया कि उसने मायावती के सरकारी आवास पर पैसे दिये नवनीत सहगल को। कानून की जरा सी भी समझ रखने वाले आम आदमी को भी ये मालूम है कि इसमें नवनीत सहगल को संदिग्धों की सूची में रखने के पर्याप्त कारण है। मायावती के बंगले का इस्तेमाल और रिश्वत भी सबसे करीबी अफसर को माया पर भी पहली नजर में गवाह या आरोपी बनाने या फिर पूछताछ करने का आग्रह पहली ही नजर में बनता है। ये ही वो कागज है जो मायावती को एफडीआई पर बाहिष्कार तो दूर की बात बेशर्मी से उसके पक्ष में वोट करने का कारण बना। मायावती जानती है कि सीबीआई का शिकंजा कसा तो बात एनआरएचएम तक ही नहीं रह पायेगी। उस वक्त भी राजनीतिक हल्कों में चर्चा थी कि मायावती ने नवनीत सहगल को बचाने के लिये केन्द्र सरकार से डील करके उन्हें ज्यादातर मुद्दों पर समर्थन देने का वायदा किया है। बात अफवाह थी। लेकिन एफडीआई में दो चीजें चीख चीख कर कह रही है एक तो गिरीश मलिक का बयान और ऊपर से अपने सार्वजनिक तौर पर झूठा बनकर भी सरकार के पक्ष में मतदान। कानून की व्याख्या करने वाले विद्धान बहुत है इस देश में। लाखों रूपये लेकर कुछ साबित कर सकते है। इसी लिये इस मामले में आखिरी क्या होगा ये तो शायद सालों बाद सामने आयेगा। लेकिन कुछ कागज हमेशा के लिये इतिहास की अंधी गलियों में दफन हो जायेंगे जिसमें से एक गिरीश मलिक का बयान भी होगा। अमेरिका हर अहसान का बदला देता है अपने पालतूओं को शायद गिरीश को भी कुछ दे दे वॉल मार्ट। ये अलग बात है कि एफडीआई के लिए प्रधानमंत्री से भी ज्यादा मददगार साबित हुये ए पी सिंह यानि अमर प्रताप सिंह को एनएचआरसी में एक सीट का दिलाने का सरकार का वादा शायद विपक्ष के चलते पूरा न हो। हम तो कह सकते है कि एफडीआई का प्रस्ताव को कांग्रेस लाई लेकिन उसको देश में लायी अमर प्रताप सिंह की सीबीआई।
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