Thursday, June 23, 2011

मोंटेक और मनमोहन के अमीर की मौत

नेशनल हाईवे 58 से गुजर रहा था। सड़क के किनारे यातायात रूका हुआ था और भीड़ थमीं हुईं थीं। सुबह के आठ बजे थे। कार से उतर कर देखा तो एक बुजुर्ग महिला बेसुधी के आलम में रो रही थी। बुजुर्ग औरत ने अपनी धोती के पल्ले से एक लाश का चेहरा ढ़का था। लाश का चेहरा नहीं दिख रहा था। बराबर में एक टुटही साईकिल पड़ी थी। बुजुर्ग महिला लाश को अपना बेटा लाल और जिगर का टुकड़ा कह कह कर बेहोश हुई जा रही थी। थोड़ी सी दूरी बनाकर कुछ सिपाही और एक सब इंस्पेक्टर हाथ में डायरी लेकर बस खड़े थे। कुछ देर बाद एक पुलिस वाले ने मजदूर की जेब में हाथ डालकर एक काली सी छोटी डायरी और उसमें कुछ हिसाब लिखे पन्ने निकाले। जेंब में चंद सिक्कों के अलावा कुछ भी नहीं था। पूछने पर मालूम हुआ कि ये एक मजदूर था। जो यूपी के पूर्वी हिस्से से इधर गाजियाबाद मजदूरी करने आया था। उसको यदि काम मिलता था तो रोज 110 रूपया मिलता था। तब लगा कि अरे ये तो देश के एक गरीबी रेखा से उपर के आदमी की लाश है। एक ऐसे आदमी की लाश है जो मोंटेक सिंह अहलूवालिया और मनमोहन सिंह की गरीबी रेखा के फार्मूलें को पार कर चुका है। ये तो एक अमीर आदमी की लाश है। जिस पर रोने के लिए एक भूखी, बीमार और उम्रदराज महिला के अलावा कोई नहीं है। उसको घर तक ले जाने के लिए व्यवस्था नहीं थी। उस अमीर आदमी के हाथों में सड़क के किनारे अमीर बनाने वाले पत्थरों की बनी सस्ती अंगूठियां थी। हाथों में गंडें और ताबीज भी बंधें थे। और एक प्यार करने वाली मां की दुआएं भी उसके साथ थी। लेकिन इन सबके बावजूद मोंटेक सिंह अहलूवालिया या इस देश के वित्त नीति के नियामकों की लाईं गयी नीतियों को नहीं हरा पाया। वो मौत के जाल में फंस गया। भूख और कुपोषण के चलते अकाल मौत के रास्ते चला गया। ये एक नये भारत के सपने के अंदर की एक छोटी सी तस्वीर है। ये उस भारत की तस्वीर है जिसने हाल ही में अमेरिका को कई अरब डॉलर दिए है सिर्फ युद्ध में काम हाने वाले हवाईजहाज हरक्यूलीस के सौंदे के लिए। ये उसी भारत का मोंटेकसिह अहलुवालिया का अमीर था जिसने हजारों करोड़ के सौंदे अभी रक्षा के लिए किये है। ये उसी भारत की तस्वीर है जिसने अभी कॉमनवेल्थ करा कर पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया है। कई बार लगता है कि पता नहीं ये मजदूर मरने से पहले ये भी जान पाया है कि नहीं कि देश चन्द्रमा पर अपना चन्द्रयान भेजने वाला है। लेकिन ये तो मर गया। एक दो दस नहीं हजारों लोग रोज मर रहे है बिना मनमोहन सिंह के सपनों के जाने बिना। क्या कोई रास्ता है इन लोगों को मरने से पहले ये बताने का कि पूरी दुनिया में उनकी ताकत, हिम्मत और तरक्की की मिसाल दी जा रही है। दुनिया में अब वो महाशक्ति है। अमेरिका का राष्ट्रपति भी रोज उनका नाम लेता है और हाथ जोड़ कर अमेरिकियों की नौकरी बचाने की गुजारिश करता है। लेकिन इसमें एक गड़बड़ जरूर है कि इस मर गएं मजदूर का नाम तो मोंटेक सिंह को भी नहीं मालूम और मुझे भी नहीं मालूम तो दुनिया इसे किस नाम से धन्यवाद दे रही है इसका लोहा मान रही है ...पता नहीं।
देश का वित्त मंत्री का ऑफिस बग्ड हो रहा है। पहले ऐसी खबर आती है। फिर पता चलता है कि दस महीने पहले की घटना है। फिर नया खुलासा होता है आईबी से पहले किसी निजि जासूसी एजेंसी को बुलाकर दिखा दिया गया। फिर तार जुड़ते है और मुड़ जाते है गृहमंत्रालय की ओर। यानि देश के एक मंत्री की जासूसी दूसरा मंत्रालय कर रहा है। बात खुलती है या खोल जाती है मालूम नहीं। हल्ला हो जाता है। तब वित्त मंत्री ऐलान करते है नहीं जासूसी नहीं च्यूंईंगम चिपगाई गयी थीं। और आईबी ने कहा था कि कुछ गंभीर नहीं है। आईबी गृहमंत्रालय के अंडर आती है।
एक नया चिट्ठी आती है सीएजी से। देश के पेट्रोलियम मंत्रालय ने मुकेश अंबानी को दिए गएं के जी बेसिन के ब्लॉक नंबर 6 में हजारों करोड़ की रकम फालतू लगाकर खोज की और कुएं मुकेश को हैंडओवर कर दिए। ये रकम हजारों में करोड़ है। कभी जनमोर्चे के ईमानदार रहे बेचारे जयपाल रेड्डी का कहना है ये तो सीएजी का पहला ड्राफ्ट है अभी जल्दी न करें। हां जयपाल रेड़्डी जी को मालूम है उनके पहले मंत्रालय की निगरानी में हजारों करोड़ रूपये के कॉमनवेल्थ में कैसे बाद के ड्राफ्ट तैयार हुए है। इसका भी हो जाएंगा।
फिर एक खबर आती है कि देश के निजि हो या सरकारी सभी बैंकों ने अपनी तय लिमिट से आगे जा कर मुकेश अंबानी और उनके भाई अनिल अंबानी को हजारों करो़ड़ में कर्ज दे दिए। खबर बस यही तक आती है आरटीआई के हवाले से। इसके बाद खबर कही नहीं है। अरबों रूपये दे दिये गए इन दोनों भाईयों की कंपनियों को। ऐसा क्या है इनमें जो उस रोज के 110 रूपये कमाने वाले अमीर आदमी में नहीं था जो सड़क पर मर गया। मुकेश और अनिल अंबानी और कोई नहीं बल्कि देश के वित्त चाणक्य मोंटेक सिंह अहलूवालिया और अपनी ईमानदारी का परचम ओढ़े घूमने वाले मनमोहन सिंह के गरीब आदमी है। इन लोगों के कल्याण के लिए सरकार रात-दिन अपने को हलकान किये हुए है। अरबों रूपये के घोटाले, लोन और काली कमाई से भी इनका पेट नहीं भर रहा है। सरकार पूरी तरह से हैरान है हालांकि साउथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक के गलियारों में घूमने वाले दलाल और पत्रकार आपको आसानी से गिनवा देंगे कि मौजूदा वित्तमंत्री किस भाई से डिक्टेशन लेता है और पुराना वित्तमंत्री किस भाई से डिक्टेशन लेता था।
भूख से थके बड़े भाई मुकेश ने तो सात हजार करो़ड़ रूपये का घर बनवा लिया है।ताकि भूख से निजात मिले। इसके लिए वक्फ की जमीन में घपला करने के आरोप लोग उन पर लगाने लगे। अंबानी मायने क्या है भाई ये तो लोग भूल ही जाते है।
एक सरकार है जिसके मंत्री इस वक्त लोकपाल के मुद्दे पर लगे हुए हैं। कोई कहता है कि प्रधानमंत्री इसके अंदर आएंगे ही नहीं कभी कोई कहता है कि आम जनता तानाशाही कर रही है। दोनों ही समूह लोकपाल बनाने की नूराकुश्ती में लगे है लखनऊ के बांकों की तरह। दोनों ही समूहों में कोई भी ऐसा नहीं है जो उस नेशनल 58 पर गुमनाम की तरह मर गएं मजदूर की तरह अमीर हो। ये तमाम लोग खाएं-पिएं और अघाएं हुए लोग है। खेल चल रहा है सरकार खेल रही है। पर्दे पर दिख रहे बौंनों और जादूगरों के पीछे हंस रहे है सरकार के गरीब और सड़क पर आवारा कुत्तें से बदतर मौंत के शिकार हो रहे है मोंटेक और मनमोहन सिंह के नायाब फार्मूले से बिना कुछ भी कमाएं भूक्खड़ों से निकल कर नएं बने अमीर।
हां एक बात और पुलिस उस मजदूर की लाश को घर भेजने के लिए न कोई गाड़ी मंगा रही थी न किसी कफन का इंतजाम कर रही थी। एक ऐसे इंसान के लिए कुछ करना पुलिस की भी बेईज्जती होती जिसकी जेंब से उसे कुछ भी नहीं मिला।
देश के बकता नेता और सत्तारूढ़ पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की मौत पर बयान दिया था कि कि मरने के बाद ओसामा बिन लादेन जी का संस्कार धार्मिक रीति-रिवाजों और सम्मान से होना चाहिएं था। लेकिन ये यूपी है और माया की पुलिस इस मनमोहनी अमीर पर चार लीटर मिट्टी का पेट्रोल और पांच गज कफन का टुकड़ा क्यों बर्बाद करें..दिग्गी भी तो हैं।

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