Tuesday, June 7, 2011

असली ईमानदार प्रधानमंत्री है भाई

"it is unfortunate that operation had to be conducted but quite honestly, there was no altenative" ये बयान देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है। रामलीला मैदान में रात को सो रहे औरतों और बच्चों पर बर्बर पुलिसया एक्शन के बाद का पहला बयान। ये देश के प्रधानमंत्री का बयान है। एक ऐसे प्रधानमंत्री का बयान जो अपनी योग्यता से किसी वार्ड मेंबरी या गांव में सभासद का चुनाव भी नहीं जीत सकता था। एक ऐसा प्रधानमंत्री जो बेचारा अपनी कोई राय रखता होगा इस बारे में लोगो को संदेह है। प्रधानमंत्री से एक ऐसा ही बयान चाहिए था। क्या एक ऐसा आदमी जो सिर्फ खडाऊं उठाने के लिए रखा गया था पार्टी के और अपनी ही सरकार के खिलाफ न्याय के पक्ष में खड़ा हो सकता है। नहीं कभी नहीं आम समझ और इतिहास इस बात की ताईद करता है। मनमोहन सिंह की योग्यता सिर्फ इतनी ही है कि वो कभी भी अपनी सत्ता नहीं बना सकते है और न ही देश के लोगों के दिलों मे जगह। मध्यमवर्ग के टुकड़ों पर पलने वाले बौंनों की मुहिम में मीडिया के एक वर्ग ने बेहद ईमानदार आदमी के तौर स्थापित किया था मनमोहन सिंह को। लेकिन एक ऐसा ईमानदार आदमी जो जानता है कि देश का प्रधानमंत्री पद का वो किसी भी तरह से हकदार नहीं है फिर भी बैठा है कितना ईमानदार है भाई। एक विदेशी महिला को जिसको देश की जनता ने अपने दिल में और सिर पर बैठाया सिर्फ इस लिये क्योंकि उसके साथ गांधी या फिर नेहरू खानदान का नाम जुड़ा था। इसके अलावा और कोई योग्यता इस महान नेत्री सोनिया गांधी में है ये तो बेचारे दिग्विजय सिंह भी नहीं गिनवा सकते है।
लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है कि रात के अंधेंरे में पुलिस ने सोए हुए मासूम बच्चों, बेगुनाह औरतों और बूढ़ों पर हमला किया। यहां सवाल ये खड़ा हो गया है कि क्या सरकार अपनी तानाशाही में किसी भी आदमी को जब चाहे फना कर सकती है। क्या कोई आवाज जो सत्ता में शामिल पार्टी के खिलाफ है उठाने की इजाजत नहीं मिलेंगी।
ये वो सरकार है जो अपना इकबाल दिखाना चाहती है लेकिन उसको जगह नहीं मिलती। मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री पद पर चुनाव इस देश के लोकतंत्र को पहली चोट थी। देश के तमाम प्रधानमंत्रियों के नाम गिनवाने से बचते हुए ये कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह राजनीतिक तौर पर चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा या फिर इंद्र कुमार गुजराल जितनी भी हैसियत नहीं रखते है। लेकिन इनको युवराज के बालिग होने तक चरण पादुकाओं को सर पर रख कर चलने की इजाजत दी गयी थी। कोई दिग्विजय सिंह जैसे चाटुकार ये चरण पादुकाओं को युवराज को पहनाने से पहले उनमें कांटे भर सकते है।
जनार्दन द्विवेदी जैसे लोग सर्टिफिकेट बांट रहे है कि कौन साधु है और कौन शैतान। ये जनार्दन द्विवेदी कौन है भाई एक और परजीवि। गांधी नेहरू फैमली के किचन कैबिनेट में शामिल दिग्विजय सिंह की जगह हासिल करने की जुगत भिड़ाता हुआ एक बेचारा राजनीतिज्ञ। हम लोग व्यक्तिगत न हो तब भी इन लोगों के बयान अच्छे-खासे आदमी को परेशान कर सकते है।
दूसरों लोगों की शराफत की ओर इशारा करने वाले इन नेताओं ने रामलीला मैदान की कार्रवाई पर क्या सफाई दी है ये सुन लेते है।
दिग्विजय को लगा कि बाबा ठग है। जनार्दन द्विवेदी को लगा कि बाबा औरतों के भेष में भागा। कपिल सिब्बल को लगा कि बाबा योग करे राजनीति नहीं। और प्रधानमंत्री का बयान आप को इस लेख के शुरू ही मिला।
एक ठग के बुलावे पर आएं हजारों मासूमों को ये सरकार लाठी-डंड़ों और अश्रूगैस का उपहार देंगी। ये लोग क्या मांग कर रहे थे देश के गरीब और किसानों के लूटे गये धन को वापस देश में लाने की कार्रवाई करने की मंशा जाहिर करे सरकार। बस इतनी सी मांग पर गुस्सा गये जूते साफ करने की राजनीति करने वाले ये लोग। ओसामा बिन लादेन की मौत पर गुस्साएं दिग्विजय सिंह के बयान पर ध्यान देना बेवकूफी है। ऐसा पहली नजर में लग सकता है लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के महासचिव है इसीलिए जो भी कहते है उसमें कोई न कोई वजन तो जरूर होगा। लेकिन इन बेचारे की पार्टी में नहीं चली। चार-चार मंत्री जिनमें प्रणवमुखर्जी भी शामिल थे ठग का सम्मान करने गएं। लेकिन बेचारे दिग्गी की औंकात नहीं कि ठग का सम्मान करने वालों से इस्तीफा मांगे।
जनार्दन द्विवेदी की सरकार थी जो मुंबई हमलों का सामना कर रही थी। क्या उसको लग रहा था कि बाबा फिदाईन हमला करने आया है। क्या उसको भागने से बेहतर अपनी लाश जनार्दन के घर के सामने पहुंचा देनी थी। ये आदमी बात कर रहा है लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हैरानी की बात हो सकती है कि मीडिया के बौंने कैसे मारने भागे जब एक आदमी ने इस पर जूता उठाया।
कपिल सिब्बल का तो कहना ही क्या है। पार्टी के ट्रबल शूटर है। हर बार नयी ट्रबल के साथ आते है। खुद बेचारे वकालत करते थे अब राजनीति कर रहे है वकालत भी कर रहे है। पत्नी इम्पोर्ट -एक्सपोर्ट के धंधें में है। लेकिन दूसरा कैसे राजनीति कर सकता है ये बताना नहीं भूलते। ये वो है जो इतनी शर्म भी नहीं रखते कि सीएजी पर आरोप लगाने के बाद माफी मांग ले। सीएजी भी सरकार की है और सीबीआई भी। दोनो ने न केवल माना बल्कि इनके दोस्त राजा साहब जेल में है। लेकिन साहब फिर देश के सामने बेशर्मी का नया नारा ले कर आये है कि योगी है तो योग करें। फिर भाई आप अदालत के बाहर क्या कर रहे है।
बात व्यक्तिगत आरोप लगाने की नहीं है। लेकिन मन बहुत दुखी है। इस बात पर नहीं कि एक बाबा के समर्थकों पर हमला हुआ है। दुख इस बात पर है कि लोकतंत्र की इस सरेआम हत्या पर भी लोग बहाना ढूंढ रहे है। कुछ दिन पहले इसी ब्लाग में एक लेख में इस बात का अंदेशा जताया था कि बौंने मीडियावाले इस देश में एक हिटलर की तलाश कर रहे है लेकिन ये हिटलर इतनी जल्दी आएंगा ये लिखने वालों को भी अंदेशा नहीं होगा।
आखिर में ये कुछ पंक्तियां है उन्हीं कांग्रेसियों को समर्पित जिनकी पार्टी के नेता ने ही ये लिखी हैं।
महामहिम |
डरिए। निकल चलिए।
किसी की आंखों में
हया नहीं,
ईश्वर का भय नहीं,
कोई नहीं कहेगा,
"धन्यवाद"
सबके हाथों में,
कानून की किताब है,
हाथ हिला पूछते है,
किसने लिखी थी,
यह कानून की किताब ?
"श्रीकांत वर्मा"

1 comment:

शैलेन्द्र नेगी said...

burning article on burning issue...congress must answer if BABA is real thug so what was a necessity to welcome BABA RAMDEV. Congress and as well as UPA government should announce their policy regarding the corruption, black money and other nation wide issues.