पुरानी कहानी है कि एक ठग को दिल्ली के दरबार में पेश किया गया। राजा ने पूछा कि बता क्या खाओंगे 100 कोड़े या फिर 100 प्याज। ठग को लगा कि कोड़े खाने से बेहतर है कि प्याज खा ली जाएं। प्याज खाना शुरू हुआ और पांच दस प्याज के बाद ही ठग की हिम्मत जवाब दे गयी और वो चिल्लाया कि मुझे कोडे़ लगा दो।उसको कोड़े लगाने शुरू किये कि पांच-सात कोड़ों के बाद ठग चिल्लाया कि मुझे प्याज दे दो। फिर से प्याज खाना शुरू किया और कुछ देर में ही फिर से कोड़े मांगने लगा। कहानी का अंत तो इस तरह से हुआ कि ठग ने 100 प्याज भी खायें और कोड़े भी।
यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी के नेता इस कहानी को दोबारा से देश को दिखा रहे है।
लोकतंत्र को बचाने के नाम पर रात में सोते हुए लोगों पर ये बर्बर लाठीचार्ज किसी लोकतांत्रिक आस्था को हिला सकता है। लेकिन कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और पार्टी के नेताओं ने इस के समर्थन में बेशर्मी से बयान दे रहे है। मीडिया के तमाम समर्थन के बावजूद सरकार या पार्टी ऐसा कोई सबूत नहीं दे पा रही थी जिससे लोगों को उनकी बातों पर यकीन हो। लेकिन फिर भी यूपीए के लोग इस पर टिके हुए है। कांग्रेस के बकता महासचिव दिग्विजय राष्ट्र को संघ के हमलों से बचाने के लिए इस लड़ाई को आखिर तक लड़ने की बात कर रहे है। लेकिन कोई भी आदमी इस बात को देख सकता है कि जो फ्रेम में जड़ा जा रहा है उस फोटों के लिए ये फ्रेम नहीं बनाया गया है। आखिरकार कारण क्या है कि जो पार्टी अपने उपप्रधानमंत्री प्रणवमुखर्जी सहित देश के सबसे योग्य मंत्री कपिल सिब्बल को स्वामी रामदेव से मिलने एअरपोर्ट भेजती है वही अगले दिन उसे ठग साबित करने जुट जाती है। रात में पचास हजार लोगों पर लाठियां भांजती पुलिस भेजती है। ऐसा सिर के बल खड़ा होने वाला करतब दिखाने के लिए पार्टी ने अपने को कैसे तैयार किया। जनसमर्थन से पैदल दिग्विजय सिंह एकाएक पार्टी के रणनीतिकार में कैसे तब्दील हो गये। कैसे कपिल सिब्बल अपना वाक्-चातुर्य खोकर एक उलट बांसी सुनाने लगे। एक योगी योग करे राजनीतिक आसन न सिखाएं। खुद सालों तक बेचारे कपिल सिब्बल सिर्फ वकालत करते रहे। लेकिन अब दोनों कर रहे है टेलीकॉम राजा से कागज के प्रधानमंत्री की वकालत तक। सब लोगों को अचानक दिखने लगा कि संघ इस तरह की आग भड़का रहा है। पहले स्वामी रामदेव का मुखौटा इन लोगों को दिखा फिर अन्ना हजारे को भी यूपीए के मंत्री वहीं मुखौटा पहनाने में जुट गए। एक दिन पहले पैर छूने वाले अचानक पैर पकड़ कर कैसे पटक कर मारने वाले बन गए।
इस सवाल का जवाब आपको दिल्ली में नहीं लखनऊ में मिलेगा। यूपीए को हालिया लोकसभा चुनावों में उत्तरप्रदेश में चुनावी कामयाबी मिली थी उसने पार्टी को सेर से सवा सेर में तब्दील कर दिया। लेकिन उसके बाद युवराज राहुल की मेहनत की उनकी पार्टी के हवाई नेताओं ने हवा निकाल दी। पार्टी न अपना अध्यक्ष बदल पायी न ही माया से परेशान अपने कार्यकर्ताओं को कोई ठोस उम्मीद। कोढ़ में खाज वाली बात रही मुलायम सिंह का वापस मैदान में उतर कर फिर से ताल ठोंकना। दलाल की उपाधि से नवाजे गए अमरसिंह की पार्टी से बर्खास्तगी के बाद सपा अपने पुराने स्वरूप में वापस आने की जी-तोड़़ कोशिश में जुट गयी। मुस्लिमों को अपने साथ जो़ड़ने की मुहिम में मुलायम को अप्रत्याशित कामयाबी मिल रही है। और यही वो कुंजीं है जो रामलीला मैदान में हुई रावणलीला का ताला खोल सकती है।
कांग्रेस के अफलातूनी दिग्विजय सिंह जो मध्यप्रदेश में पार्टी को खत्म कर उत्तर प्रदेश के इंचार्ज बने है ने ये बात युवराज राहुल जी के दिमाग में उतार दी कि यूपी में जीत की कुंजी मुस्लिम वोटों के पास है। अगर रामदेव नाम के एक संयासी और स्वघोषित योगसम्राट जो जाति ये यादव भी है हमला बोला जाएं तो कोई संकट नहीं है। इसका राजनीतिक फायदा काफी है। इस योजना में दिग्विजय सिेंह को मदद मिली होंगी राहुल के आंख-नाक और कान यानि कनिष्क सिंह और भंवर जितेन्द्र सिंह के बिरादराना सहयोग से। पार्टी की मीटिंग्स में सोनिया को डराने के लिए ये बताना काफी था कि जितनी सीट यूपी में लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली थी उतनी संख्या भी विधानसभा चुनाव में नहीं छू पाएंगी। और यदि ऐसा हुआ तो युवराज राहुल की छवि को काफी नुकसान होगा। राहुल कांग्रेस के पूरे देश में नायक है लेकिन यूपी में तो वो कांग्रेसी सेना के घोषित कमांडर है। ऐसे में राहुल का मिशन प्रधानमंत्री भी खटाई में पड़ सकता है। अपने काम से ज्यादा कमजोर और दिशाहीन विपक्ष की बेवकूफियों के चलते सत्ता की मलाई काट रहे कांग्रेसियों को इससे ज्यादा कोई नहीं डरा सकता कि उनकी सत्ता की उम्मीद राहुल फेल हो सकते है। बस इस बात ने पूरी पार्टी को अपनी ही आत्मा के खिलाफ एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया। हो सकता है इस बारे में बहुत से ज्ञानियों को ये लग सकता है कि मुसलमानों के वोट को लेकर इतना दांव क्यों खेल रही है कांग्रेस तो उनको असम और केरल में हुए चुनावों के रिजल्ट पर निगाह डाल लेनी चाहिए।
पहली बार किसी राष्ट्रीय अखबार ग्रुप(टाईम्स ग्रुप) ने मुसलमानों में वोटिंग में धार्मिक पार्टियों को एक मुश्त दिये गये वोट पर चिंता जाहिर की। लेकिन अपना कोई रिश्ता इस चिंता से नहीं है। कांग्रेस को जिस तरह की सफलता असम में जिस तरह से यूडीएफ और केरल में मुस्लिम लीग को वोट किया गया उससे अखबार ने चिंता जाहिर की थी कि मुस्लिमों सेक्यूलर पार्टियों की विश्वनीयता खत्म हो रही है। इस बात से हमारा कोई सरोकार नहीं है लेकिन यहीं वो आंकडां है जो कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र समर्थकों को अपनी जुबान बंद करने के लिए मजबूर कर रहा है। पार्टी ने अब पूरी तरह से मन बना लिया है क्यों कि वो जानती है यूपी में उसके पास हिंदुओं का कोई भी ऐसा वोट बैंक नहीं है प्रतिक्रिया में भारतीय जनता पार्टी को मिल जाएंगा। लेकिन मुस्लिम ने अगर पीस पार्टी जैसी छोटी पार्टियों और समाजवादी पार्टी जैसी एक परिवार की पार्टी को वोट दे दिया तो कांग्रेस के युवराज को राजनीतिक तौर पर दीवालिया होते देर नहीं लगेगी। ऐसे में कांग्रेस ने अपने पर वापस इमरजेंसी के रोल में लौटने में गुरेज नहीं किया। हालांकि देश को इसकी कीमत काफी चुकानी पड़ेगी।
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