Thursday, October 29, 2015

हम तो शासन के नागरिक सुनहरे हो गएं ..

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चीख गले में गिरवी
हाथ जेब में
पैरों से कोई हलचल नहीं
हम शासन के नागरिक सुनहरे हो गए है ।
किसी पर मौत झपट्टा मारे
किसी को अपने पंजें में दबोचे
किसी को दिन में चीथ दे
किसी को रात में रौंद दे
हमारी आंख न देखती है
न हमारे कान सुनते है
न हम अंधें हुए है
न हम बहरे हो गए है
हम शासन के नागरिक सुनहरे हो गए है
सैकड़ों हो या हजारों
कोई एक भी आदमी छांटता है
दिन दहाड़े
चिल्लाता है मारो
चाकूओं से काटता है कोई
भरे बाजार सब्जी की तरह
किसी को गोली मारता है
सरे राह जैसे करे जंगल में शिकार
हर कोई हथियार
हर कोई शिकार
सब करे किसी का इंतजार
हम पर जैसे मौत के पहरे हो गए
हम तो शासन के नागरिक सुनहरे हो गए

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