Thursday, October 8, 2015

मेरे बेटे मेरे करीब रहना

पत्तों के बीच से छनकर आती हुई धूप
हरी-भरी फ़सलों से ढंकी ज़मीन पर दिखती पगडंडी
गोधूलि में लौटते हुए पशुओं के झुंड
सुबह बूढ़े नीम और बरगदों से उठतीं चहचहाटें
धूल के साथ दौड़ते बच्चे
खाटों के घेरे में हुक्कों की बंसी के साथ बुज़ुर्ग
तस्वीरों में सबकुछ तुम देख लो
मेरी आंखों से तुम वहां पहुंच नहीं पाओगे
मेरे हाथों को थाम कर चलो
या फिर मेरे क़दमों के निशानों पर चलो
एक भी राह तुम्हें उस तरफ नहीं ले जाएगी
किताबों में तलाशो
या फिर मोबाईल की रोज़ बदलती स्क्रीन में
उसका पता नहीं मिलेगा
और मेरी ज़ुबां से अब उसका कोई शब्द नहीं
हां लेकिन इतना ज़रूर जान लो
मेरी निगाहों में आए गीलेपन से
वो सब मौजूद था जीता जागता
मेरे आसपास
उसको महसूस किया
उसको जीया मैंने
और फिर उसको ढोकर पहुंचा दिया
धरती के उस पार
जहां तुम्हारी कार, रेल और जहाज़ नहीं जा पाएंगे
आसमान को छूती हुई इस मंज़िल से
तुम बादलों को देख सकते हो लेकिन उनको नहीं
इसीलिए कुछ दिन
और
छू लो मुझे
कुछ दिन बात कर टोह लो उस अतीत को
जिसको मेरे पूर्वज ले आए थे मुझ तक
इस उम्मीद में सौंप कर चले गए
मैं पहुंचा दूंगा तुम तक
कुछ और बढ़ाकर
लेकिन
मेरी भूख
मेरी प्यास
मेरी नजर
और
मेरी नादानी
इन सबने मिलकर
तुमसे छीन लिया
बिना तुम्हारे ये जाने
कि गोदी में उछालते वक्त
सोचता हूं
कि तुम को छू लें वो पत्ते
तुम को दिख जाए वो ज़मीन
और मेरी लोरी में ही सही
तुम सुन सको चिड़ियों की चहचहाटों को

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