Monday, October 5, 2015

दौंड़ों जब तक की भीड़ के हत्थे न चढ़ों .................

दौंड़ों, भागो, और तेज
बचने के लिए उन्मादी भीड़ से
हाथों में हंसियें, कुदाल है
उनके हाथों में फावड़ें और खुरपे भी है
और हाल ही में हासिल हुए तमंचे भी
उनको तलाश है किसी की भी
जिसका चेहरा मोबाईल की स्क्रीन के चेहरे से मिलता हो
मौत की प्यास लिए आती हुई इस  भीड़ से बचो
तुम्हारे साथ दौड़ती है
खून की धारें
इस खून से नहीं मिलता है तुम्हारा खून
तो इसमें तुम्हारी दौड़ और तुम्हारी चालाकी है
क्योंकि तुम पार कर आएं हो वो भीड़
और जो नहीं कर पाएं उनका खून जमीन पर दौडता है
पनाह पाने के लिए
खून से सने हाथों में, प्यास बुझाती भीड़ के नारों में
आवाज की ऊंचाईंया, जगह और चेहरे बदलते रहते है
लेकिन भीड़ जस की तस रहती है
उठो
यहां छिपो नहीं
तुमको तलाश रहा है दरोगा
उसके सिपाही
उनको तलाश है गवाहों की
उस भीड़ के खिलाफ गवाही की
मारे गए लोगो के नाम-पते उनके पास है
लाशों का पंचनाम किया जा चुका है
उनको माले-जब्ती और
मौका ए वारदात का गवाह चाहिए
तुम पर निगाह है
तुम को तलाश रहे है
बचों और छिपो
क्योंकि भीड़ में उनके अपने चेहरे है
वो भीड़ के हर चेहरे को पहचानते है
उनके कानों में कभी आती नहीं है कोई भी आवाज
उनकी निगाहों में कोई भी हथियार
तब तक हथियार नहीं है
जब तक उस के पास उन्हें देने के लिए कुछ न हो
पुलिस की निगाह में तुम भागे हुए सबूत हो
सबूत सात तल के नीचे भी नहीं छोड़ती है पुलिस
गुम हो जाओं
कि तुम को तलाश रहे है
खादी के कपड़ों में बैठे हुए गिद्द
उनकी नजर में आ चुका है सब
वो देखते रहे भीड़ को दूर से कही
उनकी निगाह में नारे और हथियार
दोनो की पहचान साफ है
हथियार उन्होंने दिए है
नारे उनके लिए गढ़े गए है
उनको मारे गए लोगो के खून की खुशबू मालूम है
झुंड के झुंड पहुंच जाएंगे भीड़ के साथ
और भीड़ के खिलाफ
अपनी सुविधा और स्वाद के अनुसार मांस नोंचने
उनको दिख गया है तुम्हारा भागना
वो तलाश करते है तुम्हारी
एक ऐसे चारे की तरह
जिसको डंडी पर लगाकर
भींड को आगे-पीछे करके
फिर से काम पर लगाया जा सकता है
दिखो नहीं, आवाज मत करो
सांस भी मत लो
तुम्हारी टोह में
मीडिया
जनता के नाम पर सच दिखाने वाले
बौंने से लोगो के हाथों में
खून से सनी जाने कितनी कहानियां
उऩके हलक में जाकर
उतरती है पैग के साथ ही नीचे
उदरस्थ हो जाती है कही अंधेंरों में
जहां से पैसों की रोशनी में दिखाई देती है
उनकी निगाहों में तुम्हारी तस्वीर है
तुम एक बार दिख जाओं
फिर वो रेशा-रेशा
रेजा-रेजा
तुम्हारी निगाहों से हर सीन को निकाल लेंगे
तुम्हारी आत्मा की आवाज
जिसको तुम नहीं सुन पाएं हो जो सुन लेगे
कई बार डर जाओंगे
कि कितना डर था उस वक्त भागते हुए
जब वो तुम्हारे डर को अपने मुंह से बोलेंगे
कुछ पल उनके, तुम्हारे पैर छूने से लेकर
तुम्हें लालच और धमकी दोनों देने में गुजरेंगे
एक खास तरीके से एक खास मीडिया ही
तुम्हारा सच कह सकता है
वो सच जो तुमने भुगता है
लेकिन तुमसे ज्यादा वो जानते है
ये बौंने रात होते ही अपने मुखौंटे उतारते है
दारू से धोते है हाथों पर चढ़े खून के रंग
दांतों में फंसी बोटियां को खींचते है
अपने किसी शिकार का नाम से गले तक उमड़ आई हंसी से
तुम्हारा घर अब ये तुम्हारा नहीं छोंडेगे
उसको बाजार कर देंगे
तुम्हारे घर के दरवाजें, कमरों को
सुंरगों में तब्दील कर
गुजरेंगे ऐसे
बारूदों के बीच से गुजर रहे हो जैसे
इन सब से बच कर निकलो
तो सरकार सूंघ रही है तुमको
क्या तुमने बचने का टेस्ट पास किया
या फेल हो गए हो तुम
अपने को बचाने में
और इसी के आधार पर
गिद्द तय कर देंगे तुम्हारे बचे हुए
और सड़क पर गिरे हुए सर की कीमत
चलो दौडों कि जब भी कोई भीड़ दिखाईं दे
बचों कि जब कानों में किसी नारे की आवाज सुनाई दे
और इन सब के बीच जिंदा तुमसे लोगो को
प्यार की उम्मीद है
चमत्कारी की उम्मीद है
तुम जो एक यौद्धा हो
तुमने एक जंग जीत ली है
तुम को जिंदगी से प्यार है

जब तक तुम अगली भीड़ के हत्थे न चढ़ जाओं

No comments: