सर्द रातों में. रजाईं के अंदर मुड़ें हुए सपनों की दुनिया में
कुछ आवाजें आकर दस्तक देती थी
धीमें-धीमें अँधेंरे में रोशनी को टटोलती आंखों को
दिखता था बीच में रखा एक अंगार
कुछ देर में दिमाग जागता था कि
रात के आखिरी पहर में
हुक्के की बंसी नाच रही है
एक हाथ से दूसरे हाथ और बीच में सुलग रहा चिलम का अंगार
हमेशा मुझे एक अचरज रहा कि कैसे अंधेंरे में
खाटों के घेरे में बैठें ये बुजुर्ग एक दूसरे के हाथ से ले लेते है हुक्के की बंसी
उन्हीं आंखों के सहारे जिनसे दिन में भी कम दिखता है।
फिर से मेरी आंखें मूंद जाती
जब अम्मा की आवाज से आंखें खुलती तो देखता दिन चढ़ आया घर के कच्चे आंगन में
ताऊजीं और चाचा सब तो जंगल चले गएं।
एक दिन मैंने ताऊ जी से पूछ लिया
क्या करते हो ताऊ जी आप रात के अंधेंरे में जब कोई भी नहीं दिखता बिस्तर के बाहर
हंसी से बिखरते हुए ताऊजीं ने कहा
कि हम दिन को बोते है तुम्हारे लिए
ताकि वक्त का खूड़ तुमकों सीधा मिले।
उनकी हंसी मेरे जेहन में बनी है आज भी
जैसे घर के साफ आंगन में कोई बिखेर दे सफेद चावलों को चादर से उछाल कर।
साल दर साल मैं बड़ा होता चला गया
कम होता चला गया बंसी के हुक्के का घेरा
और मेरा गांव आना जाना।
राजधानी में कभी जरूरत नहीं पड़ी बोए हुए दिन को काटने की
सालों बाद गांव में लौटा
घेर में अकेले बैठे हुए तांबईं से चेहरे वाले ताऊजी को
नौकर के हाथ से भरे हुए हुक्के की बंसी को हाथ में पकड़े हुए
बेहद उदास आंखें, डूबी हुई आवाज से वक्त की डोर को पकड़े हुए
मैंने देखा अब कोई संगी-साथी नहीं है उनके साथ।
लेकिन कई बार बात करते हुए वो भूल कर अपना हाथ बढ़ा देते है अगली खाट की तरफ
जैसे थाम लेगा कोई हुक्के की बंसी को उनके हाथ से
फिर सहसा नींद से जागे हो जैसे वापस अपनी ओर खींच लेते है।
रात को उसी आंगन में सोते वक्त सालों बाद देखा उगे हुए चांद को ठीक उसी तरह
अपने छोटे से बेटे को बगल में लिटाएं
रात भर देखता रहा एक अकेले बूढ़े इंसान की उलझन को
मैं रात भर देखता रहा कब रात का आखिरी पहर हो
कब ताऊं जी उठें औऱ कोई खाटों के बिछे घेरे से थाम ले हुक्के की बंसी
फुसफुसाहटों के शोर से उठ जाएं मेरा बेटा
और ये देख ले कि किस तरह से दिन को बोते है बुजुर्ग
ताकि उसके लिए वक्त का खूड़ हमेशा सीधा रहे।
ताऊ जी की खांसी की आवाज नौकर का उठकर चिलम भरना
और मेरे अंदर जम गएं सन्नाटे में बस एक आवाज थी जिसको गले का रास्ता नहीं मिल रहा था।
ताऊजीं एक बार फिर से दिन को बो दो
मेरे बेटे के लिए ।
1 comment:
sunder kavita..gaanv ka poora ka poora badlata jeevan is kavita main zhalak raha hai.
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