ईश्वर ने जब अपने बेटों की ओर देखा और सोचा कि इनमें से कौन सा बेटा बाकि सब का ख्याल रखते हुएं अपने छोटे भाईयों का पेट भरेगा। फिर उसने सबसे सीधे और विनम्र बेटे को कहा कि तुम्हें अपने भाईयों का ख्याल रखना है। ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तु्म्हारा कोई भाई तुम्हारी वजह से भूखा नहीं सोना चाहिए। और इस सबका पेट भरने के लिए जरूरी है कि तुम सबसे ज्यादा मेहनत करो। दुनिया तुम को किसान के नाम से जानेगी। किसान ने अपने भाईयों को लिया और उसके बाद उसने धरती का सीना चीर कर फसलें पैदा की और अपने भाईयों का उनके परिवार का पेट पाला।
ये कहानी कितनी सच है ये तो नहीं मालूम है लेकिन मानव विकास के दौरान किसानों ने अपने खून-पसीने से इंसानी समाज को सींचा।
लेकिन जब किसान के भाईयों ने अपने रोजगार फैलाने शुरू किये तो उनको अपने उस भाई का ख्याल नहीं आया जिसने उनको जिंदा रखने में सबसे ज्यादा मेहनत की थी। दलालों, व्यापारियों और सरकारों के बाद किसान को लूटने की बारी बिल्डरों की है। जातियों के नायक बन कर सिर्फ समीकरणों के सहारे सत्ता चलाने का वैधानिक अधिकार हासिल करने वाले बौने नेता सकार बन गए। बौने नेताओं की लाठी बने ब्योरोक्रेट्स जिनको विेदेशी शासकों ने गुलाम हिंदुस्तान की लूट को सुगम बनाने के लिए पैदा किया था। इतने शक्तिशाली कि हजारों करोड़ की लूट के बावजूद उनपर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति मिलने में सालों कभी कभी तो दस साल लग जाएं। इन दोनों ने जब किसानो को हर किस्म से निचोड़ लिया तो एक नयी कौम पैदा कर दी और इसका नाम दिया बिल्डर। छोटे-छोटे सौदों में दलाली खाने वाले प्रोपर्टी डीलर अब शहर बसा रहे है। शहर बसाने के लिए जो जमीन चाहिए वो सिर्फ किसान के पास है लिहाजा उनके इशारे पर टके के राजनेता और रीढ़विहीन ब्यूरोक्रेट किसानों से जमीनें छीन कर उन हवाले कर दे रहे है।
देश भर में किसानों और सरकारके बीच जमीन के अधिग्रहण को लेकर झगड़े-आन्दोलन और प्रदर्शन जारी है। इसी कड़ी में ग्रेटर नौएड़ा में शुक्रवार को जो फायरिंग हुई और दो किसान मारे गए। कई महीनों से प्रदर्शन कर रहे इन किसानों के साथ झड़प में दो पुलिसकर्मियों की मौत भी हो गई। इस खबर को लेकर न्यूज चैनल्स और अखबारों ने काफी वक्त दिया। राजनीति पर बात करना ऐसे है जैसे कोढियों में खाज के गीत गाना है। सत्ता में जो पार्टी है उसको अपनी कार्रवाई को जायज ठहराऩा है विपक्ष में बैठी तमाम पार्टियां इस वक्त देवदूत की तरह से सरकार के खिलाफ बयान जारी करेंगी या कर चुकी होगी। इस पर बात करना भी उल्टी करने जैसा ही है। कि ये नेता जब सत्ता में थे तब क्या हुआ था। उस वक्त अंग्रेजों के वक्त से चले आ रहे भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के लिए उऩ लोगों ने क्या इस बारे में को जवाब नहीं मिलेगा और न ही कोई सवाल खड़ा करेगा। लेकिन मैं इस बारे में नहीं सोच रहा हूं। मेरे जेहन में सिर्फ वो खबर है जो न्यूज चैनलों ने दिखाईं और बार-बार दिखाईं। खबर थी ग्रेटर नौएड़ा के डीएम यानि जिलाधिकारी या जिला कलेक्टर को गोली लग गयी। तस्वीरों में ्चो कलेक्टर भाग रहे थे और उनका घुटना खून से सना हुआ था। पूरे न्यूज चैनल्स को लग रहा था कि गुंडों और बदमाश किसानों ने संभ्रात डीएम पर गोली चला दी। कई न्यूज चैनल्स सरकार को इसलिए कोस रहे थे कि किस तरह से कानून व्यवस्था चल रही है डीएम तक पर फायरिंग हो रही है। इसी कड़ी में अगले दिन एक अखबार में खबर थी कि डीएम की पत्नी ने अस्पतालमें गुस्से में मीडिया के कैमरे वगैरह छीन लिये थे। कवरेज को लेकर नाराज थी। लेकिन गांव में पुलिस ने किसानों की फसलें जला दी बुरी तरह से मार की। औरतें और बच्चों का क्या हुआ। इस सब के लिए आपको फोटों और वीडियों दिख सकते है लेकिन इसकी वजह किसानों को बताया जायेगा प्रशासन को नहीं। मारे गए किसानों के बच्चों का भविष्य क्या होगा। किस तरह से उसकी पत्नी अपनी जिम्मेदारियां का निर्वहन करेंगी क्या उसको भी इतना हक होगा कि वो अपने पति की लाश के फोटों खींच रहे फोटो जर्नलिस्ट के कैमरे छीन लेंगी। जवाब में आपको शायद भी लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी आपका जवाब होगा बच्चें सड़कों पर पलेंगे और बीबी शहर में जाकर बर्तन मांज सकती है और बर्तन मांजने वालियों का कोई निजता नहीं होती।
इस सबके बीच मीडिया की औकात नापने का पैमाना चाहिए तो देखिये कि जिस प्राईवेट कंपनी यानि जे पी गौर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार दलालों की तरह से ये काम कर रही है उसका नाम तक लेने में अखबारों और न्यूज चैनलों के पसीने छूट रहे है। किसी विपक्षी नेता की औकात नहीं थी कि वो जे पी गौर की भूमिका की जांच करने की मांग करता। और अब ये भी जान लीजिये कि जिस एक्सप्रेस वे के लिए ये जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है उससे अमीरों के सिर्फ 90 मिनट बचेंगे। ये 90 मिनट कितने कीमती है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सरकार हजारों किसानों के बच्चों को यतीम कर सकती है।
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