सुबह-सुबह घर में बड़ा हल्ला-गुल्ला मचा था। सारे नौकर इधर से उधर भाग रहे थे। पीए भी पसीना-पसीना हो रहा था। आखिर मामला जूतों का था। वहीं जूते जिन को पहन कर एमपी अमरसिंह बयान जारी करते है। ठाकुर अमर सिंह से अफलातून हो जाने वाले बयान। ऐसे में अमर सिंह के वही प्यारे जूतें गायब हो तो परेशानी स्वाभाविक है। अमरसिंह की त्यौंरियां चढ़ी हुईँ थी आखिर उनकी जुबान माफ करना जूतें घर से कहां गायब हो गये। थोड़ी देर में एक नौकर ने आकर कहा साहब जूतों का पता लग गया है। लेकिन अब जूतें घर में नहीं है।अमरसिंह ने पूछा कि कहां है जूते, नौकर ने डरते-डरते हुए कहा, टीवी देखिएं साहब। टीवी पर दिग्गी राजा का भाषण चल रहा था। और उनकी जुंबा जो उगल रही थी उसके बाद अमरसिंह का शक गायब हो गया था कि अमरसिंह के जूतें माफ करना जुबान अब दिग्विजय के पास है। पिछले कुछ दिनों से राजनीतक रिपोर्टिंग कवर करनेवाले रिपोर्टर को समझ में नहीं आ रहा है कि अमर सिंह और दिग्विजय सिंह के बयानों में अंतर खोजना क्यों मुश्किल होता जा रहा है। अमरसिंह ने समाजवादी पार्टी में रहते वक्त अपने उल-जलूल बयानों से टीवी चैनलों में खूब सुर्खियां बटोरी थी। अब अमरसिंह राजनीति के कूडेंदान में है तो ये जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने अपने कंधों पर ली हैं।
बचपन की एक कहानी याद आती है कि एक गांव में रामलीला चल रही थी। लेकिन राम का अभिनय कर रहे बच्चें की तबीयत खराब हो गयी। ऐसे में उस रोल के मुफीद कोई बच्चा नहीं मिला तो एक मजदूर के बच्चें को पकड़ कर उस दिन राम का रोल दे दिया गया। गांव में मुख्य अतिथि जो इलाके का जाना-माना बदमाश को भी आना था। बच्चा जब लकड़ी के तीर कमान जिन पर चमकीली पन्नी चढ़ी थी और पीतल का मुकुट पहन कर स्टेज पर पहुंचा तो गांव के हर आदमी ने खडे़ होकर कहा जय श्री राम। रामलीला शुरू होने से पहले बच्चें की आरती की गयी और परंपरा के मुताबिक मुख्य अतिथि यानी उस बदमाश ने भी बच्चें के पैर छुएं। बच्चा बहुत हैरान था कि रोज गालियों से नवाजने वाले ये लोग उसको आज इतना सम्मान क्यों दे रहे है। थोड़ी ही देर में उसने अपने दिमाग में तय कर लिया कि ये सब इस मुकुट और तीर कमान की वजह से है। अब उसने निश्चय कर लिया कि वो इस तीर कमान और मुकुट को चुरा कर भाग जाएंगा। रामलीला के खत्म होते ही वो बच्चा मुकुट और तीर कमान के साथ गायब हो गया। अगले दिन सुबह-सुबह बच्चा रात के मेकअप में जब निकला तो गांव के लोग उस पर हंसने लगे, ठहाके लगाने लगे, बच्चा चकरा गया कि ये लोग रात-रात भर में किस तरह से बदल गए है। अमर सिंह के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। मुलायम सिंह के मजमें में कुछ दिन का मेहमान बनने के बाद अमरसिंह अपनी जुंबान और जूते के साथ भाग निकले लेकिन अब उनको कोई भाव नहीं दे रहा है।
दिग्विजय सिंह का आजकल हाल कुछ ऐसा ही है। राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले भी जानते है कि दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में कांग्रेस का भट्ठा बैठाने के बाद दिल्ली पहुंचे। उनको उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई। कुछ दिन बाद दिग्विजय की किस्तम का सितारा बुंलद हुआ और कांग्रेस के घोषित सेक्युलर सम्राट अर्जुन सिंह हाईकमान की नजर से उतर गए। और स्वास्थ्य संबंधी कारणों और उससे भी ज्यादा मुस्लिमों में अपनी अपील के खत्म होने से घर बैठ गए अर्जुन सिंह की जगह खाली हो गयी। अपनी राजनीति की शुरूआत अर्जुन सिंह के जूतों में बैठकर करने वाले दिग्विजय सिंह को मौका अच्छा लगा और एक दिन वो अर्जुन सिंह के जूतों में अपना पैर घुसा कर दिग्गी ने अपनी राजनीति के सेक्यूलर रथ की यात्रा शुरू कर दी। उसके बाद से उनके बहुत से अफलातूनी बयान आएं और लोगों को यकीन हो गया कि अर्जुन सिंह के जूतों में दिग्विजय सिंह के पैर सही नहीं जम पाएं। तब अमरसिंह के खाली रखे जूतों का ख्याल दिग्विजय सिंह को आ गया और एक रात उन्होंने वो जूते पहन कर शुरू कर दी अपनी जुबान यात्रा। खास तौर पर अण्णा की टीम पर भ्रष्ट्राचार को लेकर हमले शुरू कर दिए। ये बात अलग है कि दूसरों की भ्रष्ट्राचार की निंदा करने वाले दिग्गी की घिग्गी बंध जाती है जब उनके सामने शरद पवार और दूसरे उनकी खुद की पार्टी के नेताओं का काला चिट्ठा सामने आता है।
गौर करने की बात है कि काफी दिन तक दिग्गी और अमर दोनों नेताओं ने आपसी गाली-गलौज की जुगलबंदी करने के बाद गलबहियां शुरू कर दी। कारण अज्ञात है। लेकिन हालिया बयान दिग्गी का आया है। रही बात अमर सिंह तो वो अब पैसे देकर भी पत्रकारों को बुलाएं तो नहीं आते है। उनकी प्रेस क्रांफ्रैंस कुछ नाटक के कारण कभी-कभी चर्चा का विषय बन जाती है। बेचारे जन नेता तो कभी बन नहीं पाएं लेकिन टीवी के लिए मनोरंजन जुटाने में हद तक कामयाब हो गए थे। अब अमरसिंह की समाजवादी पार्टी से रूसवाई के साथ दफा होने के बाद से उनकी धार कम हुई तो मीडिया मनोरंजन का जरिया बन गएं दिग्विजय सिंह।
ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद दिग्विजय सिंह को याद आया कि आतंकवादी या फिर कोई अपराधी मरने के बाद उसके शव को धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उसका सम्मान करना चाहिएं। हां इस बात को और साफ कर देना चाहिये कि निजि तौर पर दिग्विजय सिंह से कोई वास्ता हमें नहीं है लेकिन हिंदुस्तान जैसे देश की सत्ता संभाल रही पार्टी के जनरल सेक्रेट्री की कोई तो हैसियत होती होगी। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी की मौत के बाद उसके सम्मान का नारा लगाने वाले दिग्गी के इस बयान से पूरे देश को ही आपत्ति होगी। वोटों की फसल काटने की उम्मीद करने वाले दिग्गी को ये जवाब जरूर देना चाहिये कि अमेरिका को उनकी सरकार ने इस आंतकवादी की गिरफ्तारी या फिर मौत के लिए क्या इनपुट दिए थे। इनकी सरकार से क्या बातचीत की थी। इनका मिलिट्री सहयोग लिया था या फिर कोई दूसरा कारण कि अमेरिका को दिग्गी राजा के बयान पर ध्यान देना क्यों चाहिये था। ये ऐसे बयानवीर है कि ओबामा ने सुबह नाश्तें में जो मुर्गा खाया उसको हलाल किया या नहीं इस पर भी बयान दे सकते है। देश को इस पर क्यों ध्यान देना चाहिए सवाल तो ये भी है। लेकिन एक अरब लोगों वाले देश में एक सत्ता संभाल रही पार्टी का नेता ऐसे बेसिर-पैर के बयान देता है तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक है। अमेरिका ने पाक-साफ देश नहीं है।लेकिन वो एक देश है जिसका अपने नागरिकों के लिए एक वादा है कि वो उनके लिए सब कुछ करने को तैयार है।
ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी कमांड़ों द्वारा इस तरह मारने के बाद हिंदुस्तानी तथाकथित नेशनल मीडिया को भी ये जोश चढ़ा हुआ है कि हिंदुस्तान को दाउद इब्राहिम को मारना चाहिएं। कभी सेनाध्यक्ष बयान देते है तो कभी पूर्व विदेश मंत्री। टीवी पर खूबसूरत मेकअप के बाद अपनी बेवकूफाना भरी बातों से देश को उल्टी-सीधी जानकारी देने वाले ऐंकर हाथों की आस्तींनें चढ़ाएं बस एक ही बात कर रहे है कि अमेरका की तर्ज पर पाकिस्तान में दाउद का इलाज करना चाहिएं और हां एक और शब्द उधार ले लिया है सर्जिकल स्ट्राईक। आधे से ज्यादा ऐंकर वो है जो निठारी कांड में मंनिनदर और कोली दोनों को किडना सप्लायर साबित करने में जुट गएं थे। बिना ये जाने कि भैय्या किडऩी और सेम का बीज अलग होता है ऐसा नहीं है कि एक की जेब से निकाल कर दूसरे कि जेंब में डाल दिया। हां इतना जरूर जान ले कि ऐंकर जो बोलता है वो सामने स्क्रीन पर पढ़ता रहता है।
देश की सड़कों पर एक लाख से ज्यादा मौत सड़क दुर्घटनाओं में होती है। लेकिन अंग्रेजों के समय से पैसों वाले के मददगार कानून में इतने बदलाव के लिए तो मीडिया लड ले कि भैय्या एक्सीडेंट में किसी को मारने वाले की जमानत थाने से न हो। बेवकूफ बनाने वाले कानूनों से बेहतर है कि कोई सख्त कानून आएं ताकि अपनी मनमानी से किसी कि जान लेने वाले को थाने से जमानत न मिल जाएँ। अमरसिंह के जूतों से चल रहे दिग्गी बाबू को इस पर ध्यान देना चाहिएं कि किसी आतंकवादी की मौत पर रोने से बेहतर है कि वो इस कानून पर सवाल उठाएं. लेकिन मुस्लिम वोटों को लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा हो तो एक काम कर सकते है ये सिर्फ सलाह है माने न माने उनका काम कि लादेन के नाम से राघोगढ़ में अपनी हवेली में एक मजार बना दे और रात दिन उस पर दिया जलाएं हो सकता है उनकी बंद दुकान में इस बहाने ही सही वोटों के ग्राहक आ जाएं।
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