मेरे बचपन में,
मैं डर सकता था किसी से भी
मेरे वक्त में नहीं बिका था डर
ऐसे में मुझे ही तय करना था
बचपन को रंगीन करने के लिए
किससे डरना है मुझे।
मैं गांव के किनारे बने रेत टीलों से डरा
घरों में सुनसान पड़े कमरों से भी डरा
मैंने डर कर देखा पीपल के पेड़ों को
अंधेंरे में तेज हवा से झूलते
हल्के-फुल्के पेड़ों से भी डर लिया कभी-कभी
रात को घेर में सोते वक्त
मुझे
अहसास हुआ कि कभी भी आ सकता है
सिर कटा हुआ भूत, या बैचेन डायन
मैंने पसीने से भीगी रात काट दी
मां की बगल में या पिता के साथ लिपट कर
सारे डर की बनी डोर में
जो सच्चा डर था
ताऊजी की पिटाई का,
या
कभी कभी मैं कुछ सामान टूट जाने से
मां से भी डर सच्चा होता था।
डर के हजार आईनों में देखता था
तो सबसे बड़ा डर मां ने दिया
झूठ बोलना यानि पत्थर हो जाना
किसी प्यासे को पानी न देना
यानि अगले जन्म में प्यासा रहना
भिखारी को डांटना
मतलब कई जन्मों तक
भूख के रेगिस्तान में भटकना
ऐसे डर के बहुत से रंगों से
बुनता रहा जिंदगी की चादर
मेरी जिंदगी में डर का दायरा
मेरे डर से भी छोटा था
जिसकी सीमा में आ जाते थे
गांव के सूने पड़े मंदिर
शहर के बीच में बना स्कूल
जिसमें खूबसूरत जीनों से फिसलते वक्त
आत्माराम मास्टर जी का डंडे का डर
याद न करने के बावजूद
भूल जाना क्लास में
कि
आज टेस्ट है जिसके नंबर पिताजी की मेज पर रखने है
इस सब डर से निकल कर महानगर पहुंच गया।
लेकिन
पांच साल के बेटे की जिंदगी में
जब भी दखल देता हूं
लगता है कि डर भी डर नहीं है उसका
जल के डर बाजार के बडे होने के साथ ही बदल गये
अब उसको कोई बूढ़ी औरत नहीं डरा पाती है
उसको डर नहीं लगता है किसी अंधेंरे कमरे से
बिल्डर ने हर कमरे में रोशनी के लिए प्लान बनाया है
इस शहर में बिना पोस्टर लाउड्स्पीकर के कोई मंदिर नहीं है
वीरान पड़े घर किताबों में सिमट गये।
अब उसको डरना पड़ता है
हर उस डर से जो बिक सकता है।
डोर में कीआई नहीं है
सिक्योरिटी के कैमरे नहीं है कॉलोनी में,
नया पैगासिस आया है
बहुत खतरनाक
घर के बाहर आवारा गाडियों से डर है
कुचल सकते है गाडियों में चलने वाले राक्षस
भीख मांगने वाले उठा सकते है
खाकी वर्दी वाले उठाकर बेच सकते है
अंग बेचने वाले,
इंसानी जिस्म को बेचने वाले
ऐसे तमाम डर से घिरा
आयुध
उसके पास एक भी डर ऐसा नहीं है जो
उसने भरा हो अपने बचपन के कैनवस पर
आलीशान और एअर कंडीशन्ड
आफिसों में तैयार हो रहा है डर
घर में चल रहे टीवी के
हर फ्रेम में उतर रहा है डर
सच की रोशनी में सदियों के भूतों की
झूठी समझी गई कहानियों से
सिल्वर स्र्कीन के सहारे
उसके दिमाग में भर दिया डर
अब डर जीने से फिसलने पर नहीं
रिपोर्ट कार्ड में गिरने से लगता है
प्रलय की झूठी खबरों के बीच
दुनिया तबाह करने के रोजमर्रा के
खबरी झूठों के बीच जनमता है डर
ऐसा डर जिसमें उसका कुछ भी नहीं है
सिवा उस डर के जो उसके बीच समा
गया है खबरों के स्ट्रिंगर की तरह
वो नहीं डरता है मेरे डर से
मैं हर पल डरता रहता हूं उसके डर से
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