Wednesday, May 18, 2011

ये युवराज भी बौना निकला ?

नेशनल न्यूज चैनलों के दफ्तरों में अचानक सनसनी फैल गईं। राजनीति में टीवी चैनलों के सबसे बड़े ब्रांड औऱ देश के अघोषित युवराज बयान दे रहे है। किसानों की राजनीति के टाट में मखमल का पैंबद हो रहे है आजकल ये युवराज।हम भी टीवी के सामने जम गएं कि देखें युवराज की जुबांन से क्या निकलता है। कलावति और गन्ना किसानों के बाद अब युवराज की किस मांग से कांग्रेंस के चारण अपना गला तर करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। देश में राज कर रही पार्टी के युवराज है ये और लोकतांत्रिक भाषा में पार्टी के महासचिव और सांसद भी है। लेकिन उनकी जबान से निकले आरोप तो नगर निगम के पार्षद से भी गये-गुजरे थे।
राजधानी से सटे हुए उत्तरप्रदेश के एक गांव की जमीनों पर बिल्डरों की निगाह है। देश के सबसे बड़े लुटेरों में बदल चुके ये बिल्डर भ्रष्ट्र मुख्यमंत्रियों और नौकरशाहों को जूतों की नोंक पर रखते है। ऐसे ही एक मामले में भट्टा पारसौल गांव के किसानों की जमीन को राज्य सरकार अधिगृहित कर एक कुख्यात बिल्डर को दे चुकी है। लेकिन किसानों ने बाजार भाव से मुआवजें की मांग की और जमीनें देने से इंकार कर दिया। सत्ता के नशे में मदहोश दलित की बेटी और राज्य की मुख्यमंत्री के लिये तो ये अंग्रेजी राज में किए गए विद्रोहों से भी बुरी बात है। जातियों के दम पर चुनी गई सरकार के लुटेरों को ये बात नागवार गुजरी। आजादी के बाद से ही वर्दी में गुंड़ों के तौर पर काम कर रही पुलिस ने गांव पर हमला बोला दिया। कानून के दम पर किस किस्म की गुंडईं की गई इसके निशान टीवी चैनलों की फुटेज और अखबारों की फोटों से किसी को भी दिख जाएंगे। नादिरशाह ने दिल्ली को जिस तरह से रौंदा था उसी तरह से रौंदा गया होगा वो छोटा सा गांव।
और मीडिया की सुर्खियों के बीच एक दिन युवराज वहां छिप कर पहुंच गएं। वहां से लौटकर प्रधानमंत्री से कुछ किसानों को मिलवाने के बाद मीडिया के आतुर कैमरों को युवराज ने बयान दिया कि गांव में राख के ढ़ेर है जिसमें किसानों को जला कर राख कर दिया। पुलिस ने घर लूटे और औरतों के साथ बलात्कार भी हुए। देश के युवराज ने ये सब आरोप राष्ट्रीय मीडिया के सामने लगाएँ। हमेशा की तरह युवराज की जर्रानवाजी पर खुश मीडिया में से किसी ने ये सवाल नहीं किया कि क्या ये मंच है। केन्द्र सरकार को संविधान से शक्ति हासिल है कि वो गैरकानूनी काम करने वाली राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकती है। राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।
लेकिन युवराज को आरोप लगाना था और तीसरे दर्जे के सनसनीखेज बयानों से यूपी के चुनावों के लिए गिरे-पड़े और कूड़ादान में पहुंच चुके कांग्रेसियों को योद्धा की पोशाक पहनानी थी। लेकिन ये सवाल कहीं से नहीं आया कि पिछले 63 सालों से पुलिस कानूनों में युवराज की पार्टी ने कभी बदलाव नहीं किया। किसानों से जमीनें लूट रही सरकारों के अधिग्रहण संबंधी कानूनों में बदलाव नहीं किये गये। बुनियादी किसी किस्म का बदलाव नहीं किया युवराज की पार्टी ने। सांसद उनके पास है केन्द्र सरकार उनके पास है। आजादी के 62 साल से ज्यादा के समय में ज्यादातर हिस्से में युवराज के पिता, दादी, और दादी के पिता ने राज किया है। लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि किसानों की जमीनों को किस तरह से लूट से बचाया जा सकता है। कैसे देश की आम जनता के लिए मुसीबत बन चुकी पुलिस को ब्रिटिश झंडें की सोच से मुक्त कराया जाएं। न ही ये सोचा गया कि आजादी के दीवानों के परिवार को गोलियों से भूनने वाले, उनके बच्चों को भाले की नोंक पर बींधने वाले और औरतों की सरेआम इज्जत लूटने वाली पुलिस के मैन्यूअल और कानूनों में आमूल-चूल बदलाव किया जाएं।एक बार सोचा तक नहीं गया कि कैसे फर्जी एनकाउंटर करने वाले अधिकारी, लूट में शामिल रहने वाले अधिकारी, बलात्कार और लड़कियों से छेड़छाड़ करने वाले अधिकारी अपनी नौकरियां पूरी कर शान के साथ पैंशन उठाते है। उनके ज्यादातर बच्चें अब विदेशों में पढ़ रहे है या फिर वहां सैटल हो गये है। ये कहानी सिर्फ आईपीएस अफसरों की ही नहीं है बल्कि कई थानेदारों के बच्चे भी विदेशों में जा चुके है। देश की लूट का क्या नंगा सीन है। लेकिन युवराज राज्य पुलिस पर ऐसे आरोप लगा रहे है जैसे उत्तरप्रदेश पाकिस्तान का हिस्सा है और वहां परवेज मुशर्रफ की सरकार शासन कर रही है।
युवराज को हरियाणा में होंडा फैक्ट्री के मजदूरों पर हुए लाठीचार्ज के फूटेज याद नहीं होंगे तीन-चार साल पुरानी बात है। लेकिन महीने भर पहले जैतापुर में खुद उनकी पार्टी की सरकार के ही किसानों पर किये गएं गोलीकांड की याद नहीं ये बड़ी हैरान करने वाली बात है। लेकिन हैरानी उसको होगी जिसने युवराज की ऊंचाईं को मापा नहीं है।
देश के ज्वलंत मुद्दों पर युवराज ने अब तक अपना कोई रवैया साफ नहीं किया है। घुन की तरह देश को खा रहे भ्रष्ट्राचार पर युवराज अपनी पार्टी लाईन पर खड़े होते है यानि विपक्षी पार्टी कर रही है तो भ्रष्ट्राचारी है और यदि अपनी पार्टी का नेता है तो फ्री का चंदन है घिसों और अपने और अपनों के लगाओं। युवराज ने ये नहीं बताया कि राज्य की अकाउँटैबिलिटी के बारे में उनकी क्या राय है। क्यों ये साफ नहीं होता कि फर्जी एनकाउंटर में अधिकारियों की नौकरियां फौरन खत्म होनी चाहिए और पुलिस अधिकारियों पर कानून तोड़ने पर सख्त सजा होनी चाहिएं। ऐसा कोई मौलिक बदलाव हो सकता है इसका कोई अंदेशा भी उनके बयानों से नहीं होता है।
लेकिन एक हैरानी हमको नहीं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को है कि देश युवराज के आरोपों पर ध्यान नहीं दे रहा। पहले कांग्रेस के युवराज एक करवट बदलते थे और देश के लोग धन्य हो जाया करते थे। आपके राष्ट्रीय चैनल्स और नेशनल अखबारों की कवरेज दिखाती थी ऐसा। पहली बार युवराज संसद में बोले यूपी के किसानों के चीनी मिलों पर बकाया पैसों को लेकर। अखबारों और चैनलों ने काफी प्रशंसा की। एक और बिलकुल गौरा-चिट्टा और हमारे लाट साहिबों के देश से पढ़कर आया युवराज किसानों पर बोला। कितना सुंदर और अभिराम दृश्य था वो जब देश के सबसे बड़े ऐशो-आराम में पला -बढ़ा हुआ एक युवराज गरीब किसानों पर बोल रहा था। कई कांग्रेसी नेताओं का गला रूंध गया बोल नहीं निकले और कुछ तो हर्षातिरेक रो पड़े। आखिर गूंगे युवराज ने मुंह खोला और वोटो की बारिश के लिए कांग्रेसी रो पड़े।
देश के मीडिया ने काफी लिखा। और हमेशा की तरह टीवी का माईक देखकर मुंह खोल देने वाले राजनीतिक विश्लेषकों ने मौसमी बारिश की तरह से राजनीति में नयी बयार पर बयान दिये। कलावति को लेकर संसद में दी गई स्पीच ने युवराज के जनवादी और जननायक के चेहरे को काफी निखारा। इसके बाद भी कभी ट्रेन में आम यात्रियों के साथ यात्रा तो कभी किसी दलित के घर खाने की अदा ने टीवी चैनल्स और अखबारों के पत्रकारनुमा चारणों को मंत्र-मुग्ध किया। लेकिन यूपी में युवराज का गणित थोड़ा गड़बड़ा गया। लोकसभा के चुनावों में चमत्कार का दावा करने वाले कांग्रेसी जनों के पास अब यूपी में अब कोई तुरूप की चाल नहीं है। वो हैरान है कि गोरे मुंह वाले युवराज की बात जनता नहीं सुन रही है। आखिर युवराज अंग्रेजी पढ़े है, विदेशों में रहे है और देश के जनतांत्रिक राजघराने से ताल्लुक रखते है। उनके दोस्त सब विदेशों से पले-बढ़े है और ज्यादातर अंग्रेंजों के जूते चाटने वाले राजाओं के वंशज है या फिर देश की लूट में सहायक रहे नौकरशाहों के बच्चें। लेकिन यूपी जातियों का कबीला है। कबीले के नायक बदल चुके है। अपनी-अपनी जातियों के गणित के दम पर इस राज्य में जो राज कर रहे है वो किसी भी लुटेरे को अपनी लूट से आईना दिखा सकते है अपनी लूट को वैधानिक बनाने के प्रयासों से वो किसी भी तानाशाह को रूला सकते है। एक मुख्यमंत्री जो लूट के नये प्रतिमान गढ़ रही है। राज्य का दौरा करती है तो राज्य में अधिकारी कर्फ्यू लगा देते है ताकि कोई बच्चा राजा तो नंगा है वाली कहानी न दोहरा सके। राज्य में राजनीति के दूसरे नायक जो कांग्रेसी रहमो करम पर सुप्रीम कोर्ट में लगे हलफनामें के आधार पर कभी सरकार की तरफ तो कभी दूसरी तरफ दिखते है। जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो लूट में इतने बेशर्म थे परिवार के ज्यादातर सदस्य आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में कोर्ट में है इस बार राजनीति में ईमानदारी के नये नायक बन रहे है।
अब इस ड्रामें में युवराज को कोई भूमिका चाहिएँ तो हीरो की। लेकिन जातिय गणित में वो कहीं फिट न होने के चलते युवराज को ऐसे बयान देने पड़ रहे है। और इन बयानों के सहारे ही सर्कस के उस जोकर की तरह दिख रहे है युवराज जो अपनी लंबाई बढ़ाने के लिए बांस के पैरों का सहारा लेता है और उस पर एक पाजामा ढक लेता है। युवराज के बयानों ने उसके बांस के पैरों पर लगाया गया उसके चारण कांग्रेसजनों और पिट्ठू मीडिया का पाजामा उघाड़ कर रख दिया है। जिसको देखकर एक ही शब्द मुंह से निकला " अरे ये युवराज भी बौना निकला"।