Friday, May 27, 2011

अमेरिका में मोर नाच रहा है, मीडिया को दिख रहा है।

हिंदुस्तान का नेशनल मीडिया इस वक्त खबरों की एंड्रीनेलीन के नशे में है। अमेरिका के शिकागों में डेविड कॉलमेन हैडली और तहव्वुर राणा पर मुकदमा चल रहा है। इस मुकदमें का भारत से ताल्लुक इतना है कि इन दोनों ने भारत में अब तक के सबसे बड़े आतंकवादी हमले की साजिश रची थी। ये जानकारी भी हिंदुस्तानियों को अमेरिकी सरकार ने सायास नहीं दी थी अमेरिका से अनायास ही मीडिया के जरिए मिल गई थी। दुनिया की सबसे उभरती हुई अर्थव्यवस्था और मोंटेक सिंह अहलूवालिया के हिंदुस्तान ने तो इस हमले को आमिर अजमल कसाब पर खोल कर विजय हासिल कर ली थी। हिंदुस्तानियों की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ रूपये की रकम पर पलने वाली हिंदुस्तानी जांच एजेंसियां का सबसे नायाब कारनामा था ये। महीनों तक इस देश के तथाकथित खोजी रिपोर्टर जो किसी भी झूठ को सच बना सकते है बिना किसी नियामक एजेंसी से या कोर्ट से डरे हिंदुस्तानी एजेंसियों की तारीफ के डंके बजाते रहे।
एक दिन अचानक अखबार में एक खबर छपी कि अमेरिका में आतंकवादी साजिश रचने के आरोप में हैडली और तहव्वुर राणा नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इन दोनों लोगों की गिरफ्तारी के हिंदुस्तान के लिए क्या मायने है इस बारे में अमेरिका ने हिंदुस्तान को कब बताया ये मालूम नहीं। हो सकता है ये रहस्य भी ये नार्थ ब्लाक के उन तहखानों में दफन हो जहां इस देश के उजले लोगों के काले कारनामे दफन है हमें मालूम नहीं। फिर अखबारों में धीरे-धीरे ये खबर साया होने लगी और रिकंस्ट्रक्शन के सहारे या फिर घटिया स्केच ग्राफिक्स के सहारे जोकरनुमा ऐंकरों ने पूरे देश को ये कह कर चेताना शुरू कर दिया कि हैडली और राणा ही है असली गुनाहगार मुंबई हमले के।
ऐसा ही हुआ इस मामले में। अमेरिका ने बेहद गिड़गिडाने के बाद हिंदुस्तानियों को हैडली और तहव्वुर राणा की सूचनाओं तक पहुंच दी। हालांकि उनसे पूछताछ करने का एक सपना अधूरा ही रह गया। खैर इसपर अमेरिका में ये जद्दो-जहद हुई की हम राणा और हैडली का क्या करें। फिर उनको अमेरिकी कानूनों के तहत उन पर मुकदमा चल रहा है। अब उस मुकदमें रोज नये खुलासे हो रहे हैं। और समाचार जगत बल्लियों उछल रहा है। अहा क्या बात है। पाकिस्तान का हाथ, आईएसआई की साजिश सब कुछ तो है इस खबर में। न्यूक्लियर प्लांट की भी रेकी की गई थी। ये बात तो न्यूज रूम में बैठे एडिटर्स को और भी खुशी देने वाली है।
घटिया से घटिया किताब में इससे बेहतर लिखा जाता होंगा जो न्यूज चैनलों के स्क्रिप्ट राईटर लिखते है। स्क्रीन पर लिख कर आता है पाकिस्तान होगा बेनकाब, आज फूटेगा पाकिस्तान का भांडा..पाकिस्तान की खतरनाक साजिश।
एक दम वाहियात और पूरे देश को धोखा देने वाली पत्रकारिता का शर्मनाक नजारा है ये। कोई ये पूछने को तैयार नहीं कि मुंबई हमले के वक्त लापरवाही बरतने वाले आईबी, रा, और दूसरी जांच एजेंसियों के अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई। किसी अखबार या चैनल को याद नहीं कि मुंबई हमले में इस्तेमाल हुए फोन नंबर पहले ही आईबी को दे दिये गये थे कि इन नंबरों को किसी आतंकवादी नेटवर्क ने खरीदा है।लेकिन दिल्ली और राजधानियों में ऐश काट रहे आईबी के काले साहबों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। मंत्री वहीं है संतरी वही है तो फिर बदला क्या।वही अफसर अभी भी देश को आतंकवादियों से बचाने की रणनीति तैयार कर रहे है जो बेचारे सालों से बचा रहे है। कई सौ लोगों की मौत के जिम्मेदार इन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने या उसके लिए खबर लिखने का ख्याल इस देश में किसी को नहीं।
ये कैसा देश है जो बेचारा विदेशियों से शिकायत करता घूमता है कि पाकिस्तान ये कर रहा है पाकिस्तान वो कर रहा है। हम तो गांधी के देश के है। हमारी पुलिस सिर्फ गांधीवादी आदर्शों पर चलती है। उसके सैकड़ों फर्जी एनकाउंटर देशी लोगों के लिए है उसका बेरहम लाठीचार्ज सिर्फ मजदूरों के लिए है।
सवाल सिर्फ इतना ही होता है कि पार्टियों में बैठकर गप करने वाले अधिकारियों के लिए हिंदुस्तानी कब तक अपनी जेब से टैक्स देते रहेंगे। हजारों करो़ड़ रूपये की लूट ऱकरने वाली कंपनियों पर नजर रखने वाली एजेंसियों के अधिकारी मौज में अपने घर जाते है अपने बच्चों के लिए हराम के पैसे से खरीदे गये ऐशो-आराम के साधनों पर नजर डालते हुए दारू पीकर सो जाते है। उधर जीबी रोड़ -सोनागाछी या फिर ऐसे ही बाजार में दस रूपये के लिए जिस्म बेचती है औरतों पर जिम्मेदारी आ जाती है जन-गण-मण अधिनायक जया है गाने की और इसके सम्मान के लिए अपना जिस्म बेचकर कमाएं गएं पैसे से टैक्स भरकर काले साहबों का ऐशो-आराम जुटाने की।

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