Sunday, May 22, 2011

साधो ये मुर्दों का देश ?

एक देश है। देश है तो संविधान भी होगा। संविधान है तो चलाने वाले भी होंगे। चलाने वाले हैं तो गलतियां भी होंगी। गलतियां होंगी तो फिर वो लोग भी होंगे जिनसे गलतियां होती हैं। और वो लोग भी होंगे जो लगातार गलतियों को माफ करते हैं। देश हमारा है गलतियां आम आदमी करते हैं। और माफ करने के लिए राजनेता है। देश के मंत्रिमंडल में एक से बढकर एक मंत्री हैं। एक से बढ़कर एक। एक है कि हर घोटाले में सलिंप्त मिलते है, खुद नहीं तो अपनी बेटी-दामाद के सहारे या फिर भतीजे का रोल निकलता है। दाल से लेकर क्रिकेट तक कोई भी घोटाला हो उनकी मेहरबानी जरूर होती है। देश के अमीर राजनेताओं में भी अमीर। ऊपर वाले से गजब का इम्यून सिस्ट्म बनवाकर लाए है।
देश है तो फिर विदेश भी होगा। लिहाजा एक विदेशमंत्री है। विश्व संसद में दूसरे देश का बयान पढ़ देते है जनाब। पता ही नहीं चलता। उनको लगा चुनावी मेनीफेस्टों की तरह है कि पहला पन्ना उखाड़ दो तो बनाने वाले को भी पता न चले कि किस पार्टी के लिए बनाया था। लेकिन वो विश्व संसद की तरह माने जाने वाला यूएनओ था लिहाजा हल्ला हो गया। लेकिन उन्होंने कहा कि कोई बड़ी गलती नहीं थी। पूरी दुनिया में मजाक हो गया लेकिन वो गरीब-गुर्बों और बेहद पिछडे़ लोगों के देश का हुआ होगा। उनके लिए तो एक बेहद मामूली सा मजाक था। किसी की नौकरी नहीं गयी।
एक गृहमंत्री है। पॉलिशिंग ऐसी की हर कोई हैरान हो जाएं। बौने से मीडिया से इस तरह से अपनी लंबाई बढ़ाई है कि हर कोई कायल उनके काम करने का। किसी को लगता है कि गजब का काम करते है। दिल्ली में आतंकवादी फायरिंग करके निकल गएं लगभग साल होने को किसी को मालूम नहीं। बनारस के घाट पर बम विस्फोट हो गया लेकिन कोई सुराग नहीं। और अब पाकिस्तान को दी गई देश की मोस्ट वांटे़ड़ लिस्ट में एक के बाद एक गलतियां लेकिन जनाब की नजर में ये बेहद मामूली गलती है। एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने कहा कि ये लिस्ट एक रूटीन है बल्कि देने का कोई फायदा नहीं। यानि आठ साल से एक नाटक देश के सामने खेला जा रहा था। अगर मौजूदा गृहमंत्री की माने तो पहले सभी प्रधानमंत्री और मंत्री देश के सामने लिस्ट का एक नाटक खेल रहे थे। एक ऐसा नाटक जिसमें बेहद संजीदगी का अभिनय किया जाता है। यहां देश का मीडिया लिस्ट् को लेकर बेचारा हलकान होता जा रहा था। कभी एक्सक्लूसिव करता था तो कभी विशेष कोई पूछने वाला नहीं था। अब भेद खुला कि भाई ये तो बांकों का नाटक था।
एक मंत्री है। कानून मंत्री है। कानून भी जानते है। पैसे दो और किसी को भी उनकी भाषा में दूध धुला बनवा लो। उनके पास दूसरे भारीभरकम मंत्रालय भी है। साहब को सरकार बचाने की जिम्मेदारी लेनी थी। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने जिस राजा को प्रथम दृष्टया चोर ठहरा कर सलाखों के पीछे भिजवा दिया उसकी इनसे शानदार पैरवी कौन कर सकता था। देश की संवैधानिक संस्था को गलत ठहरा दिया। बिना उस संस्था के प्रमुख के खिलाफ मामला दर्ज कराएं। बात इतनी तरीके से की एक नया गणित का फार्मूला निकाल दिया। और उस फार्मूले के मुताबिक देश को उस घोटाले में कोई नुकसान नहीं हुआ जिसको सरकार की एक संस्था एक लाख छिहत्तर करोड़ का तो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी भी तीस हजार करोड़ के बराबर का ठहरा रही है। अब तो सब साफ हो गया लेकिन मंत्री जी नवरत्नों में शामिल है।
एक मंत्री है जो अब पेट्रोलियम संभाल रहे है। उससे पहले शहरी विकास मंत्रालय देख रहे थे। बेचारे जनमोर्चा संभालतें हुए कांग्रेस विकास मंत्रालय संभाले हुए थे। सत्तर हजार करोड़ रूपये के घोटाले में धृतराष्ट्र बने रहे। उनके अफसर घोटाला करते रहे और वो बेचारे मूक दर्शक बनते रहे। जनाब कलमाड़ी साहब तो तिहाड़ में पहुंच गए अपनी बारात के साथ लेकिन मंत्री जी की तरक्की हो गयी।
राजा साहब की बात करना बेकार है। नाम ही राजा रखा गया था पैदा जरूर मध्यम वर्ग में पैदा हुए थे। बेचारे बड़े हुए राजा नाम से लेकिन जनतंत्र में राजा कैसे। फिर एक राज्य में बेहद भावुक और नारों से खेलने वाले लोकतांत्रिक राजा की बेटी के करीब आ गये और बन गए राजा। एक हजार दो हजार नहीं पूरे पौने दो लाख करोड़ का घोटाला कर बैठे। अब अपने राजा की बेटी के साथ तिहाड़ की अलग-अलग कोठरी में बाहर आने की जुगत बैठा रहे है।
ये कहानी आप कितनी लंबी लिख सकते है। इसमें सिर्फ नाम बदलने है और हर कोई फिट बैठ जाएंगा। ये एक ऐसे देश का मंत्रिमंडल है जिसको दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। जिसकी तरक्की के कारनामे दुनिया का हर देश गा रहा है ऐसा मीडिया के लोगों का कहना है।
इस पूरे देश में एक बात साफ हो जाती है कि किसी भी अपराधी को आप जिन अपराधों के लिए पकड़ कर जेल में डाल सकते है उसकी आजादी पर रोक लगा सकते है उन्हीं अपराधों को करने पर नेताओं की तरक्की के रास्ते खोल सकते है।
लिखना तो बहुत कुछ है लेकिन मेरी समझ में जो उलझन थी वो सबसे पहले हर्षद मेहता मामले को लेकर सामने आई थी। देश में पांच हजार करो़ड़ का घोटाला हुआ लेकिन इस घोटाले को रोकने की जिम्मेदारी न किसी मंत्री पर गई न किसी ब्यूरोक्रेट पर। किसी ने नहीं पूछा कि भैय्या इन महानुभवों को किस बात के लिए पाला गया देश के आदमियों ने अपने बच्चों के खून को पिला-पिला कर। उसी वक्त राजनेताओं और भ्रष्ट् बाबूओं की जमात को ये रास्ता मिल गया था कि उनके राजनैतिक और नौकरशाह पूर्वज इस देश को लूटने का इंतजाम करके गए है। और रही बात मीडिया की तो वो बेचारा चुनावों में हार- जीत में देश की जनता की समझदारी की तारीफ करने लगता है। ये जानते-बूझते हुए भी कि जातिगत गोलबंदी और छोटे-छोटे लालच के सहारे जीतते है ये राजनेता न कि जनता की किसी सामूहिक समझदारी पर। अगर जनता की समझदारी ही सामने आनी थी तो ये जानना जरूरी है कि इस देश में दहेज खत्म होने की बजाय बढ़ गया है। आर्थिक घोटालों की तादाद एजूकेशन की दर के साथ ही बढ़ रही है। सड़क पर मौतों की संख्या गाडियों की संख्या के साथ होड़ कर रही है। और सबसे बड़ी बात कि पैसठ साल की आजादी के बाद भी देश की राजधानी दिल्ली समेत सभी शहरों चलने वाले वेश्यालयों में गरीब, बेसहारा और जबरदस्ती धंधें में धकेली गईं औरतों की तादाद बढ़ रही है। हां इस बार देश के मीडिया के पास खुश रहने का एक और कारण आ गया देश में महिला राजनीतिज्ञों की बढ़ती हुई ताकत का।

1 comment:

vipin said...

"A deluded forgets its dignity of culture, it loses its discriminated capacity which is called, in common parlance, conscience (buddhi)...."