भ्रष्ट्राचार को राष्ट्र गौरव में बदलेगा ये साल
..कॉमनवेल्थ गेम्स का हाल
बिल्ली को देखकर कबूतर अपनी आंखें बंद कर सोचने लगते हैं कि उनको नहीं दिख रहा है तो बिल्ली भी उन्हें नहीं देख पा रही होंगी। कुछ ऐसा ही हाल मीडिया का भी है। मीडिया को लग रहा है कि उसने आंखे बंद कर ली है तो देश को भी नहीं दिख रहा होगा।
नया साल है तो सबका मूड अच्छा ही है देश की तरक्की की नयी उम्मीदें भी है। हर आदमी जश्न के मूड में है। नया साल और दशक भारत का होने जा रहा है ऐसा ही है मीडिया का आकलन और उसकी उतारी हुयी तस्वीर। लेकिन देश के करोड़ो भूख से बिलबिलाते लोगों की बेबसी कनॉट प्लेस के हजारों बल्बों में कहीं खो गयी है। मैं पुराना राग नहीं छेड़ना चाहता। लेकिन एक बात की ओर ध्यान जरूर दिलाना चाहूंगा जिस पर मीडिया जानबूझकर ध्यान नहीं दे रहा है और आम आदमी भी पर्दे के पीछे खेल जा रहे इस की हकीकत को समझ नहीं पा रहा है, वो बात है बाकॉमनवेल्थ खेल को लेकर किया जा रहा खेल। भ्रष्ट्राचार की हजारों कहानियां है लेकिन वो फिर कभी अभी तो मैं एक बात आपके सामने रखने से अपने आप नहीं रोक पा रहा हूं
कल के अखबार में दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चेयरमैन का एक ब्यान था. कॉमनवेल्थ खेल के दौरान दिल्ली के फैक्ट्री मालिक अपनी फैक्ट्रियों में स्वेच्छा से काम बंद रखे। कारण कि दिल्ली में पॉल्यूशन कम रहेगा। दलील दी गयी कि चाईना में हुये बीझिंग ओलंपिक के दौरान ऐसा ही किया गया था। काफी खूबसूरत दलील दी गयी। लेकिन ये अपील ही कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान सरकार की कार्रवाही का रोड़मैप है ।कॉमनवेल्थ गेम्स में हुआ हजारों करोड़ रूपये का भ्रष्ट्राचार का खेल। हजारों करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट निकले, उनके टेंडर हुये, हजारों करोड़ का बारा न्यारा हुआ औऱ जब भी किसी चीज पर हो हल्ला मचा तो आयोजन समिति से जुड़ें लोगों ने शोर मचा दिया कि देश का गौरव खतरे में है। अक्सर लोगों का सवाल होता था कि क्या कॉमनवेल्थ खेल होंगे की नहीं तब मैं एक ही बात कह पाता था कि काली कमाई पर जिंदा इस देश में इतना पैसा है कि ये लोग नोटो की सड़क पर भी एथलीटों को उठा लायेंगे । लेकिन इससे देश के खेल का परिदृश्य कितना बदलेगा तो जवाब होता था कि जीरो। ऐसे ही एक दिन आयोजन समिति से जुडे एक अधिकारी की बातचीत से अदेंशा हुआ कि कॉमनवेल्थ के वक्त अगर किसी चीज को सबसे बड़ा खतरा होगा तो आम आदमी की आजादी और कमजोर लोगों की रोजी पर संकट आयेगा। लेकिन कैसे इस बात को मैं समझ नहीं पा रहा था।
और फिर फेनेल औऱ उनकी कॉमनवेल्थ टीम के दिल्ली दौरे के वक्त कुछ-कुछ चीजें साफ होनी शुरू हो गयी थी। दो दिन तक उस रास्ते को ही बंद कर दिया गया था जिससे उस टीम को गुजरना था। ये देश में पहला मौका था कि किसी राष्ट्राध्यक्ष के काफिले के गुजरते वक्त सुरक्षा के ख्याल के कुछ घंटे बंद किये गये यातायात के अलावा किसी मौके पर रास्ते बंद किये गये हो। लेकिन कोई आदमी या संस्था इस बात लेकर सड़क पर नहीं आयी और आयोजन समिति और बिल्डर माफिया ग्रुप को इससे एक रास्ता मिल गया कि देश के गौरव के नाम पर भ्रष्ट्राचार का अथाह सागर एक लोटे में भर रखा जा सकता है। उसी वक्त से एक बात साफ हो गयी थी कि सरकार जल्दी-जल्दी प्रोजेक्ट पूरे करने के नाम पर भ्रष्ट्राचार की गंगोत्री की जांच के रास्ते बंद कर देगी। लेकिन आम आदमी का क्या होगा। सड़क और ट्रैफिक की स्थिति से कैसे निबटेगी। और चेयरमैन ने इसका रास्ता सुझा दिया कि पहले फैक्ट्री मालिकों से अपील करो और अगले कदम के तौर पर खेलों के 15 दिन तक उन सब सड़कों से आम आदमी की आवाजाही बंद कर दो जिससे एथलीटों के दल को गुजरना होंगा। बाहर से आऩे वाले वाहनों की संख्या सीमित कर दो या फिर उसको 15 दिन तक बंद कर दो। कोई आदमी इस पर सवाल कर नहीं सकता और अदालतों में देश के हित से जुडे मामलों पर कोई क्या बहस करेगा। लेकिन उन हजारों लाखों लोगों के घर चूल्हा कैसे जलेगा जो रोज दिल्ली की सड़कों और फैक्ट्रियों में अपना खून औऱ पसीना बहाकर मजदूरी कर घर जाते है। .
1 comment:
तुम खुद गायब हो जाओ गुरू। लोगों को ये पंसद नहीं आता कि उन पर सवाल उठाये जाये।
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