उत्तर प्रदेश का कुख्यात डान नफीस कालिया दिल्ली में गिऱफ्तार। शार्प शूटर राजपाल नाई दिल्ली में गिरफ्तार। बीस साल से फरार चल रहा यूपी का सबसे बड़ा ईनामी डान ब्रजेश सिंह दिल्ली की स्पेशल टीम ने गिरफ्तार किया। इसके बाद मुन्ना बंजरगी भी गिरफ्तार। ये लिस्ट बहुत लंबी है लेकिन आप सोच रहे होंगे कि इन पुरानी कहानियां से आज क्या रिश्ता। सब गिरफ्तारियों का एक साथ क्या रिश्ता है। इन सबसे एक बात और समान है वो है इन शातिर अपराधियों की गिरफ्तारी के वक्त किसी भी हथियार का न मिलना। क्राईम के क ख ग को जानने वाला भी ये जानता है कि ये लोग शातिर हत्यारे है और पलक झपकते ही अत्याधुनिक हत्यारों से गोलियां बरसा देना इनका शगल है। पुलिस रिकार्ड में इनके पास हथियारों का जो ब्यारौ मिलता है वो भी इस बात की ताईद करता है कि देश भर में अडरवर्ल्ड के पास जो भी हथियार हो सकते है वो इन लोगों के गैंग और इनके पास है लेकिन हैरानी होती है कि जब भी दिल्ली पुलिस को ये अपराधी मिलते है तो गाय से ज्यादा शरीफ होते है। दिल्ली पुलिस लंबे अर्से से इन पर निगाह रखे हुए होती है और ये शरीफ बच्चों की तरह से समर्पण कर देते है। ये कहानी का एक पहलू है। दूसरी तरफ यूपी पुलिस के लोग है जो इनके पीछे सालों से पड़े रहते है लेकिन उनको इन बदमाशों की धूल तक नहीं मिलती। दिल्ली में जब ये अरेस्ट होते है तो यूपी पुलिस के अधिकारी ऑफ द कैमरा इस गिरफ्तारी को डीलिंग का नाम देते है। ऐसे कई मामले है जिनमे साफ तौर पर गिरफ्तारी एक नाटक के हिस्से की तरह से दिखायी देती है। लेकिन कभी जांच नहीं होती है।
एक मामला जहां तक मुझे याद आता है वेस्टर्न यूपी के शार्प शूटर राजपाल नाई का है। 2001-2 में राजपाल नाई को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी में खास बात थी कि जिस पुलिस इंपेक्टर ने राजपाल को गिरफ्तार किया था वो भी वेस्टर्न यूपी से ही ताल्लुक रखता था। इस बात को लेकर पुलिस प्रेस कांफ्रेस में काफी हो हल्ला मचा। उस समय के डीसीपी क्राईम मुकुंद उपाध्याय ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिये। लेकिन ये जांच कहा बिला गयी कोई नहीं जानता। यूपी पुलिस के कई अधिकारी साफ तौर पर इशारा करते है कि ये साफ तौर पर मैनेज की गयी गिरफ्तारी होती है। और इसमें लाखों का लेन-देन होता है। यूपी में ऐसे कई दलाल है जो इस काम में माहिर है। यानि अपराधी और दिल्ली पुलिस के कुछ खास अधिकारियों के बीच सौदा कराने में ताकि सारा मामला इस सफाई से अंजाम दिया जाये कि पुलिस को बहादुरी मिल जाये और डान को सेफ कस्टडी। इस मामले में उसके हथियार औऱ बाकी गैंग मेंबर बाहर रहकर उसके लिये उगाही करते रहते है। कई मामलों में तो पुलिस पार्टी को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी हाथ लग जाता है।
हैरानी की बात है कि सालों से ये बात हवा में तैर रही है। इस बात में कई चीजे साफ तौर पर इशारा भी करती है कि इस मामले में सब कुछ फेयर नहीं है। लेकिन होम मिनिस्ट्री से इस मामले में कोई जांच या मीटिंग नहीं होती। एनसीआर पुलिसिंग के नाम पर हर छह महीने पर एक मीटिंग्स भी होती है लेकिन रस्मी बातचीत के अलावा इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता।
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