Thursday, December 31, 2009

साहब ..मेरी बेटी को बचा लो.......

बाबूजी....मेरी बेटी को बचा लो.... उन लोगों ने उसको गोली मार दी है, फोन पर अनजान नंबर से आयी आवाज के दर्द और बेचारगी ने मुझे दहला दिया। अगस्त 2009 के दूसरे हफ्ते की बात है मैं एक स्टोरी के सिलसिले में भारत-नेपाल बार्डर के एक छोटे से होटल में रूका हुआ था। ऐसे में ये फोन दिल्ली नंबर से आया था और मुझे लगा कि कोई हमेशा कि तरह इँफोरमेशन दे रहा होगा इसी लिये मैंने वो फोन रिसीव कर लिया। फोन पर दर्द से रोते हुये युवक की आवाज को पहचानने में मुझे कुछ वक्त लगता इससे पहले ही मैंने पूछ लिया कि कौन बोल रहा है ...सोहराब बोल रहा हूं बाबूजी जहांगीर पुरी से। औऱ मेरे दिमाग में एक दम से सारी कहानी एक रील की तरह से चलने लगी। पूछा क्या हुआ सोहराब तेरी बेटी को ......साहब पुलिसइंस्पेक्टर के इशारे पर काम करने वाले गुंडों ने गोली मार दी.. चार साल की बेटी है मेरी सर प्लीज उसको बचा लो...रोते हुये बाप की बेबसी आपने फिल्मों में देखी होंगी ..लेकिन एक पत्रकार के तौर पर मैंने कई बार महसूस किया कि बच्चे के लिये रोते हुये इंसान और कटते हुये जानवर की अर्राहट में एक जैसी सिहरन होती है।
सोहराब की बेटी सफदरगंज हॉस्पीटल की इमरजेंसी विभाग में मौत और जिंदगी के बीच झूल रही थी। उसके गले में गोली फंसी थी और डॉक्टर इस हालत में नहीं थे कि बता सके कि बच्ची की जिंदगी बचेगी या नहीं। मैंने फौरन सफदरजंगरमें अपने परिचित लोगो से बात की और डिप्टी सीएमएस डॉक्टर सुधीर चन्द्रा साहब के ऑफिस में फोन किया तो वहां से कहा गया कि सोहराब को उनके ऑफिस भेज दे। मैंने सोहराब को फोन लगाया लेकिन फोन आउट ऑफ रीच में चला गया। मैंने भी अपने सोर्स के साथ भारत का बार्डर पार कर लिया था लिहाजा मेरे लिये भी अब एक पत्रकार के तौर पर फोन करना सहज नहीं था। स्टोरी में रात गुजर गयी औऱ मैं नेपाल के कृष्णानगर इलाके में ही रूक गया। मतलब मैं भूल गया कि सोहराब की बेटी का हुया। कुछ दिन बाद जब मैं वापस लौटा तो डॉक्टर साहब के ऑफिस से जानकारी मिली कि सोहराब वहां नहीं आया था शायद सोहराब की वो जरूरत खत्म हो गयी होगी कैसे नहीं जानता लेकिन आप को वो कहानी जरूर बता दूं कि जो रूचिका से भी ज्यादा दर्द से भरी है और हरियाणा पुलिस के जुल्मों से ताल्लुक रखती है और अभी भी चल रही है।
सोहराब फिरोजपुर झिरका के गांव खेडला पुन्हाना का रहने वाला है। दिल्ली के जहांगीरपुरी ळाके की जे जे कालोनी में रहकर कोई छोटा-मोटा काम करता है। 2005 में उसके गांव के बराबर वाले गांव में कार चोरी की एक घटना हुयी। सोहराब के गांव में उसके साथ वाले घर में हरियाणा पुलिस पूछताछ के लिेये गयी। जिस दौरान पुलिस के एसएचओ ओमप्रकाश और उसकी टीम पूछताछ कर रही थी उसी वक्त दूसरी छत पर सोहराब के भतीजे की पत्नी 18 साल की फरजाना कपड़े डालने पहुंची। दुर्भाग्य से जिस वक्त फरजाना कपड़े सुखा रही थी उसी वक्त एसएचओ की नजर उसपर पड गयी और कह सकते है कि गड़ गयी। अब एसएचओ सीधा उनके घऱ जा पहुंचा. घर पर फरजाना का ससुर यानि सोहराब का बड़ा भाई नौमान और दूसरे मर्द मौजूद थे। पुलिस अधिकारी ने पूछताछ शुरू की औऱ बार-बार घूम कर सिर्फ फरजाना की जानकारी हासिल करने में लगा रहा। इस पर घर के लोग समझ गये कि हरियाणा के इस दूर-दराज के गांव में पुलिस की नजर इस वक्त उनके परिवार की बहू की इज्जत पर है । पुलिस वाले नौमान को थाने ले गये। थाने में उससे जिद की गयी कि वो अपनी जवान बहू को एसएचओ साहब के मनोरंजन के लिये एक दो दिन के लिये दे दे,बस इससे ज्यादा कुछ नहीं। पिटा हुआ नौमान अपने घर पहुंचा और परिवार को पुलिस की कहानी बतायी। परिवार ने तय किया कि नव वधू को पुलिस के हाथों से बचाने का का एक ही तरीका है कि फरजाना और उसके पति को चाचा सोहराब के यहां दिल्ली भेज दिया जाये उनको यकीन था कि देश की राजधानी में जाने की हिम्मत हरियाणा पुलिस का दरोगा नहीं करेगा।
लेकिन वो गलत थे। अंग्रेजों के दम पर चल रही वर्दी में छिपे गुंड़ों को जैसे ही मालूम हुआ कि फरजाना को उसके परिवार ने दिल्ली भेज दिया तुरंत ससुर को उठा कर थाने तब तक मारा गया जब तक उसने सोहराब का पता नहीं उगल दिया। अगले दिन सुबह के चार बजे जहांगीर पुरी की उस कालोनी में हरियाणा पुलिस के वर्दीधारी गुंडे पहुंचे और फरजाना और उसके पति को पूरी कालोनी के सामने उठाकर चलते बने। सोहराब ने 100 नंबर को कॉल की लेकिन उस वक्त 100 नंबर वाले कहां थे इस बात का कभी कोई हिसाब नहीं मिलेगा।
फिरोजपुर झिरका के थाने में थाना प्रभारी ओमप्रकाश ने अपनी हवस मिटायी और उसके साथियों को भी अपनी भूख मिटाने का पूरा मौका मिला। इसके बाद फरजाना को धमकी दी गयी कि अगर कही मुंह खोला तो उसके पति और ससुर का इसी जी दारी के साथ एंकाउंटर कर दूंगा। सोहराब को देश पर यकीन था उसने रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की लेकिन दिल्ली पुलिस ने रिपोर्ट लिखना तो दूर की बात है डांटकर भगा दिया। तब सोहराब ने सफदरजंग में फरजाना का मेडीकल कराया और रिपोर्ट में साफ कहा गया कि फरजाना के साथ बलात्कार किया गया। दिल्ली पुलिस को रिपोर्ट न लिखनी न लिखी। आखिरकार सोहराब ने कोर्ट में गुहार लगायी और कोर्ट के दखल पर रिपोर्ट लिखी गयी लेकिन जांच में जुटी महिला पुलिस अधिकारी ने सोहराब से पैसे मांगे। और इस रिपोर्ट के दर्ज होने के बावजूद न ओमप्रकाश और उसके साथियो में कोई गिरफ्तार हुआ न उनके खिलाफ कोई कार्रवाही हुयी। उसके बाद एक दिन सोहराब मेरे पास आया हम लोगों ने ये मुद्दा उठाया तो ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में पेश किया गया। सोहराब खुश था कि चलो कुछ तो कार्रवाई हुयी लेकिन ये एक खामख्याली थी। कुछ दिन बाद सोहराब ने मेरे दफ्तर आकर बताया कि उसको बेटी हुयी है साथ ही ये भी बताया कि ओमप्रकाश औऱ उसके साथियों को जमानत भी मिल गयी। मैं हैरान नहीं था क्योंकि मैं जानता था कि वर्दी की गुंडई का इस देश के कानून में कोई इलाज ही नहीं है।
सोहराब ने बताया कि उसके बाद उनके परिवार के खिलाफ फर्जी मुकदमों की बाढ़ आ गयी है और हर थानेदार एक ही बात कर रहा है कि ओमप्रकाश से सौदा कर लो चार लाख रूपये ले लो। लेकिन सोहराब ने कसम खायी कि वो ओमप्रकाश को सजा दिला कर रहेगा। और यही उसका गुनाह कुछ महीने पहले उसकी बेटी को खा गया। मेरे कानों में सोहराब की आवाज गूंज रही है औऱ आंखों के सामने अफसरों का रूचिका को लेकर कार्रवाही करने के खोखले बयान।
मैं नहीं जानता क्या हुआ सोहराब की बेटी को क्योंकि मेरे फोन में पुलिस अधिकारियों के नंबर सेव है सोहराब का नहीं....सोहराब की खबर खत्म हो चली है .........

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

यह सब देख सुन कर विश्वास उठता जा रहा है.....कि कभी न्याय मिल पाएगा....