Thursday, March 19, 2009

मैं तुम को प्यार करता हूं।

समंदर की अथाह जलराशि,
नीले रंग का असीम फैलाव,
उमड़ती आवाज का जादू ,
मैं मूक हो गया
जब मैंने पहली बार समंदर देखा।
रूई के फाहों सी टपकती,
सफेद ही सफेद ,
आकाश से टपक रही हो रोशनी,
मैं खामोश था जब मैंने देखी ,
पहली बार गिरती बर्फ।
धवल हिमशिखर ,
इतने खूबसूरत कि कोई सानी नहीं,
मेरे आनंद को मिल सके न कोई शब्द,
कुदरत की खूबसूरती के आगे
हमेशा की तरह बेआवाज मैं।
.तुम को ये शिकायत क्यों है मुझसे
.तुम मिली मुझे...इतनी बार ,और
.मैंने प्रेम कहा नहीं।

4 comments:

रंजू भाटिया said...

कुदरत की खूबसूरती के आगे
हमेशा की तरह बेआवाज मैं।
.तुम को ये शिकायत क्यों है मुझसे
.तुम मिली मुझे...इतनी बार ,और
.मैंने प्रेम कहा नहीं।

बेहद खूबसूरत रचना लिखी है . भाव बहुत सुन्दर हैं और अपने एहसासों को पूरी तरह से ब्यान कर रही है यह रचना शुक्रिया

hardeep lashkary said...

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Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!

sanjay sharma said...

एक खामोशी हज़ार अफसाने... प्यारे, ज़बान से कहने की जरूरत क्या है... सीखो ना (या फिर सिखाओ ना..) नैनों की भाषा... शायद आपने इस भाषा में जताया भी होगा.. लेकिन कभी-कभी बेआवाज के भाव नहीं आवाज़ ही बोलती है...आवाज़ ही तोलती है.... हज़ार बात की एक बात बात कहने का अंदाज़ गज़ब का है...