Saturday, November 7, 2015

खरबों का डॉन चौबीस घंटें में अरबों का रह गया। ..........................................................

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पल में तौला-पल में माशा। ये कहावत बचपन में बहुत सुनी थी। लेकिन आजकल मीडिया की खबरों को देखकर लगता है मीडिया के लिए कही गई थी। खबरों की आपा-धापी में आदमी को ये समझ ही नहीं आता कि कौन सा चैनल कौन सी खबर को कैसे कह रहा है। तरीका अलग हो सकता है लेकिन मूल खबर अलग कैसे हो सकती है। ये सवाल आपको रोज परेशान कर सकता है। आज एक खबर पढ़ने के बाद सिर घूम गया क्योंकि कल ही वो खबर दूसरी थी। कल कहानी थी कि मुंबईया भगौडे अपराधी छोटा राजन (माफ करना डॉन कहा था स्क्रिप्ट में और वीओ में थोड़ा जमता है) की देश-विदेश में चार से पांच हजार करोड़ की प्रोपर्टी है। इसमें चीन से लेकर मध्यपूर्व के देशों, अफ्रीकी देशो और मुंबई में बेनामी प्रोपर्टीज की हजारों करोड़ की खबर कल ही पढ़ी है। कल मीडिया ने दिन भर चलाया। बहुत मजा आया पब्लिक को। दाल के दो सौ रूपये भारी लग रहे है लेकिन डॉन की खरबों की संपत्ति पर मजा आया। डॉन की इस बहती गंगा में हम जैसे बौनों ने जमकर पीटीसी और बकार की। इंडोनेशिया में ड़ॉन को धकियाते हुए बहादुर रिपोर्टर तो जैसे स्वर्णिम पल थे मीडिया के। खैर रात बीत गई। सुबह देखते ही दिमाग घूम गया अरे भाई ये क्या हुआ रात भर में डॉन की संपत्ति क्या हुई। दलाल स्ट्रीट के आंकड़ों की तरह ये भी अबूझ हो गई। हजारों करोड़ की संपत्ति महज चार-पांच सौ करोड़ की रह गई। रात रात में इतना पैसा किसी का हवा हो गया। कल की खबर गलत थी या आज की। कल का सोर्स गलत था या आज का। इसकी जांच करने की किसको फुर्सत है। कल की पीटीसी और बाईलाईऩ कर मिल चुकी है। आज की खबर पर आज कर देंगे। मुंबई पुलिस के मुखबिरनुमा पत्रकारों या पत्रकारनुमा मुखबिर जो चाहे कहिए उनकी चांदी हो रही है। जो चाहे कह दे जो चाहे बक दे सब सोना ही सोना। मीडिया की सबसे बड़ी खबर देश के सबसे बड़े डॉन में से एक सुरक्षा एजेंसियों के हत्थे चढ़ गया है। कई रिपोर्टर तो वंदना में इतना धुत हो गए कि मीडिया और गपबाजों में जैसे होड़ शुरू हो गई। राजन की गिरफ्तारी के बाद जैसे लगा कि मुंबई की फिल्मों और मीडिया की खबरों में अंतर ही गायब हो गया।
गिरफ्तारी की खबर के बाद हैडलाईंस
देश का सबसे बड़ा डॉन गिरफ्तार। हिंदु ड़ॉन गिरफ्तार। दाऊद का सबसे बड़ा दुश्मन गिरफ्तार। चैंबूर का छोटा राजन कैसे बना अंडरवर्ल्ड का बड़ा डॉन। या फिर ऐसी सैंकड़ों हैडलाईँस मानों दिमाग का कचूमर बनाने में एक दूसरे से होड़ कर रही हो। इस कहानी में सबसे ज्यादा मुंबई का मीडिया मुखर था। इसीलिए हर कहानी को ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे जिंदगी मे रीयल कहानी और रील की कहानी में बाल भर भी फर्क न आ जाए। मुंबई की रिपोर्टिंग के दौरान अक्सर उन तमाम पुलिस वालों से मिलना हुआ जो हिंदी फिल्मों की हीरोपंती के नायक होते है। झूठ और सच की इतनी मिलावट शायद ही कही दिखाई दे। नायकों की तरह घूमते पुलिसवाले। कितने एनकाऊंटर कैसे एनकाऊंटर , कहां कहां एनकाऊंटर, किस किस के एनकाऊंटर सबकी कहानी मुंहजुबानी। लेकिन इनके साथ ही चलती रहती है उपकहानी। किस-किस पुलिसवाले ने किस किस माफिया के कहने पर किस किस का एनकाउंटर किया ये इनसाईक्लोपीडिया आपको आसानी से हर क्राईम रिपोर्टर और हर किसी एनकाऊंटर स्पेशलिस्ट से मिल जाएंगा। कई सरेआम जेल गए। मुकदमे चले और छूट गए। किस तरह बार में बैठकर डील होती थी। कानून को किस तरह टके के भाव बेच दिया जाता था इसकी कहानी आप कही भी सुन सकते है लेकिन सरकार ( मालूम नहीं किसको कहते है अभी तक) को मालूम नहीं।

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