Saturday, November 7, 2015

एक दूसरे में समाता जाता है खून ...........................................................................


खून से सने खंजर को साफ करते हुए
भीड़ के साथ नारा लगाया 
एक और काफिर मारा गया
पूरा हुआ फर्ज
खत्म हुआ ऊपर वाले का कर्ज
कयामत के दिन
नहीं होगा कोई ऊपरवाले के सवालों का डर
सड़क पर फैला खून
धीरे धीरे सड़क से रिस रहा था
उसी वक्त दूर कही
ऐसी ही भीड़ से निकलकर
एक साफ करता है चाकू
खून से फव्वारों के सने हुए कपड़े
जहर से भीगे ठहाकों के बीच
नारा लगाता है
उनका भी एक मारा गया
अब कोई डर नही
उपरवाले के लिए बचा अपना कोई फर्ज नहीं
ईश्वर ने इसी के लिए हमे बनाया है
सफाया हर उस राक्षस का होगा
जिसने हमारे धर्म को धमकाया है
बिखरे हुए खून में लिपटा अऩाम चेहरा
दोनो भीड़ की खुशियों से अनजान
खून उतरता चला जाता है नालियों में
पानी के साथ बहता हुआ
मिल जाता है एक दूसरे से
बिना खंजर और चाकू के दर्द की परवाह किए हुए
नालियों से नालों और नालों से भी बहुत आगे
एक दूसरे से समाता जाता है खून
धीरे धीरे आसमान से घूम कर
धरती की कोख में आता है खून
फिर से जनमने के लिए
बेपरवाह इस बात से
जेहादी के घर या काफिर के घर
किसी कोख में फल जाता है खून।

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