Sunday, July 11, 2010

खाप पंचायतों के छिपे समर्थक देश के युवा राजनेता

बेगुनाह प्रेमियों को मौत के घाट उतारने के आदेश देने वाली खाप पंचायतों के बारे में कानून बनाने की पहल हो गयी। केन्द्र सरकार ने मामले को मंत्रियों के समूह को सौंप दिया। मीडिया में हो रही सनसनीखेंज आलोचना को शांत करने का एक दांव। मामले को ठंडे बस्ते में डालने के लिये एक और दांव कि राज्यों से प्रस्तावित कानून में राय ली जायेगी। राज्य अभी पुलिस सुधार कानूनों पर सालों से अपनी राय नहीं दे पाये हैं। राज्य के नेता वोट की लोटा-डोरी रखने वाली खाप पंचायतों पर कानून बनाने की राय राजनीतिक चश्में से देखें बिना देंगे ये यकीन किसी को नहीं। क्योंकि मौजूदा राजनीति की बुनियाद जातिवाद यानि जातियों पर टिकी हैं ये खाप पंचायतें। यकीन के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने बाकायदा खाप पंचायतों के समक्ष पेश होकर उनके समर्थन का भरोसा दिया। चौटाला को लेकर किसी को शक नहीं हो सकता। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान अपने दोनों बेटों के साथ मिलकर हजारों करोड़ रूपये की अवैध संपत्ति बनाने के आरोपों के चलते सीबीआई दफ्तरों और अदालतों के चक्कर काट रहे इस नेता का वोट बैंक एक खास जाति को छोड़कर और कुछ नहीं है। लेकिन नवीन जिंदल को क्या हुआ। देशवासी को तिरंगा फहराने की लड़ाई अदालत में लड़कर नायक बनने वाले नवीन जिंदल को इस मामले में खाप पंचायतों का समर्थन करने की जरूरत को कैसे समझा जायेगा। सिर्फ इस बात के अलावा कि पैसे कमाने के लिये दुनिया भर में हवाई जहाज में घूमने वाले नवीन जिंदल वोट के लिये गांव में बस चलाने की बजाय बैलों की गाड़ी का समर्थन कर सकते है। अपने बिजनेस ग्रुप को राजनीतिक कवच देने के लिये कुछ भी करेंगे देश के युवा विजन के ये साहब। युवा जोड़ों को मौत मिल रही है। लेकिन युवा नेता(सांसद) कहां है। नये जमाने के नये नायक राहुल गांधी की आवाज कहां गयी। हर सभा में मंच पर नंगी तलवार लहराने वाले बीजेपी के युवा ह्रदय सम्राट वरूण गांधी की चुप्पी आवाज से ज्यादा बोली। इसके अलावा सचिन पायलट, जतिन प्रसाद, अखिलेश यादव, जैसे युवाओं की जुबां तालू से क्यों चिपकी हुई है। आप इसके पक्ष में है कि विपक्ष ये तो साफ हो। देश के तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया में इस समय ये बहस सबसे ज्यादा टीआरपी में है लेकिन ये युवा नेता बेचारे सीन से गायब है। कारण बूझों तो जाने की तर्ज पर नहीं है। हर किसी को मालूम है परिवारवाद के नाम पर जाति के दम पर चुने जाने वाले युवा किसी मुसीबत को न्यौता देकर अपना फायदा खत्म नहीं करना चाहते।वोटरों के सामने बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ये नेता खूब जानते है कि उनकी जान सिर्फ उनकी जातियों के वोटरों में बसी है। इन्हीं के दम पर चलेंगी देश की आने वाली राजनीति। एक और कड़वी हकीकत से रूबरू होना है तो इन लोगों की पढ़ाई-लिखायीं कहा हुई है ये और देख लेना चाहिये। विदेशों के स्कूल-कालिजों से अपनी शिक्षा हासिल करने वाले ये लोग देश के सबसे गरीब आदमी की बात करते है टीवी के कैमरों के सामने। मीडिया को कोसते है गरीब आदमी की खबरों को न दिखाने के लिये उसी मीडिया को जिसके कैमरों में आने के लिये पत्रकारों को उनके पीआरओ पैसा और गिफ्ट देते है।
मीडिया के लिये पहले ये खबर सिर्फ पिछड़े इलाकों की कहानी थी। ऐसे वर्गों की जिनके पास टीआरपी मीटर नहीं है लिहाजा वो दिखाने लायक कहानी नहीं थी। लेकिन एक के बाद एक होती घटनाओं ने दिखाया कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा की पंचायतें शहरों में लूट में लगे वर्ग के लिये मनोरंजन का साधन हो सकती है। इनको जंगली दिखाकर दिल्ली और मुंबई में लाखों रूपये के साथ खेल रहे लोगों का मनोरंजन किया जा सकता है। एकाएक हर रिपोर्टर तालीबानी-तालीबानी चिल्लाने लगा हर खूबसूरत एंकर को लगने लगा कि बेगुनाह नौजवानों को टुकड़े-टुकड़े कर रहे बूढ़े रावण और कंस जैसे मिथकीय विलेन से बड़े विलेन। ये सब मनोरंजन की चीख-पुकार थी। ऐसी चीख-पुकार जिस पर महानगरों में बैठे लोग चाय की चुस्कियों और दफ्तरों में घूसखोरी करते हुए अपना टाईम पास कर सकते है। ऐसा नहीं है कि मीडिया को इतनी समझ नहीं कि कैसे दोगले नेताओं की पोल खोली जाये लेकिन उसको मालूम है कि आज जो सत्ता में है उनकी बांटी गयी रेवड़ियां हाथ में तभी आयेगी जब उनके दुर्गुणों उनकी अदा बताया जाये। और जो आज विपक्ष में है वो कल सत्ता में होंगे तो कल की बटेर को भी ढ़ेला क्यों मारा जाये जब आज का कबूतर हाथ में हो तब भी।
मीडिया के दोहरे मानदंड़ों को दिमाग में ताजा करना हो तो इस बात के लिये आप देख सकते है कि कैसे राजनीति से परिवाद का मुद्दा गायब किया गया। चरणसिंह को अपने अमेरिका पलट बेटे अजीत सिंह में किसानों का नायक दिखा। अजीत सिंह को अब उनकी राजनीति का वाहक सिर्फ जयंत चौधरी में दिख रहा है किसानों का भविष्य। मुलायम सिंह यादव ने शायद कसम खायी है कि अपने परिवार के 21 साल से ऊपर के हर सदस्य को राजनेता बना कर दम लेंगे। बीजेपी के बुरी तरह से हारे जननायक राजनाथ सिंह को लगता है कि उनके बेटे में उनकी जाति का नायक छिपा हुआ है। हर आदमी को मालूम है कि इन नेताओं की राजनीतिक ताकत उनकी नीतियों में नहीं जातिवाद में छिपी हुई है। आकंड़ेबाज चाहे तो ये बात उनके मिले वोटों के आंकड़ों से चैक कर सकते है।
वैसे भी इस मामले में हिंदी भाषी राज्यों की जातियां कुछ ज्यादा ही मुखर है। ऐसी पंचायतों की मुख्य भूमि हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, पंजाब और कुछ राजस्थान में है। ऐसे में इस इलाके के युवा नेताओं की आवाज सुनाईं नहीं देना कोई हैरत नहीं बल्कि मीडिया का इस पर ध्यान न देना कुछ ज्यादा हैरानी देता है.....

1 comment:

Jandunia said...

शानदार पोस्ट