Sunday, July 11, 2010

अजब लोग है,खौलते क्यों नहीं

जुबां है मुंह में
सवाल हैं जेहन में
फिर भी लब खामोश हैं
अजब लोग हैं बोलते क्यों नहीं...
आंखों में जूनूं भी
बदन में तपिश भी है
गुजरते है बिना जुंबिश के
अजब लोग है
जुल्म सहते है बेआवाज
अपने को तौलते क्यों नहीं
मौहब्बत भी दिल में
थिरकन भी बांहों में
खून देखते है सड़कों पर चुपचाप....
अजब लोग है
खौलते क्यों नहीं

1 comment:

शैलेन्द्र नेगी said...

सुंदर कविता...संवेदनाओं के साथ मार्मिक रचना . बधाइयाँ