Monday, August 2, 2010

देश की आंखों का पानी मर गया है

कई बार लिखना इस लिये भी मुश्किल होता है कि आप के पास कहने के लिये बहुत कुछ होता है और आप को लिखना सिर्फ कुछ पर होता है। देश यदि नक्शे को आधार माना जाये तो उथल-पुथल के दौर में है। मणिपुर हमारे देश का राज्य है आतंकवादी समर्थित छात्र संगठनों ने साठ दिन तक उसकी नाकाबंदी की बाकि नक्शे के कानों पर जूं नहीं रेंगी। कश्मीर में साफ तौर पर पाकिस्तान का झंडा लहरा रहे लोगों और पैसे लेकर पथराव करती भीड़ दिख रही है लेकिन नक्शे को कुछ मालूम नहीं है। ट्रेनों के एक्सीडेंट हो रहे है, नक्शे में कोई हरारत नहीं है। झारखंड और छत्तीसगढ़ में खानों के अवैध खनन के लिये देश के उद्योगपति अगर उन्हें देश का कहा जा सके तो अपनी चालों से आम आदमी जिंदगी को नरक करने में जुटे है। गरीब लोगों का नाम लेकर नक्सली कत्लेआम करने में जुटे है। देश का नक्शा सिर्फ एक गृहमंत्री को बोलते-देखता रहता है। दक्षिण भारत में क्या चल रहा है कोई नहीं जानता।
देश को मालूम चल रहा है कि दिल्ली में कलमाड़ी एंड कंपनी ने खेल का आयोजन किया है। नक्शे का इस खेल से बस इतना लेना-देना है कि सत्ता को उसके लिये आम जनता पर टैक्स लगाने है।आयोजन में नुमाईशी प्रतियोगिताएं होनी है। हैंडबाल और टेनिसबॉल जैसे खेल खेले जायेंगे जिनके किसी खिलाड़ी के बारे में मुझे तो कोई जानकारी नहीं है आपको हो तो हो। कोई रिकार्ड देखने में दिलचस्पी रखता हो तो उसके लिये रिकार्ड बुक उपलब्ध है। किसी भी चश्में से देखने पर रिकार्ड बुक में ये नहीं दिखेगा कि कॉमनवेल्थ के किसी खेल का बना कोई वर्ल्ड रिकार्ड है। ऐसे में पूरे देश को भूलकर सत्ता इसमें क्यों मदहोश है। बात बिना लाग-लपेट के कहनी हो तो इस तरह कही जा सकती है कि ये लूट का महोत्सव है सबकी अपनी-अपनी हिस्सेदारी है। लोग देश की इज्जत नहीं बचा रहे है, इज्जत के नाम पर की गयी लूट बचाना चाहते है। देश की इज्जत भूख से मरते लोगों से खराब नहीं होती है, देश की इज्जत पर करोड़ों गरीब लोगों के तिल-तिल मरने से असर नहीं होता है और देश की इज्जत- लुटेरों को सरंक्षण देने से खराब नहीं होती है लेकिन इज्जत खराब होती है विदेशी मेहमानों को घटिया शराब परोसने से, वो खराब होती है दिल्ली की सड़कों पर विदेशी मेहमानों के सामने भिखारियों के नजर आने पर वो खराब होती है विदेशी और उनके यहां बैठे चमचों की अय्याशी में कमी रह जाने पर। गजब है कि किस कदर झूठ को जिंदा रख कर उसे सच में तब्दील कर दिया है।
कॉमनवेल्थ खेल का आयोजन हासिल करने से शुरू करे तो आपकी आंखें खुली रह सकती है। खेल के आयोजन के लिये हुए मुकाबले में भारत को कामयाबी उसकी खेल क्षमताओं की वजह से नहीं बल्कि भाग लेने वाले देशों को सबसे अधिक रकम ऑफर करने से मिली। ये आरोप उस समय बहुत शिद्दत से लगाया गया था। लेकिन कलमाड़ी एंड कंपनी इस खेल में काफी तेज है लिहाजा जीत गयी। आपको किसी को शायद याद नहीं होगा कि 1982 में हुए एशियाई खेलों के आयोजन के लिये एक खेल गांव बना था उस समय के तमाम ऐशो-आराम को ध्यान में रख कर। खेल खत्म हुए तो इस बेशकीमती प्रोपर्टी को भविष्य के लिये न रख कर कौडियों के मोल बेच दिया गया नेताओं-ठेकदारों और चंद राजनीतिक चमचे पत्रकारों को।किसी ने ये सवाल नहीं किया कि भाई आगे भी खेल होंगे और इनकी जरूरत होगी। ये जानते थे सत्ता के ठेकेदार की फिर से कमाई होंगी। पूरे दिन फावड़ा-कुदाल चलाकर एक गरीब औरत जो रोटी हासिल करती है वो भी कलमाड़ी जैसे नेताओं के ऐशोआराम के लिये टैक्स भरती है। आप सिर्फ इस बात को सोच कर देखें कि दूध पावडर के एक डब्बे पर आप कितना टैक्स देते है। वो भी उस टीम के लिये जिसको सुप्रीम कोर्ट में ये नेता है कहते है कि राष्ट्र की नहीं खेल संघों की निजी टीमें है।
करप्शन के इस हल्ले के पीछे किसी की भलमनसाहत नहीं है न ही किसी के खून में उबाल आया है बल्कि डीडीए ने जो खेलगांव बसाया है उसी की लूट से ध्यान हटाने की कोशिश है ये। क्या कोई 3 से लेकर 8 करोड़ के फ्लैट खरीदेगा। यदि आम आदमी नहीं खरीदेंगा तो डीडीए ने किस के लिये उस कंपनी से ये फ्लैट खरीदे जिसको कॉन्ट्रेक्ट की शर्तें पूरी न करने की वजह से सजा देनी चाहिये थी।लेकिन सत्ता में बैठे लोगों ने ऐसा नहीं किया बल्कि उस कंपनी को गरीब औरत की खून-पसीने की कमाई को सौंप दिया गया।
राजनीतिक पार्टियों की नूरा-कुश्ती काफी तैयारी से हुई है। कांग्रेस के नेताओं ने भी शोर इसलिये मचाना शुरू किया है कि वो जानते है कि कॉमनवेल्थ की नौटंकी के बाद जब तंबू उखडेगा तो बबाल मचेगा। पहले से शोर मचाने से ये होगा कि छोटे-मोटे ठेकेदार एक दो इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई हो जायेगी और हजारों करोड़ रूपये अंदर हो जायेंगे। मुख्य विपक्षी पार्टियों में बीजेपी की बात करते है क्योंकि यादव बंधुओं को जाति और धर्म की नंगी सियासत करते हुए हम रोज देखते है उनके एजेंडें सब को मालूम है। बीजेपी के नेताओं को आप रोज हल्ला करते हुए देख रहे है। लेकिन बीजेपी के प्रर्दशन में शामिल होने वाले नेताओं की कंपनियां कई टैंडरों में शामिल है। उनकी कंपनियों ने इस कॉमनवेल्थ की भ्रष्ट्राचारी गंगोत्री में अपने हाथ धो लिये है अब तर्पण की बारी है। विजय मल्होत्रा तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष है आजतक कितने तीर चलायें है उन्हें ईमानदारी से मालूम होगा।
बात तथाकथित न्यूज चैनलों और राष्ट्रीय अखबारों की। राहुल महाजन ने अपनी पत्नी डिंपी की पिटाई की गुरूवार की सुबह लगभग आठ बजे शुरू हुई ये खबर बिना नागा शनिवार तक चल रही है। चैनलों के बड़े-बड़े धुरंधर रिपोर्टर लगातार इस पर फोन इन करते रहे। एक चैनल के न्यूज रूम में बड़े पत्रकार साहब से बात हुई कि भाई ये क्या है तो उन्होंने कहा कि इसके अलावा आप बताओं देश में खबर क्या है। अब कुछ कहना-सुनना बेकार था। सीआरपीएफ के पांच जवानों को उड़ा दिया उल्फा के आतंकवादियों आज के दिन ये कह कर मैं उन पांच बदनसीब शहीदों की बेईज्जती नहीं कराना चाहता था। लेकिन ये तो दूर की बात है मैं तो उसको ये भी नहीं कह पाया कि भाई एक दिन अपने रिपोर्टर को दिल्ली के बदरपुर इलाके से लेकर शुरू कराओं और नरेला तक ले जा कर देखों कि सड़क पर सत्ता की ओर से कितने सार्वजनिक नल दिये है जिनसे आम आदमी पानी पी सके। मेरा अपना आकलन है एक भी नहीं । दिल्ली पानी मांग रही है और यहां देश के आंखों का ही पानी खत्म हो गया।....

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