इस
खबर का क्या करूं। अखबार में छोटी सी छपी। दिमाग पर बड़े से हथौड़े की तरह से बज रही है। ध्यान हटाना चाहता हूं लेकिन हट नहीं रहा है। और भी अखबार है जिनमें चमकते हुए फोटो छपी हुईं हैं रगींन। लेकिन दिमाग है कि सौं शब्दों में समेटी गयी खबर से हटता ही नहीं। क्रूरता की मिसाल देने के लिये आप के दिमाग में बहुत सी मिसालें होंगीं। भोपाल छोड़ भी दें तो आपके दिमाग में बसी फिल्मों में फिल्माई गयी सारी निर्दयता भी इस खबर के सामने बौनी लग रही है। खबर..... दिल्ली की एक सड़क पर पुलिस को लाश के छोटे-छोटे टुकडे़ बीनने पड़े।....... एक्टीडेंट में घायल इस आदमी को कारो में गुजर रहे लोगों ने मदद नहीं दी बल्कि उसके उपर से कार के पहिये उतार दिये। कारों की रफ्तार इतनी तेज थी कि एक जिंदा इंसान पहले तो घायल फिर लाश और फिर टुकड़ों में तब्दील हो गया। सड़क पर इंसानी जिस्म के टुकड़े इधर से उधर फैल गये। खून सड़क से उठकर कारों के पहिये से लग कर कार वालों के साथ ही चला गया। खबर को सोच कर किसी भी इंसान के रोंगटें खड़े हो सकते है। अफसोस है कि ये पहला मामला नहीं है दिल्ली में कुछ दिन पहले ही अक्षर धाम टैंपल के सामने वाली सड़क पर इसी तरह से एक इंसान के टुकड़ें दिल्ली पुलिस ने उठाये थे। सवाल ये बचा ही नहीं कि किस गाड़ी की टक्कर से मरने वाला घायल हुआ। सवाल ये है कि हजारों कारें एक इंसान को रौंदते हुए गुजरती जा रही है बिना किसी अफसोस के। कारों में सवार ज्यादातर लोग घर वापस लौट रहे होंगे। घर जिसके अंदर उनके अपने इंतजार कर रहे होंगे। अक्सर आपने देखा होगा कई बार सड़क के बीच में किसी जानवर की लाश पड़ी होती है। पहले उस लाश के आस-पास मांस और खून का कीचड़ होता है। अगले दिन आपको सिर्फ उसकी खाल दिखाई देती है। इस तरह से जमीन से चिपकी हुई जैसे कि किसी ने सड़क पर तस्वीर बना दी हो। और फिर वो भी गायब हो जाती है। लेकिन इस तरह के आम दृश्यों में भी आप ऐसी किसी चीज की कल्पना नहीं कर सकते है कि कोई इंसान इस तरह से कुचल कर गायब होगा। ये देश की राजधानी दिल्ली है। देश के शंहशाहों का शहर। शहर जिसको खूबसूरत बनाने में हजारों करोड़ रूपये लगाये जा रहे है। ये शहर जिसमें कानून बनानी वाली संसद है। तब ये शहर इतना बेदर्द क्यों है। इसका जवाब भी दिल्ली के बाशिंदों में ही छिपा हुआ है। 15000 करोड़ रूपये खर्च कर विदेशी मेहमानों के लिये दुल्हन की तरह से सज रही है दिल्ली। लेकिन इसके लिये सबसे पहली बलि दी गयी उस गरीब आदमी और सड़क पर लेटे हुए आदमी जिसके नारों से दिल्ली की गद्दी सजती रही है। लेकिन हजारों करोड़ रूपये के इस नाजायज खर्च को राष्ट्रीय सम्मान का नाम दिया जा रहा है। इस शहर में पानी बिकता है। इस शहर में पेशाब करने का पैसा लगता है। इस शहर में भीड़-भरे इलाके में चाकूओं से गोद दिया जाता है इंसान को। इस शहर में पुलिस वाले दिन-दहाड़े रेप करने के आरोपों से घिर जाते है। लेकिन शहर है कि जागता ही नहीं।
कुछ दिन पहले देश की राजधानी मान कर हजारों लोग इस शहर में चले आये थे अपना विरोध जताने। दिल्ली शहर के मीडिया ने जिसे राष्ट्रीय मीडिया कहा जाता है पूरे अखबार के पन्ने और टीवी प्रोग्राम्स सिर्फ किसानों के खिलाफ गालियों से भरे थे। एक राष्ट्रीय अखबार में तो बाकायदा कुछ शराब की बोतलें एक साथ इकट्ठा कर खींचे गये फोटों को ये कह कर दिखाया गया कि शराब पी रैली में आने वाले किसानों ने। ठीक है शहर के शराब के ठेके का किसानों के दम पर चलते है। फाईव स्टार होटल्स और हाल ही में माल्स में दी गयी शराब परोसने की छूट का फायदा क्या किसानों को मिलता है। भालू-बंदरों सा दर्शाया था मीडिया ने उन किसानों को जो सिर्फ दिल्ली वालों को परेशान करने ही आये थे। ऐसा ही है ये शहर। ये अलग बात है कि इस शहर का दिल कहलाये जाने वाले कनॉट प्लेस की साज-सज्जा का खर्चा आम आदमी के पैसे से जा रहा है। उस आदमी के जो अपने खून पसीने को बेच कर इस दिल में बहने वाले खून का इंतजाम कर रहा है। लेकिन शहर है कि उन आदमियों को गंदगी कह रहा है। शहर में बहुत सारी बातें है जो राष्ट्रीय मीडिया के पहले पन्ने पर छपती है जैसे कि दरियागंज में एक बस में दो भाईयों को चाकूओं से मार कर गुंड़ों ने लूट लिया। वो चिल्लाते रहे लेकिन किसी ने उनको बचाने की कोशिश ही नहीं की। इसके बाद जब ड्राईवर बस को थाने में ले जाने लगा तो उन दिल्ली वालों ने ड्राईवर को गाली-गलौज कर बस को रुकवाया और उतर कर चलते बने। ये जाने क्यों इस शहर की फितरत है। कभी रोम के बारे में लिखते हुए विश्व कवि नाजिम हिकमत ने कहा था कि
" इस शहर को तो ऐसा ही होना था...क्योंकि इस शहर की नींव में भेडिये का दूध और भाई का खून......। लेकिन हमको इतिहास की किताबों में सिर्फ ये तलाशना है कि क्या किसी पीर, मुर्शीद , औलिया या साधुःसंत ने इस शहर को ऐसा होने का शाप दिया था क्या।
1 comment:
बेहद शर्मनाक प्रसंग, दुखदाई परिस्थितियाँ
लगता है किसी पीर, मुर्शीद, औलिया या साधुःसंत ने इस शहर को ऐसा होने का शाप नहीं दिया था बल्कि हर शहर को दिया था
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