मैं पत्थर पर यकीं कर रहा हूं आदतन
वो खुद को तेज कर रहा है इरादतन
मुझे यकीन हैं बदल दूंगा उसकी फितरत
वो मुत्मईन है तोड़ देगा मेरी हसरत
मेरा वजूद मेरे हौंसले में हैं
उसकी हस्ती तोड़ने में है
मेरे ईरादों की गर्मी से ये पिघल जायेगा
उसकी सोच का ठंडापन ये भी गुजर जायेगा
चाहता हूं कि कुछ देर वो सीने से लगे अपना हो ले
उसका इंतजार हो खत्म मुलाकात और ये भी रो ले
3 comments:
सुंदर पोस्ट
सुंदर पोस्ट
badhiya
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