Monday, June 7, 2010

कैसा अर्थशास्त्र पढ़े हो प्रधानमंत्री जी

"देश के लिये आज का दिन सौभाग्य का दिन है, देश को एक बेहद ईमानदार और पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री मिला है" कॉफी हाउस में बैठते हुए एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने मुझसे कहा था। देश की कमोबेश यही हालत थी। वर्ल्ड बैंक के लिये नौकरी कर चुके प्रधानमंत्री की ईमानदारी और अर्थशास्त्र की समझ पर कांग्रेसियों और बाकी पूरे देश को ऐतबार दिख रहा था।
वर्ल्ड बैंक की नौकरी यानि अमेरिकी और ताकतवर अमीर देशों के इशारों पर काम करने वाला बैंक। मैंने बस इतना सा ही जवाब दिया था। उन लोगों का मजा किरकिरा नहीं करना चाहता था। पत्रकार होने के नाते मेरे जेहन में ऐसे सवाल जरूर चुभ रहे थे। मैं चाहता तो भी मेरे दोस्त उनका जवाब नहीं दे पातें। हालांकि मैंने चलते-चलते पूछ लिया कि ये प्रधानमंत्री हिंदी में अच्छा बोलतें है कि पंजाबी में। जवाब में अटकते कांग्रेसी दोस्तों ने कहा कि नहीं वो इन दोनों भाषाओं में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बहुत शानदार बोलते है। मुझे लगा कि देश के लिये ये प्रधानमंत्री कितने मुफीद होंगे साफ नहीं था लेकिन एक बात थी कि ये जनाब अर्थशास्त्र के भारी विद्धान है
बात आई-गई हो गयी। वो कांग्रेसी दोस्त भी मेरे साथ है। कभी-कभी मिलते है। देश के सामने भी प्रधानमंत्री का काम-काज है। चौबीस मई को छह साल के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने दूसरी बार प्रेस कांफ्रेस की। यानि देश से दूसरी बार प्रधानमंत्री मुखातिब हुए। उनकी पहली बात थी कि देश तरक्की कर रहा है। पूरी प्रेस कांफ्रेस के फूटेज को बार-बार देखता हूं, उसको पढ़ता हूं एक बात समझ में आती है कि ये वर्ल्ड बैंक के अर्थशास्त्री है किसी गरीब जनता के प्रतिनिधि नहीं। गरीब देश की अमीर संसद के प्रधानमंत्री। तीन सौ से ज्यादा करोड़पति सांसद है इस बार की कुल पांच सौ पैतालिस की संसद में। ये कैसा अर्थशास्त्र है कि गरीब आदमी रोटी के लिये तड़प रहा है। गरीब आदमी आम आदमी नहीं है इस देश में। आम आदमी देश के मध्यमवर्ग को कहा जाता है। वो वर्ग भी मंहगाई से बिलबिला रहा है। देश की 38 फीसदी जनता को एक वक्त का खाना नहीं मिल रहा है। बच्चे मिट्टी की रोटियां खा रहे है। परिवार आत्महत्या कर रहे है। कुपोषण का कोई आंकड़ा नहीं। लेकिन प्रधानमंत्री का चेहरा खुशी से दमक रहा था और उनके मुंह से देश को पता चल रहा था कि बढ़ती विकास दर से मंहगाईं बढ़ रही है। मुझे सिर्फ एक हिंदुस्तानी अर्थशास्त्री की बात याद आ रही थी कि वर्ल्ड बैंक गरीब आदमी के निवाले से अमीरों की थाली सजाता है।
ये सोचा जा सकता है कि गरीबी पर नियंत्रण तो प्रधानमंत्री के हाथ से बाहर की बात है। लेकिन मंत्रीमंडल में मक्कारों की फौज पर प्रधानमंत्री का कोई बस है कि नहीं। उनको कोई घोटाला समझ आता है कि नहीं। टेलीकॉम घोटाला 60,000 करोड़ रूपये की देश के साथ लूट। एक के बाद एक घोटाले लेकिन प्रधानमंत्री का कहना है कि जांच होंगी। लेकिन जांच किस बात की होंगी..सबूतों से तो साफ दिख रहा है कि इसमें देश के साथ लूट हुई लेकिन ये अर्थशास्त्री समझ नहीं पा रहे है।
शरद पवार का कुनबा लूट की छूट के साथ ही मंत्रीमंडल में शामिल हुआ। संसद के गलियारे में शरद पवार की सांसद बेटी देश के सामने सफेद झूठ बोलती है कि उसके परिवार का कोई लेना-देना इंडियन पैसा लूटो लीग से नहीं है माफ करना इंडियन प्रीमियर लीग मैं चाह कर भी नहीं कह पाता हूं।
पहले पता चलता है कि सुप्रिया सुले के पति के उस कंपनी में शामिल है जिसको प्रसारण अधिकार के हजारों करो़ड़ के ठेके मिले है। खुदा खैर करे ...लेकिन अब सामने आया कि पुणे टीम की खरीद में शामिल सिटी कॉर्प के पीछे शरद पवार का परिवार है। खुद शरद पवार उनकी पत्नी और बेटी की इस कंपनी में 16 फीसदी हिस्सेदारी है। कंपनी ने पुणे की टीम खरीदने की 1100 करोड़ की बोली लगाई थी। कोई बेवकूफ भी बता सकता है कि कैसे ये खेल हुआ होंगा। लूट में जुटे इस परिवार के करीबी और इंटेलीजेंट और ओनेस्ट प्रधानमंत्री के एक और मंत्री प्रफुल्ल पटेल की बेटी ललित मोदी के लिये काम कर रही है।
दाल घोटाले में हजारों करोड़ रूपये का खेल कैसे हुआ। चीनी घोटाला क्या है। लोग भूल जाते हैं। इस भूल की कीमत बैठती है पवार कुनबे के दम पर जम कर देश को लूट रहे बिजनेस समूहों के लिये हजारों करोड़ रूपये की छप्परफाड़ कमाईं। देश के सामने शरदपवार झूठ बोलते है कि चीनी का उत्पादन कम होने की उम्मीद है मंहगाईं बढ़ती है 14 रूपये किलो चीनी 50 रूपये किलो तक जाती है। और देश में चीनी का उत्पादन ज्यादा हो जाता है। कैसे... ज्योतिषी जानता है प्रधानमंत्री नहीं।
हैरानी और भी है। लेकिन किसी को मालूम नहीं कि प्रधानमंत्री देश से बात करते हुए किस बात पर ज्यादा खुश है कि छह साल तक गद्दी पर बैठे रहे या देश के युवराज की अभी गद्दी संभालने की इच्छा नहीं है।
लेकिन एक बात और देश के प्रधानमंत्री की सभा में मीडिया की दरियादिली देखिये कि पूछता है कि आप किसकी ज्यादा सुनते है अपनी पत्नी की या अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की। मुस्कुराते प्रधानमंत्री और अपने सवाल पर इतराता मीडिया गजब की नूरा कुश्ती है।
लेकिन सवाल है अर्थशास्त्री जी देश के गरीब आदमी को कितनी रोटी खानी चाहिये और आम आदमी के एक दिन की थाली का मैन्यू क्या हो।

1 comment:

Jandunia said...

वाह क्या बात पोस्ट लिखी है। पीएम कितने आम आदमी के हैं ये उनके पिछले कार्यकाल को देखकर समझा जा सकता है। फिलहाल तो देश में लूट की राजनीति हो रही है। अब इस राजनीति में दखल कौन देगा।