जनवरी 1997 की रात। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सरधना थाने में एक एनकाउंटर हुआ। मुठभेड़ में दो शातिर बदमाशों को बहादुर पुलिस ने मार गिराया। मुठभेड़ में मारे गये हजारों बदमाशों की तरह से इन दोनों ने भी तमचों के दम पर पुलिस पार्टी पर हमला किया। देर रात के अंधेरें में आबादी से दूर बदमाशों को पुलिस पार्टी की जीप दुश्मन दिखायी देती है जिसे वो आसानी से गुजर जाने दे सकते थे। बदमाश की शिनाख्त हुयी कुख्यात नौशाद और मुईन पहलवान के तौर पर। लाश की शिनाख्त पुलिस के अलावा बदमाशों के पिताओं ने भी की। नौशाद लाख रूपये ईनामी बदमाश था और उसका दोस्त मुईन भी इलाके की पुलिस के लिये सरदर्द बने हुये थे। पुलिस पार्टी को इनाम के अलावा शासन की ओर से आउट ऑफ टर्न प्रमोशन जैसे मनोवांछित इनाम की घोषणा भी हुयी।
लगभग छह महीने बाद जून 1997 में मेरठ मंडल के गाजियाबाद जिले का विजयनगर थाना। रात को एक बदमाश ने अपने अज्ञात साथियों के साथ पुलिस पार्टी पर हमला किया। शहर से दूर अंधेंरे में बहादुर पुलिस पार्टी ने जवाब दिया। एकतरफा( तमंचा चल नहीं सकता था) गोलीबारी में पुलिस ने एक बदमाश को मार गिराया बाकी साथी अंधेंरे का लाभ उठा कर भाग गये। लाश की शिनाख्त हुयी। शिनाख्त की मारे गये बदमाश के पिता ने। ये बदमाश भी ईनामी नौशाद निकला। पुलिस पार्टी के बहादुर जवानों को ईनाम मिला आउट टर्न प्रमोशन की फीती की घोषणा भी हुयी।
अब कहानी का दूसरा सिरा सुनने से पहले ये जान ले कि नौशाद कौन था। मुजफ्फरनगर जिले के थाना चरथावल का रहने वाला नौशाद यूपी, दिल्ली और हरियाणा में कई दर्जन आपराधिक वारदात में शामिल था। तीनों राज्यों में पुलिस को उसकी तलाश थी। लेकिन ऐसा दुनिया में कोई दूसरा बदमाश नहीं हुआ जो एक बार नहीं दो-दो बार एनकाउंटर हुआ हो। दोनो बार पुलिस पार्टी को ईनाम-ईकराम मिला हो।
वारदात के अगले दिन चश्मदीदों ने अखबार वालों को बताया कि पुलिस वाले रात में एक युवक को पकड़ कर लाये थे और उसके बाद उन्होंने अगले दिन पुलिस की बहादुरी के किस्से सुने।
अखबार में फोटो छपी देख कर मुजफ्फरनगर जिले के थाना ककरौली गांव का एक किसान बेचारा थाने पहुंचा। और उसने कहा ये फोटो उसके बेटे मेहरबान की है जो दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में एक होटल में नौकरी करता था। विपक्षी नेताओं ने खूब हो हल्ला किया। सहानुभूति बटोरी और चल दिये। मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा लेकिन बाप को मालूम ही नहीं हुआ कि मामले में वकील पेश न होने के नाते अदालत ने उस मामले को खारिज कर दिया।
विकसित देश तो बहुत दूर की बात है किसी अफ्रीकी देश में भी ये वारदात हुयी होती थी सरकार चौंक जाती। लेकिन इस देश की सरकार तो दूर की बात राज्य सरकार ने इस बात की ओर कान नहीं दिया। एक मामला अल्पसंख्यक समुदाय के लड़के से जुड़ा था। उस पर दोनों ही मामलों में मुद्दई डाउन मार्केट मामला था।
आपको आज भी हिंदुस्तानी अदालत और पुलिस का ये कारनामा आज भी रिकार्ड में दर्ज है। एक ही मंडल के दो थानों में अलग-अलग मामला दर्ज है। सरधना पुलिस का रिकार्ड इस बात की गवाही दे रहा है कि उसके जाबांजों ने नौशाद का सफाया किया। इस बात की गवाही चरथावल थाने का रिकार्ड भी दे रहा है। दूसरी और विजयनगर पुलिस का रिकार्ड भी उसके साहसिक कारनामे की गवाही दर्ज है। लेकिन आपको यदि मेहरबान के बाप से मिलना हो तो ककरौली जा कर उसकी नवजात बच्ची और बीबी से मिल सकते है जो हिंदुस्तान की कसम खाते है कि खुदा किसी पुलिस वाले को उनके घर न भेंजे...................। कल)
3 comments:
हमे आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहानुभूती है.इस देश मे अल्पसंख्यक के साथ ऐसा होना कतई खास तवज्जो का केंद्र है. वैसे ऐसा कई बार बहुसंख्यको के साथ होता रहता है लेकिन उनकी संख्या यहा बहुत है जितने भी मरे थोडे है. अरे उल्लू के पट्ठो तुम कब आदमी को आदमी ने नाम से पुकार कर आवाज उठाओगे?शरम करो कुत्ते के पिल्लो हरामजादो आदमी की बात करो एक इनसान की बात करो
SHOCKING...!!! अज्ञात भाई साहब ख्वामख्वाह नाराज हो गए। पोस्ट में ज्यादा जोर नहीं है कि हत व्यक्ति अल्पसंख्यक था, इसलिए न्याय मिलना और जरूरी हो जाता है। शायद यह कहने की कोशिश की गई है कि अल्पसंख्यक था इसलिए तमाम नेतागण घड़ियाली आंसू बहाने पहुंचे। यह भी कहने का प्रयास है कि अल्पसंख्यक होने के बावजूद उतनी तवज्जह नहीं मिल पाई जैसा कि आमतौर पर इस देश में मिलती है। हो सकता है कि अज्ञात भैया को भाषा बहुत बहती हुई और स्पष्ट न होने की वजह से गलतफहमी हो गई हो।
बहुत अच्छे, पुलिस के उतारे तुमने कच्छे
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