..............>उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का परौर थाना। शाम के सात बजे जीप थाने में पहुंची। थानेदार के सामने उन्होंने अपना परिचय दिया। जीप में सादी वर्दी में यूपी पुलिस की टीम थी। इस टीम में मेरठ और बागपत थाने के पुलिस वाले शामिल थे। टीम मिशन पर आयी थी। रात के अंधेंरे में ये टीम परौर थाने के गांव में पहुंची। वहां से ग्राम प्रधान को साथ लेकर गांव के बाहर की बस्ती से घूमंतू जाति(बावविये, सांसी, पंखी) के पांच लोगों को उठा कर ले आयी। परौर थाना इंचार्ज ने इन लोगों की हिरासत को रिकार्ड में दर्ज करने की बात कही तो टीम लोकल थाने पर गर्म होने लगी। और बिना इंट्री किये पांच लोगों को लेकर निकल गयी।
बागपत जिले की सदर कोतवाली में देर रात पांच आदमी पुलिसया टार्चर को झेल रहे थे। नशे में धुत्त पुलिस वालों ने वहशियत की सारी सीमाये पार कर ली थी। इसमें दो लोगों की सांसे बंद हो गयी। पुलिस वालों की नींद टूटी। रात में कस्वे के डाक्टर की कार मंगायी गयी। और नदी के किनारे मिट्टी के तेल से दो लाशों को जला दिया गया। बाकी बचे तीन लोगों को क्या किया जाये ये सवाल पुलिस के सामने आ खड़ा हुआ।
अगले दिन अलसुबह गौतमबुध्द नगर के सूरजपुर थाने में पुलिस की एक मुठभेड़ हुई। और बहादुर पुलिस ने पांच पंखियों को गिरफ्तार कर लिया। उनसे भारी मात्रा में अस्लाह भी बरामद मिला। पुलिसिया पूछताछ में पांचों पंखियों ने मेरठ मंडल में हुई दर्जनों डकैतियों, चोरी और लूट में अपना हाथ मान लिया।
अब तक आप इस कहानी के किसी सिरे को नहीं समझें होंगे। मैं अब इसे आसान कर देता हूं। परौर थाने से लेकर आये पंखियों की इंट्री थानेदार ने रोजनामचे में कर दी थी। इतना ही नहीं उसने पांचों लोगों के नाम भी रोजनामचे में दर्ज किये थे। पंखियों के रिश्तेदारों ने कई तार मानवाधिकार आयोग को किये थे।
सूरजपुर मुठभेड़ में गिरफ्तार तीन लोग वहीं थे जिनको मुठभेड़ में शामिल पुलिसवाले परौर से उठा कर लाये थे। किसी आला अफसर को मालूम नहीं कि अपनी हिरासत में रखे लोगों से पुलिस के बहादुर सिपाही किस तरह से मुठभेड़ कर पाये।
बागपत सदर थाने में इस बात कि कोई इंट्री नहीं है कि वहां किसी आदमी को उस दौरान हिरासत में रखा गया था। लेकिन इस घटना में मारे गये एक युवक की पत्नी शहाना ने मानवाधिकार आयोग को पूरी घटना का ब्यौरा लिख कर दिया था। उस पर आयोग ने जांच की। लेकिन तब तक शहाना गायब हो चुकी थी। कहां कोई नहीं जानता। बागपत जिले के एक एसपी कृष्णैया ने जांच की लेकिन वो फाईळों में कैद हो गयी।
अंत कथा इतनी कि इस घटना में शामिल एक सब इंस्पेक्टर ने अपनी बहादुरी को फिर दोहराया। तीन मासूम बच्चों को हिरासत में यातना दे कर मौत के घाट उतार दिया। दरोगा जी के साथ पूरा थाना सस्पैंड हुआ। और फरार हुआ। लेकिन आज वो सब लोग फिर से थानों में कानून की रक्षा करने में व्यस्त है। एक बात और उस वक्त उन पंखियों और मासूम बच्चों की तरफदारी करने वाले लोग आज सत्ता में है। सत्ता अब उन्हीं वर्दी वाले हत्यारों को बचाने में लगी है जिनका विऱोध विपक्ष में रहते हुये कर रहे थे।..................आगे
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