Friday, July 10, 2009

खुले घूम रहे हैं आठ लाख हत्यारें :

हर साल मिलती है चालीस हजार लावारिस लाशे। ये संख्या उन लाशों की है जिनकी हत्या हुई होती है। ऐसी लाशें जो गली-सड़ी मिलती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट इशारा करती है कि मौत कैसे हुई। पुलिस पूरे तौर पर कानून का पालन करती है। यानि गली-स़ड़ी लाश को 72 घंटे तक कार्रवाई शिनाख्त के लिये रखती है। फिर अंतिम संस्कार कर देती है। सबूत ए शिनाख्त के तौर पर उसके कपड़े थाने के एक बंद कमरे में या फिर छत पर फेंक दिये जाते है। मौसम एक दो साल में उसे चट कर जाता है। इस तरह से हमारी तरह जीते-जागते इंसान की कहानी खत्म हो जाती है।
ये कहानी हिंदुस्तान में हर साल मिलने वाली चालीस से साठ हजार लाशों की है। इसमें वो लाशें शामिल नहीं है जो नहरों और नदियों में बहा दी जाती है। उन लाशों का ज्यादातर हिस्सा मछलियां या फिर कछुएं खा जाते है। कभी ये लाशें मिलती भी है तो कर्तव्यनिष्ठ पुलिस वाले के मुखबिर इन्हें अगले थाने के लिये बहा देते हैं।
मैं पुलिस की कहानी नहीं बता रहा हूं। ये फिर कभी। इन लोगों की गुमशुदगी की रिपोर्ट थानों के रजिस्टर में कभी-कभी दर्ज होती है। लगभग सारी लाशें गरीब और समाज के निचले तबके से रिश्ता रखने वालो की होती है। यानि उनकी रिपोर्ट न लिखी जाये तब भी कोई हाय-तौबा नहीं। घर वाले पांच दिन तक थाने के चक्कर लगाने के बाद अपनी रोटी की तलाश में इधर-उधर निकल जाते है।
यदि आपराधिक वारदात का विश्लेषण करे तो औसतन एक हत्या में दो लोग शामिल होते है। इसका मतलब हर साल 40 हजार लाश मिले तो 80 हजार हत्यारें भी पैदा हो जाते है। लेकिन पुलिस को कभी नहीं मिलते। पुलिस के पास उनकी तलाश के लिये वक्त भी नहीं होता। ऐसा संयोग कई बार हुआ है कि किसी मामले में कोई आदमी पुलिस की गिरफ्त में आये और वो पुरानी हत्याओं की बात भी कबूल कर ले। लेकिन ऐसा एक-दो बार ही होता है।
इसका मतलब है कि पिछले दस सालों की बात करें तो लगभग 8 लाख हत्यारे है जो हमारे आपके आस-पास फ्री घूम रहे है। कानून उन तक कभी नहीं पहुंच पायेगा।
मारे गये आदमी के फोटो के अलावा पुलिस के पास कुछ नहीं रह जाता। न उसका डीएनए सैंपल न उसकी पहचान के लिये कोई दूसरा तरीका। पुलिस मॉर्डनाईजेशन के नाम पर हजारों करोड़ रूपया डकारने वाले इस बात की ओर कोई ध्यान देना तो दूर सोचते भी नहीं है कि क्या लावारिस आदमी का डीएनए नहीं कराया जा सकता। और उसको रिकार्ड में रख कर देश के तमाम थानों तक भेज दिया जाये। गुमशुदा लोगों के रिश्तेदार आसानी से अपना रिश्ता बता कर ये चेक कर सकते है कि मारा गया बदनसीब उनका अपना खून था।

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