Monday, July 6, 2009

वर्दी में हत्यारे ?

रणबीर सिंह। रण में वीरता दिखाने वाला शेर। मां-बाप ने यही नाम रखा था। देहरादून पुलिस ने रणबीर की हत्या कर दी। रणबीर या उसके मां-बाप को मालूम नहीं था रण में नहीं घर में मार देंगे वर्दी वाले गुंडे उसे। लाश गवाह थी कि रणबीर को कितनी यातनायें दी गयी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस बात के सबूत मिल गये। संवैधानिक हत्यारों ने 14 गोलियों से बेध दिया एक मां का बेटा, बाप का शेर, बहन का भरोसा और भाई का सहारा। लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी। कागज इस बात का भरोसा देते है कि एक सरकार वहां काम कर रही है। पुलिस ने मारने के बाद दावा किया कि एक बदमाश को मार गिराया। बाकी दो साथी भाग गये। थानेदार और सिपाही एक ही जूते में पांव रखे हुये थे। एसएसपी पर जिम्मेदारी थी कि वो इस बात की तफ्तीश कर ले कि उसकी पुलिस ने किसका काम तमाम कर दिया। लेकिन एसएसपी को डेयरिंग एसएसपी कहलाना था। लिहाजा उसने अपने हत्यारों की बात को तस्दीक कर दिया। और मेहनत से भरी कामयाबी हासिल कर रही एक जिंदगी बस याद में तब्दील हो गयी।

पहले तो सरकार ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि मुठभेड़ फर्जी थी। लेकिन बाद में हो हल्ला मचा। सबूत चीख-चीख कह रहे थे कि सरकारी गुंडों ने वर्दी के नशे में हत्या कर दी।

सरकार ने कार्रवाई के नाम पर कुछ पुलिस वालों को लाईन हाजिर कर दिया। एसएसपी को मुख्यालय भेज दिया। जीं हां यही कार्रवाई हुई जनता की सरकार की ओर से। हत्यारों को खुली छूट दी गयी कि वो बदल दे रिपोर्ट और डरा-धमका दे गवाहों को और बाईज्जत वापस लौट आये लूटमार और वसूली के अपने धंधें पर। क्योंकि अंग्रेजों की पुलिस की नजर में हिंदुस्तानियों की औकात कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है। ये वही वर्दी है जो आज भी अंग्रेजी कानून से चलती है। नेता जीत कर सत्ता में आता है तो उसके इशारे पर लाठी-गोली चलती है और जब विपक्ष में होता है तो उसके उपर चलती है। लेकिन जनता के पास कोई रास्ता नहीं है इस बात का कि वो हत्यारे पुलिस वालों के खिलाफ किसी कार्रवाई में शामिल हो।

पिछले दस सालों के अनुभव ने मुझे कई ऐसे मामलों से रू ब रू कराया जो देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंचे और पुलिसिया दबाव में बिखर गये। ऐसे कई मामले है जो इस बात का सबूत है कि कानून को किस तरह हत्यारे अपने लिये इस्तेमाल कर रहे है। .......................................।

2 comments:

संदीप said...

सही कहा जनाब, वर्दीवाले आम आदमी को जानवर से अधिक कुछ नहीं समझते और इन्‍हीं वर्दी वालों के खिलाफ जनता आवाज उठाती है तो सरकारी भोंपू चीख पुकार मचाने लगते हैं कि मासूम पुलिसवाले को भी नहीं छोड़ा। हाय रे मासूम, उफ ये वर्दी...

admin said...

बचके रहना प्यारे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }