Wednesday, June 24, 2009

जिंदगी की प्यास और शैलेन्द्र

शैलेन्द्र सिंह के जाने की खबर मैंने सुनी तो यकीन नहीं हुआ। शैलेन्द्र से आखिरी मुलाकात तो कई साल पहले हुयी थी। लेकिन जब उनका गजल संग्रह आना था तो एक दिन मेरे पास उनका फोन आया था। मैंने वादा किया था कि मैं उनके गजल संग्रह के विमोचन के दिन जरूर आऊंगा। जा नहीं पाया। उनके जाने के बाद लोगों ने उनके बारे में कहा, लिखा और सुनाया। मैं उनके ज्यादातर किस्सों में तो शामिल नहीं था लेकिन मुझे याद है कि एक बार मैं कई सारी किताबे खरीद कर उनके सामने से गुजर रहा था उन्होंने किताबे देखी और एक किताब अपने पढ़ने के लिये रख ली। मैंने बाद में कहा तो उन्होंने कहा कि वो किताब तो अब मैं इस जन्म में तुमको वापस नहीं करूंगा। बात भूली सी हो गयी थी लेकिन उनके जाने के बाद किताब का नाम याद आया ....जिंदगी की प्यास।


कितने किस्सों में रह गया वो आदमी,
जिंदगी को कितनी तरह से कह गया वो आदमी।
चला गया हमेशा के लिये कितनों के लिये,
कितनों की यादों में रह गया वो आदमी।
रास्ते पर सहमा सा खडा था वो आदमी,
रफ्तार में जिंदगी खो गया वो आदमी।

2 comments:

हरीश बर्णवाल said...

सचमुच ये यादें नायाब तोहफा बनकर रह गई हैं...

हरीश

Dr. Hemant Joshi said...

धीरेन्द्रजी,

यह जान कर अच्छा लगा कि रघुवीर सहाय की जिन पंक्तियों से मुझे बोलने का साहस मिलता है वही पंक्तियाँ आपको भी प्रेरणा देती हैं। आपकी कविताएँ अभी पढ़ नहीं पाया हूँ, पढ़ने के बाद उनपर भी अपनी प्रतिक्रिया दुँगा अगर आप चाहें तो...
हेमन्त जोशी