16 मई की सुबह। जगह दिल्ली का 24 अकबर रोड़। आठ बजते-बजते ढ़ोल-ताशों की थाप पर नाचते गाते लोग। जीत का जश्न था। और इस बात से नाइत्तफाकी शायद ही किसी को है कि ये लोग बेहद खुश थे। इनके अपने सत्ता में लौट आये है। 18 मई की सुबह। जगह मुंबई की दलाल स्ट्रीट। शेयर बाजार खुला ही नहीं कि कि बंद हो गया। किसी खौफ या हमले से नहीं। बल्कि मुनाफा संभाल न पाने की वजह से। बाजार में सर्किट लग गया। एक बार नहीं दो बार। इतिहास बन गया। महीनों से मंदी से घिरे बाजार की ये खुशी थी। नयी सरकार के बनने की खुशी। 2 लाख दस हजार करोड़ रूपये बिजनेस। बाजार खुला 1 मिनट 48 सेकेंड। लेकिन यही सरकार चुनावी नतीजों से पहले भी सत्ता चला रही थी। महज एक महीने में क्या हुआ जिसने बाजार को इतना खुश कर दिया कि लाखों करोड़ का कारोबार दो मिनट में हो गया। गिरगिट को मात देने वाले मीडिया के पास इसका सटीक जवाब है। स्थायी सरकार। और खुशहाल भविष्य की उम्मीद।
अब सीन को कुछ महीने पीछे के फ्रेम में ले जाते है। 26 नवंबर मुंबई में आतंकवादियों का सबसे बड़ा हमला। पूरा देश दहशत में। सरकार आतंकवादियों से जूझ रही थी और देश टीवी चैनलों पर नजर गड़ाये बैठा था। शेयर बाजार खुला और सेंसेक्स बढ़ गया। गिरगिटों के पास अपनी दलाली औऱ देशभक्ति दोनों को बताने का कोई मुहावरा नहीं था। लेकिन इस बात से इंकार करने की हैसियत में कौन है जो ये कहे कि बाजार को अच्छे ट्रैंड नहीं मिले। यानि आतंकवादियों के हमले ने बाजार को इस बात का हौसला दिया कि वो चढ़ कर इसका स्वागत करे।
मीडिया ने कहा कि आतंकवादियों को जवाब दिया है बाजार ने। किस तरह का जवाब क्योंकि 18 मई को बाजार ने नयी सरकार का स्वागत किया है।
यानि सरकार के आने और आतंकवादियों के हमले में ये बाजार कोई अंतर नहीं करता है। समझ में नहीं आता कि क्यों। लेकिन बात इतनी नहीं है। बाजार को उपर नीचे गिराने का काम करते है सटोरिये। यही आम आदमी जानताहै और यही समझ भी आता है। लेकिन सटोरियों कौन है। कौन है जिसको इनके फायदे की फ्रिक रहती है।सरकार कौन चुनता है और सरकार किसके लिये काम करती है। ये कई सवाल लगातार जेहन में आते रहते है। मेरे आस-पास के लोग भी जिनको देश की फ्रिक (बातों में) होती है बेईमानी (दूसरे की) से नाराज होते है शेयर बाजार के चढ़ने से बेहद खुश और गिरने से हताश होते है। बाजार क्या है इससे उन्हें मतलब है कि पैसा उनका कितना परसेंट बढ़ गया। हालांकि मीडिया ने इसके लिये जाने कितने जवाब दिये वो सारे जवाब मेरे पास है, लेकिन मेरे जैसे मूर्ख को कौन समझा सकता है।
एक कहानी और मुझे याद आती है कि एक गांव के लोगों को उस गांव के जमींदार के घर होने वाली दावत का इंतजार रहता था। दावत में उसके यहां बाहर के मेहमान आते थे। दावत में जो मांस पकता था उसकी खुशबू से पूरा गांव महकता रहता था। दावत खत्म होती थी और बचा हुआ मांस और हड्डियां जमींदार के नौकर गांव के लोगों में बांट देते थे। लेकिन हर बार दावत से पहले आस-पास के गांवों से कुछ बच्चे गायब हो जाते थे। जब वो दूसरे गांव वाले इस गांव में आकर छानबीन करना चाहते थे तो जमींदार के गांव के लोग उन्हें गांव में कदम भी नहीं रखने देते थे। और अब जमींदार के गांव वाले इस बात इंतजार करते है कि कब आस-पास से बच्चे के गायब होने की खबर आये और कब जमींदार के यहां से बचा हुआ मांस और हड्डियां का खाना उनको परोसा जाये।
3 comments:
क्या आप पोस्ट करने से पहले चेक नहीं करते, 3-3 बार एक ही मैटर दे दिया गया है, इसका कोई औचित्य भी समझ नहीं आया, गलती से तो 2 बार हो सकता है, लेकिन 3 बार???
यह गलती नहीं
गलता है
जानबूझकर किया गया
लगता है, गलता है
सचमुच पढ़ने वाला ही
इस गल को पा सकता है
वरना उसका गला भर सकता है
वैसे अच्छी प्रकार समझने के लिए
तीन बार पढ़ना आवश्यक है
इसका यह आशय भी हो सकता है
जो टाइम खराब हो पोस्ट पढ़ने में ही हो
पोस्ट को उपर नीचे करने में न हो
समय बेशकीमती है
खासकर ब्लॉगर्स का
एक एक ऑवर्स।
पोस्ट अच्छी लिखी है।लेकिन सुरेश जी बात पर भी ध्यान दें।
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