आज पुरानी किताब के पन्ने उलटते हुये कुछ कविताओं पर नजर गयी। मैं उनमें से कुछ कविता यहां दे रहा हूं कवि का नाम कविता के बाद लिख दिया है।
तुम्हारे शब्द पत्थर है, पर तुम्हारी वाणी वर्षा है,
तुम्हारी पीठ समुद्र पर दोपहर है,
तुम्हारी हंसी उपनगर में छिपी धूप,
तु्म्हारे खुले केश सुबह की छत पर एक तूफान,
तुम्हारा उदर समुद्र की सांस और दिन का स्पंद है,
तुम्हारा नाम मूसलाधार और तुम्हारा नाम चारागाह है,
तुम्हारा नाम पूरा ज्वार है,
पानी के सारे नाम तुम्हारे है,
लेकिन तुम्हारा यौन अनामित है,
होने का दूसरा चेहरा,
समय का दूसरा चेहरा।
..................................आक्तावियो पाज
सरियलिस्ट लव पॉयम्स टेट से पब्लिश
वह मेरी पलकों पर खड़ी है,
और उसके केश मेरे हाथ में हैं,
उसकी आकृति मेरे हाथों जैसी है,
मेरी आंखों जैसा उसका रंग,
वह मेरी परछाईयों में समायी है,
जैसे आकाश पर एक पत्थर ।
...........................................आंद्रे बेतों
प्रेम हमेशा पहली बार से साभार
रात देर गये हम फल बीनने गये,
जो मेरे मृत्यु स्वप्नों के लिये चाहिये थे,
वे बैंजनी अंजीर ,
पुरातन मृत घोड़े,बाथ टब की शक्ल में,
गुजरते है पास से और ओझल हो जाते हैं,
सिर्फ खाद बोलती है,
हमें आश्वत करती हुयी।
...........................रेने सां
2 comments:
bahut hi gahre bhav se bhari kavitayein hain.
padhvane ke liye shukriya ....alag hat kar hain
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