Monday, April 6, 2009

मैं शक के दायरे में हूं आजकल

मैं शक के दायरे में हूं इन दिनो
हर दिन, हर जगह, हर पल
दिख रहा है कुछ
समझ रहा हूं कुछ
खूबसूरती,,ताकत
उभरती मल्टीस्टोरी
चमकते मॉल्स, दमकते चेहरे
तेजी से दौडता बाजार दिखता है
रात/दिन
ऊपर की और चढ़ता सेंसेक्स का ग्राफ
तस्वीरों से चमकते चेहरे
रैंप पर चढ़ते-उतरते चेहरे
जींस के बटन खुलवाते कसरती जिस्म
बटन खोलते हुये गुलाबी हाथ
मेरी नजर में है दिन -रात
झिलमिलाते तारों सी मुस्कुराहट के साथ
समाचार पढ़ती है एंकर
खनखनाती हंसी के साथ सामान खोलती लडकी
मोहक अंदाज, बेदाग अंग्रेजी में समझाते लडके
दिखते है माल्स हो या शोरूम
कम्प्यूटर पर तेजी से उंगलियां चलाती लडकियां
कार हो या फाईटर प्लेन चलाती लडकियां
लेकिन
दिमाग वो समझ नहीं पा रहा है
जो दिखा रही है नजरे ।
हजार वाट की
नियान लाईटों से बाहर निकलते ही
शुरू होते है
पार्किंग के अंधेंरे
बस स्टाप की रोती हुयी हुयी रोशनी में
अधपूछी लिपिस्टिक
आंखों से चिपकी उदासी के साथ
ऑटो- बस का इंतजार करती लडकी
ये तो वही चेहरा था।
रूक कर कोने में कस्टम शॉप पर
मोल-भाव करते
लडके की इंग्लिश कहां गयी।
समाचार
जो पढ़े नहीं गये
भूख से मरते परिवार
आत्महत्या करने वाले दंपत्ति
बस से कुचले गये बाप का
इंतजार करती मासूम आंखे
मॉल्स की रोशनी में अचानक
चढ़ जाती है मेरे दिमाग में
अखबार न पढूं ,
इंधर ने देखूं ,
उधर न सुनूं,
क्या न करूं ,
शक से बाहर आने को मैं।
स्क्रीन से ओझल
कंपनी का कोट उतारती एंकर
सैंडिल का फ्लैफ बांधती एंकर,
गाड़ी कब मिलेगी,
शिफ्ट क्या लगेगी,
कुछ तो था जो समझ नहीं पायी,
पढ़ गयी
अकाल मौत को
बेटी से बाप के बलात्कार को
मुस्कुराहट के साथ।
वरूण गांधी जेल में है,
लालू मुनाफे से चमकती रेल में है,
सचिन धोनी एड के खेल में है,
तीसरा- चौथा मोर्चा दिलों के मेल में है,
दिख रहा है रात दिन।
बेघर राहुल सोनिया
बे-कार है
मेरे पास एक अदद मोटरसाईकिल
घर और कार है।
दाई जानती थी मेरे जन्म के वक्त,
स्विस बैंकों में जमा होते है पैसे।
आडवानी ने हाल ही में जाना पहली बार
काला धन विदेशों में इकट्ठा होता है ऐसे।
आम चुनाव की कवरेज है,
देश का नक्शा ब्यूरों चीफ के सामने पेश है,
यूपी, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान पूरा,
मध्यप्रदेश में कुछ फेस है,
नार्थ ईस्ट, साउथ स्टेट से...
परहेज है।
नक्शे में पूरा दिखता
समझ में नहीं आता
कहां तक मेरा देश है।
मेरी जुबान पर मुझे शक है,
चिल्ला देगी कभी भी,
कही भी,
ये सब फरेब है।

.....मैं शक के दायरे में हूं इन दिनों

4 comments:

अनिल कान्त said...

ultimate--superb ...excellent

शोभित जैन said...

बढ़िया व्यंग्य....

संगीता पुरी said...

बढिया व्‍यंग्‍य ... पर अक्षर काफी छोटे हैं ... थोडे बडे होने चाहिए ... बधाई।

Dr.Bhawna Kunwar said...

एक ही रचना में बहुत कुछ कह दिया बहुत खूब...