Thursday, April 2, 2009

जल का टीवी

जल ने जब पहली बार आंखे खोली
अहसास किया एक बेहद प्यारे से स्पर्श का
शब्द दिया मां
लगा जिंदगी जीने के लिये मिली है
कुछ देर बाद एक हाथ जिसमें
प्यार था लेकिन मां की तरह कोमल नहीं
वो बाप का हाथ था
लगा कि जिम्मेदारियां से कडक हो जाती है जिंदगी
फिर कुछ सफेद कपडों पहने नर्से और डॉक्टर मिले
प्यार और देखरेख की जिंदगी में कडवे घूंट
और इंजेक्शन की चुभन भी सहनी होगी।
ये दुनिया बड़ी आसान सी दुनिया थी
लेकिन घर में जब जल ने टीवी देखा
तो उसकी समझ से बाहर हो गयी दुनिया
और अब वो जिस दुनिया में जी रहा है वों
मां- बाप , डॉक्टर और नर्स की दुनिया नहीं हैं
ये वो दुनिया भी नहीं है
जिसमें जिये है उसके पुरखे।
जल को रास्ता बनाना है
उस दुनिया में
जो जमीन पर नहीं, हवा के सहारे चलती है।
जिसमें इंसान खून से नहीं फ्रेम से पहचाना जाता है।

2 comments:

संगीता पुरी said...

जल को रास्ता बनाना है
उस दुनिया में
जो जमीन पर नहीं, हवा के सहारे चलती है।
जिसमें इंसान खून से नहीं फ्रेम से पहचाना जाता है।
बहुत खूब !!

हरि said...

सत्‍यवचन।