जल
मैं इस दरवाजे तक तुम्हारे साथ हूं।
मैंने तुम्हे सिखाया है ,
सच बोलना ,
गलती हो तो मान लेना,
संभल कर चलना,
कुछ बाते जो मैंने सीखी
संभाल कर रखी
और तुम तक पहुंचाया
बाअदब....
मेरे पुरखों की तहजीब।
अब इस दरवाजे के अंदर
तुम को जो सीखना है
उसमें मेरा दखल नहीं है।
तुम्हें जन्म दिया,
नाम दिया मैंने,
लेकिन अंदर तुम को सीखना है,
तरीका... जिंदगी जीने के लिये,
तुम जिनको चुनोगे
जिंदगी में अपने साथी
वो बता देंगे मुझे तुम्हारी....
आगे की जिंदगी के रास्तों का पता।
मैं छोड़ रहा हूं,
आज....
तुमको इस दरवाजे के अंदर
जहां से जिंदगी की कोरी किताब पर
तुमको लिखने होंगे अपने अक्षर
ये दरवाजा
जिसे दुनिया स्कूल कहती है
मेरे लिये तुम्हारी आगे की दुनिया का
कैनवास है,
जिसकी कूंचिया तुमको तराशनी होंगी
जिसके रंग तुम को भरने होंगे।
3 comments:
जल कल से जाएगा स्कूल, गरमी के मौसम मेंस पढ़ लिख जाएगा, तो हो जाएगा ठंडा-ठंडा कूल-कूल
आखिर जल की चादर आपने रंगरेज तक पहुंचा ही दी रंगने के लिए.. ये नया अंदाज है आपका कि रंग भले रंगरेज का हो लेकिन कूची चादरवाले को अपनी ही तराशनी होती है.. ये सच भी है... ये भी दिल को छूने वाली अंदाज है...
बहुत खूबसूरत रचना ... बधाई।
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