Saturday, August 6, 2016

मैं कई बार ढपोरशंख की कहानी पढ़ता हूं गृहमंत्री जी। बिना मुंह का हो गया पाकिस्तान।

पाकिस्तान से बिना बिरयानी खाएं लौट आएं गृहमंत्री जी। एअरपोर्ट पर बेताब से पत्रकारों की बिरादरी में अपने बौनेपन के साथ मैं भी शामिल था। आखिर देश के गृहमंत्री दुश्मन देश की जमीन पर ( बहुत से लोगो को ये विशेषण नहीं पचेगा) उसे करारा जवाब देकर लौटे । ( ये हिंदुस्तानी मीडिया की लाईन थी) करारा ऐसा कि पाकिस्तान की बिरयानी भी नहीं खाई। मैने भी यही कहा। 
लेकिन एक प्रसंग साथ चल रहा था कि हमने पढ़ा क्या है और हमने कहा क्या है।
आप जिद करके बिरयानी खाने गए थे। आपकी जिद थी कि आप पाकिस्तान जाकर बिरयानी खाएंगे और उसी को गरियाएंगे। याद है कि नहीं क्योंकि बेशर्मी के घड़ें में यारदाश्त सबसे छोटा कण होती है कि आतंकियों के साथ अगर कोई मुठभेड़ भी लंबी चली तो आपके राष्ट्रवाद ने नारा लगाया था कि आतंकियों को बिरयानी खिला रहे है। शहजादे और उसकी मां को आपके महान नेता ने काफी गरियाया कि बहुत बिरयानी खिलाई आतंकियों को उन लोगो ने। लिहाजा मुझे लगा कि आपकी सरकार ने तय किया कि अब उनकी बिरयानी खाई जाएं ताकि बदला पूरा हो। इसीलिए पहले प्रधानमंत्री बिरयानी खाने बिना निमंत्रण पहंच गए और फिर आपको भी ये अदा इस्लामाबाद तक खींच कर ले गई।
खैर कहानी ये है कि आपको जिस लंच में जाना था वहां मेजबान नहीं था तो आप बिना खाएं लौट आएँ। ये आम शिष्टाचार होता है आपकी कोई वीरोचित बहादुरी नहीं जिस पर संसद में ताली पीटी जा रही थी। वहां बैठे हुए बहादुरों के बारे में देश अच्छे से जानता है एक एक को समझता है आखिर वहां वो वोटों के गणित से ही पहुचे है ना। बचपन की एक और कहानी है कि किस को नारायण दिखा। तो वहां सब लोगो को एक कहानी को बनाएं रखना था। वो कहानी थी कि जिद पर ऐसे माहौल में जब वो आपके देश को तोड़ने के खुलेआम प्रदर्शन कर रहा है उस वक्त आप वहां इस ख्वाब में चले गए कि वो हार लेकर खाने की थाली पर बैठकर आपका इंतजार कर रहा होगा।
मुझे उम्मीद है कि चार अगस्त की दोपहर के बाद से पाकिस्तान में सैकड़ों-हजारों लोग बिना मुुंह के घूम रहे होंगे क्योंकि आपका मुंहतोड़ जवाब लगातार वहां गूंज रहा होगा और लोगो के मुंह तोड़ रहा होगा। पाकिस्तान में बुर्कों की खरीद -फरोख्त बढ़ गई होगी इसी से इंडियन एजेंसियों की गणना फेल हो रही होगी नहीं तो आपके पास डाटा आ गया होता कि कितने लोगो के मुंह तोड़ दिये गए है। ऐसा ही आपने श्रीनगर में किया। आपके दौरे बाद अलगाव वादियों ने बुर्का पहन लिया और पत्थरबाजों के चूकिं आपके मुंहतोड़ जवाब ने मुंह तोड़ दिये लिहाजा वो जाने पत्थर कैसे फेंक रहे होंगे।
बात सिर्फ तंज की नहीं है बात है दर्द की। बात है एक ऐसे अनूठे सिस्टम की दो देश को लोगों को और आने वाली पीढ़ी तो चट कर रहा है उनके भविष्य को काला कर रहा है और उन्ही से ताली बजवा रहा है। गजब का कारनाम है। पूरी सरकार ने वोट हासिल किए थे कि वो बिरयानी खिलाने वालों को जवाब देंगी और कश्मीर में अलगाववादियों से कोई बात नहीं करके धारा 370 को हटाने की दिशा में काम करेंगी। आपने 370 का नाम सदन में सुना है क्या उसी सदन में जिसमें कश्मीर पर सदन ने चर्चा की। वही सदन जो देश का भविष्य बनाता है। उस सदन ने जिसने एक मत हो कर कश्मीर पर जवाब दिया। अब कुछ कहना दिक्कत कर देंगा कि ये वही सदन है और इसकी राजनाथ सिंह की गई तारीफ ऐसी ही है जैसी सदन में कश्मीर को लेकर की गई चर्चा मैं ये तो लिख ही सकता हूं कि-- दोनो चर्चाओं का कश्मीर की हकीकत से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। एक कविता याद आती है मेरी अपनी हालात कैसी है इस खबर को करने और देखने के बाद, उसको इसके साथ जोड़ रहा हूं जो पढ़ना चाहे पढ़ सकते है।
काले को काला. सफेद को सफेद कहना
........................................
काला
वो बोले
भय से भीगी जनता चिल्लाई.... काला,
लेकिन वो काला रंग नहीं था
मैंने हाथों से मली आंखें बार-बार
दिमाग पर जोर डाला कई बार,
लेकिन ये तो नहीं है काला
मेरे चारो ओर घिर आये लोग
जोर देकर उन्होंने कहा कि काला
ध्यान से देखा मैंने फिर
लेकिन ये नहीं है काला
थोड़ी धीमी हो गयी थी मेरी आवाज
वो जिनकी तेज निगाह थी मुझ पर
उन्होंने कहा देखो ध्यान से
अचानक मुझे लगने लगा कि हां वो काला ही तो है
भीड़ से आवाज मिलाकर मैं चिल्लाया
हां.... कितना..... काला,
उसके बाद से मुझे नहीं मिला किसी भी रंग में अंतर
जो वो देखते रहे, मुझे भी लगता रहा वैसा ही
मैंने काले को सफेद, सफेद को हरा,
हरे को लाल और नीले को कहा काला
और फिर मैं भूल गया कि मैंने क्या कहा किस को
लेकिन
मेरे हाथ कांप रहे है आज
मुश्किल हो रही है मुझे बोलने में
जल पूछ रहा है,
रंगों की किताब हाथ में लेकर
पापा जरा बताओं तो ये कौन सा रंग है
मैं समझ नहीं पा रहा हूं
कि
इसको कौन सा रंग कौन सा बताना है।

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