बुलंदशहर की सड़कों पर एक रात एक परिवार के साथ हैवानियत हो गई। इस प्रदेश की सड़कों की ये एक आम बात है। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री नाराज हो गए। ( ये विचित्र बात है) पत्रकारनुमा चमचों की भीड़ ने इस तरह से नारा गुंजाया कि डीजीपी को हेलीकॉप्टर मिल गया घूमने के लिए। डीजीपी साहब वोटो के गणित के हिसाब से सबसे उम्दा है। इससे बेहतर गणित का डीजीपी इस प्रदेश को मौजूदा समय में नहीं मिल सकता है। आखिरकार डीजीपी वहां पहुंचे। सरकारी अमला हरकत मं आ गया। आखिर इसी लिए तो सरकारी अमला बना है कि साहब बहादुर जब भी आएँ तो कपड़ों पर इस्त्री हो, सैल्युट लगाना है और कंधों पर बंदूक टांगनी है, वसूली एक दिन पहले बंद करनी है एडवांस में लेने का कायदा भी हो सकता है ताकि सब कुछ ठीक-ठाक दिखे। डीजीपी साहब ने फौरन कुछ लोगो को सस्पैंड कर दिया। ( सस्पैंशन कोई सजा नहीं होती है ये कानून में है। वो फिर वापस छह महीने अपनी कमाई पूरी करने के हौंसले और हिम्मत से जुट जाते है)। लेकिन ये कोई बड़ा कारनामा नहीं है, वो तो उससे भी बड़ा कारनामा करने आएँ थे और कारनामा था कि उन्होंने तीन लोगो के पकड़े जाने की घोषणा की। तीन लोगों का नाम लेकर उन्होंने बताया कि इन लोगों ने वारदात में हिस्सा लिया। और वहां से उड़ गए। पत्रकारों ने आसमान को गुंजा दिया कि किस तरह से तीन लोगों ने इस वारदात को अंजाम दिया। कहानी पूरी हुई लेकिन अगले दिन जब जेल में गएं तो पता चला कि उनके नाम बदल गए। ये उलट-बांसी कैसे हो गई। अफसरों ने कहा कि डीजीपी साहब गलत नाम बोल गए थे।लेकिन डीजीपी ने जो कारण बताया वो किसी ऐसे देश में जिसमें कानून का शासन होता तो शायद डीजीपी बर्खास्त हो गए होते नहीं तो उनसे हाउसिंग नाम के कोल्डस्टोरेज में तो भेज दिया जाता। डीजीपी साहब ने बताया कि अपराधियों ने नाम गलत बताया और डीजीपी साहब ने यकीन कर लिया। किस तरह से यकीन कर लिया इसी तरह जिस तरह से उनकी पुलिस ने उनका रिमांड लेने की कोशिश नहीं की। मुझे उन अपराधियों पर तरस आ रहा है क्योंकि उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता गलत नहीं बताई। अगर वो अपने आप को अमेरिकी नागरिक बताते तो डीजीपी साहब यकीन कर लेते। क्योंकि ये वोटो के गणित से भी बेहतर होता। आखिर अमेरिका को लेकर एक तबके में जिसकी उत्तरप्रदेश में बहुत वोट है बहुत गुस्सा है। ऐसे में अगर मुल्जिम अमेरिका बतातें तो सोचो क्या गणित बैठता वोटों का। और आगे जेबकतरी के एक छोटे से मामले में पुलिस वालों में मुल्जिम का रिमांड लेने की जो होड़ मचती है इसमें एक ऐसे मामले में जिसमें मुख्यमंत्री नाराज हो गए उसमें कोई रिमांड नहीं। ऐसा शानदार कारनामा कभी देखा नहीं गया। खैर कोई बात नहीं ये डीजीपी साहब पुलिसिंग जानते है क्योंकि इन्होने बताया था कि दादरी वाले में मसले में मांस गाए का हो या फिर भैस का अब उससे केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यानि बिना मोटिव के ये साबित कर देंगे कि कत्ल हुआ है। इनकी बात बात गजब होती है लेकिन लोगों को जेहन में ये भी रखना चाहिए कि ये साहब सीबीआई में भी आरूषि केस में भी थे। खैर इनकी छोड़िये नाराज हो जाएँ क्या पता इसलिए इस बात को यही खत्म करते है माफी मांगते हुए कि साहब हमको पुलिसिंग का क ख ग नहीं आता।
अब एक आजम साहब है। पूरे इतिहास भूगोल को अपनी उंगुलियों में समेटे हुए वो जानते है कि पुलिसिंग किस चीज का नाम है। आखिर पुलिस ने उनकी खोई हुई भैंस खोज दी थी। ऐसी जादुई और कारामाती पुलिस को वो कई बार करेक्ट करते रहते है। इसी लिए उनको सामूहिक बलात्कार कांड में राजनीति दिखाई दी। एक बाप जिसके रोते हुए शब्दों ने हर ऐसे इंसान के कानों में पिघला हुआ शीशा उतर कर रख दिया जिसके सीने में दिल था। बेटी की चीखों के बीच उस बाप का दर्द जो बेटी के साथ बलात्कार के दौरान बाप को पुकारने की आवाज सुन रहा हो। ऐसा बाप जो अपनी जिंदगी भर इस दर्द को ढो़ने के लिए मजबूर होगा। उस बाप की आवाज में उस राजनेता को राजनीति दिखाई दी। लिखने को तो क्या लिखा जा सकता है कि -किस तरह की राजनीति करने के लिए बलात्कार कराना होता है अपनी बेटियों के साथ। इस तरह की हरकत के लिए खुद को तैयार करना होता है क्या खान साहब। लेकिन अगर आप ये बात लिख रहे हो कि ये बात उसको समझ नहीं आएंगी तो गलत लिख रहे हो। क्योंकि आजम खान साहब को ऐसी बातें खूब समझ आती है। नफरत के दम पर राजनीति कर रहे आजम खान साहब को मालूम है समाजवादी का क्या मतलब है इस प्रदेश में। समाजवाद कैसे उतरता है इस प्रदेश में। या दूसरा कोई भी वाद किस तरह नफरत की कोख से पैदा होता है वो जानते है सब कुछ। मुस्लिम वोट और यादव की वोट की कोख से पैदा हुआ ये नूतन समाजवाद किसी को उलझा सकता है। लेकिन अपने को इस तरह की राजनीति देखने की आदत सी हो गई है। एक ही उलझन है और वो है कि किस तरह से रोज रेडियों पर इस सरकार और अखिलेश यादव की तारीफों से भरे विज्ञापनों का खर्च हमको देना है क्योंकि जातिवादी और धार्मिक समूहों की कबीलाईं एकता के दम पर राज कर रही इस सरकार को टैक्स दिए बिना प्रदेश में कौन रह सकता है।
और आखिर में अखिलेश यादव जी। आपका युवा नेतृत्व कमाल का है। आपके पिता और समाजवादी ( मर्सीडीज 350 ए में चलने वाले) मुलायम सिंह जी रोज आपको बता रहे है कि जमीन लूटने से सरकार वापस नहीं लौटने वाली है। खनन माफिया के दम पर सत्ता वापस नहीं आने वाली है। आपको मुलायम सिंह को बताना चाहिए कि रेड़ियों के विज्ञापनों से छवि एक दम चका चक है। बौंने मीडिया को अफसरों ने काफी टुकड़े डाले हुए है लिहाजा हर अखबार की खबर में रेप की खबर बाद में थी और मुख्यमंत्री नाराज है की लाईन पहले थी। हमारे जैसों के भौंकने से होता क्या है।
राहत साहब की एक लाईन याद आई।
झूठों ने झूठों से कहा, सच बोलो
घर के अंदर झूठों की पूरी मंडी थी
दरवाजे पर लिखा था
सच बोलो।
अब एक आजम साहब है। पूरे इतिहास भूगोल को अपनी उंगुलियों में समेटे हुए वो जानते है कि पुलिसिंग किस चीज का नाम है। आखिर पुलिस ने उनकी खोई हुई भैंस खोज दी थी। ऐसी जादुई और कारामाती पुलिस को वो कई बार करेक्ट करते रहते है। इसी लिए उनको सामूहिक बलात्कार कांड में राजनीति दिखाई दी। एक बाप जिसके रोते हुए शब्दों ने हर ऐसे इंसान के कानों में पिघला हुआ शीशा उतर कर रख दिया जिसके सीने में दिल था। बेटी की चीखों के बीच उस बाप का दर्द जो बेटी के साथ बलात्कार के दौरान बाप को पुकारने की आवाज सुन रहा हो। ऐसा बाप जो अपनी जिंदगी भर इस दर्द को ढो़ने के लिए मजबूर होगा। उस बाप की आवाज में उस राजनेता को राजनीति दिखाई दी। लिखने को तो क्या लिखा जा सकता है कि -किस तरह की राजनीति करने के लिए बलात्कार कराना होता है अपनी बेटियों के साथ। इस तरह की हरकत के लिए खुद को तैयार करना होता है क्या खान साहब। लेकिन अगर आप ये बात लिख रहे हो कि ये बात उसको समझ नहीं आएंगी तो गलत लिख रहे हो। क्योंकि आजम खान साहब को ऐसी बातें खूब समझ आती है। नफरत के दम पर राजनीति कर रहे आजम खान साहब को मालूम है समाजवादी का क्या मतलब है इस प्रदेश में। समाजवाद कैसे उतरता है इस प्रदेश में। या दूसरा कोई भी वाद किस तरह नफरत की कोख से पैदा होता है वो जानते है सब कुछ। मुस्लिम वोट और यादव की वोट की कोख से पैदा हुआ ये नूतन समाजवाद किसी को उलझा सकता है। लेकिन अपने को इस तरह की राजनीति देखने की आदत सी हो गई है। एक ही उलझन है और वो है कि किस तरह से रोज रेडियों पर इस सरकार और अखिलेश यादव की तारीफों से भरे विज्ञापनों का खर्च हमको देना है क्योंकि जातिवादी और धार्मिक समूहों की कबीलाईं एकता के दम पर राज कर रही इस सरकार को टैक्स दिए बिना प्रदेश में कौन रह सकता है।
और आखिर में अखिलेश यादव जी। आपका युवा नेतृत्व कमाल का है। आपके पिता और समाजवादी ( मर्सीडीज 350 ए में चलने वाले) मुलायम सिंह जी रोज आपको बता रहे है कि जमीन लूटने से सरकार वापस नहीं लौटने वाली है। खनन माफिया के दम पर सत्ता वापस नहीं आने वाली है। आपको मुलायम सिंह को बताना चाहिए कि रेड़ियों के विज्ञापनों से छवि एक दम चका चक है। बौंने मीडिया को अफसरों ने काफी टुकड़े डाले हुए है लिहाजा हर अखबार की खबर में रेप की खबर बाद में थी और मुख्यमंत्री नाराज है की लाईन पहले थी। हमारे जैसों के भौंकने से होता क्या है।
राहत साहब की एक लाईन याद आई।
झूठों ने झूठों से कहा, सच बोलो
घर के अंदर झूठों की पूरी मंडी थी
दरवाजे पर लिखा था
सच बोलो।
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