Friday, November 30, 2012

एक कप चाय के दूध की कीमत ?

एक कप चाय के दूध की कीमत कितनी हो सकती है। या यूं कहे कि एक कप चाय में कितना दूध इस्तेमाल होता है। कोई कह सकता है एक रूपया, कोई दो रूपया या फिर तीन रूपया। क्या एक कप दूध की कीमत बाईस साल की जिंदगी हो सकती है। क्या एक मां- बाप के बाईस साल के सपने की कीमत एक कप चाय का दूध हो सकती है। क्या एक पति-पत्नि के दो साल के साथ की कीमत से बड़ी हो सकती है। और भी जाने कितने रूपक हो सकते है एक लेखक के पास इस घटना को लिखने के लिये। खबर इतनी सी है - एक पति ने घर वापस लौट कर एक कप चाय मांगी। पत्नि ने कहा आज घर में कोई पैसा नहीं था तो दूध नहीं ला पाई। पति ने कहा कोई बात नहीं हम आज ब्लैक टी ही पी लेते है। पत्नी चाय बनाने गयी। कुछ देर बाद पति ने देखा कि अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही है। वो अंदर गया तो देखा पत्नी गले में फंदा कस कर मौत को गले लगा चुकी थी। बैंक में कलेक्शन एजेंट के तौर पर काम कर रहे लडके की नौकरी कुछ दिन पहले चली गयी थी। घर में पैसे का संकट था। शादी को दो साल ही हुए थे। खबर अखबार के लोकल पेज पर छपी है।
अखबार खोल कर पढ़ना शुरू किया था। संसद में चल रहा घमासान थम गया है। सरकार वोटिंग के साथ एफडीआई पर बहस के लिये तैयार हो गयी है। संसद पिछले दो सत्रों से ठप थी। अरबो रूपया स्वाहा हो गया। ये आंकडों की बात है। अरबो रूपये कितने होते है नहीं जानता। मास्टर जी ने बचपन में गिनना सिखाया था। एकाई-दहाई-सैकडा-हजार-दस हजार -लाख - दस लाख। ये वो संख्या थी जो जीवन में जिंदा हो गयी। इकाई से लेकर हजार तक की संख्या से पिता ने परिचय करा दिया था। जेब खर्च से शुरू कर स्कूल में एडमिशन फीस तक। लाख रूपये में तनख्वाह। दस लाख की संख्या तब हकीकत बन गयी जब बैंक ने मकान के लिये लोन दिया। इससे ज्यादा की संख्या मेरे लिये बस एक संख्या ही है। एक के आगे जीरो लगाते जाईये और बोलते जाईये। दस लाख-करोड़-दस करोड़-अरब-दस अरब-खरब-दस खरब। शायद इससे भी आगे पदम -और शंख तक। लेकिन ये सिर्फ जीरो है। इनमें कभी जीवन नहीं दिखा। हां मीडिया अब कोई बात करोड़ों से लेकर खरबों में करता है। इसी अखबार के अंदर के पेज में बडी खबर के तौर पर दर्ज है सेंसेक्स ने पार किया 19000 का आंकड़ा। एक दिन में 80,000 करोड़ रूपये बढ़े निवेशकों के। इसी अखबार के लोकल पेज पर कुछ और भी खबरे है। बी टेक के स्ट्डैंट ने आत्म हत्या की। मां-बहन नौकरी कर रही थी। उनकी उम्मीद ने दम तोड़ने से पहले स्यूसाईड नोट छोडा था। किसी को पचास हजार देने है। कहां से दूं। एक नजर कॉलम में लिखा है दो बेटियों संग मां ने आत्महत्या की। एक युवा ने जहरीला पदार्थ खा कर आत्महत्या की। ये एक लोकल अखबार की शहर की एक दिन की घटनाएं है। शहर देश के राजधानी क्षेत्र में है। राज्य का मुख्यमंत्री विदेश में पढ़े है। युवा है। युवाओं की तरक्की के नये नये रास्ते तलाश रहे है। कल एक ऑफीसर के पास बैठा था। एक प्रभावशाली बिजनेस ग्रुप के हेड भी बगल में थे। बातचीत चल रही थी। बिजनेस मेन के फोन पर फोन आया। फोन पर एक दो मिनट बात हुई। और फिर फोन काट कर वो हंसने लगे। देश में क्या चल रहा इस बात पर। उनके किसी दोस्त ने किसी रेसिंग ट्रैक पर पार्टी करने के लिये एक उद्योगपति से ट्रैक किराये पर लिया। पार्टी थी तो शराब भी होंगी। इसके लिये उसको एक्साईज और इंटरटेनमेंट के अधिकारी से एनओसी लेनी थी। अधिकारी बतौर अधिकारी उस जगह था। एनओसी के लिये सुविधा शुल्क चाहिये था। मछली बड़ी थी। साईन की कीमत थी पांच लाख रूपये। पार्टी आयोजित करने वाले बड़े लोग थे। बड़े लोग ताकतवर लोगों से बात कर सकते है। बात की गयी। मंत्री जी ने फोन किया। उसके बाद प्रार्थना पत्र लेकर वापस गये कारिंदें। अफसर तैयार थे। उन्होंने कहा रेट तो तो पांच लाख ही था। लेकिन आपने ऊपर से फोन कराया है इसीलिये चलिये आपको दो लाख की छूट। ये ही बात बताने के लिये फोन आया था। हमारे साथ बैठे ग्रुप हैड हंस रहे थे कि बताईंये इस तरह से चल रही है सरकार। इसी बीच चाय आ गयी। उन लोगों ने चाय में दूध नहीं लिया। वो ब्लैक टी पीते थे। हालांकि चाहते तो घर में हजार भैंस बांध सकते है। लेकिन ब्लैक टी फायदा करती है।
काश ये बात वो आत्महत्या करने वाली युवती जान पाती कि काली चाय पीना कोई खराब बात नहीं है। और इतनी बड़ी बात भी नहीं कि उसके लिये जान दे दी जाएं। ये अलग बात है उस घर में चाय की पत्ती भी नहीं थी।

" बात करना आसान है
लेकिन शब्द खाये नहीं जा सकते

सो रोटी पकाओ

रोटी पकाना मुश्किल है

सो नानबाई बन जाओ

लेकिन रोटी में रहा नहीं जा सकता

सो घर बनाओ

घर बनाना मुश्किल है

सो राज
-मिस्त्री बन जाओ
लेकिन घर पहाड़ पर नहीं बनाया जा सकता

सो पहाड़ खिसकाओ
bh
पहाड खिसकाना मुश्किल है

सो पैंगबर बन जाओ

लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते

सो बात करो

बात करना मुश्किल है

सो वह हो जाओ जो हो

और अपने आप में कुड़बुड़ाते रहो
"
एंत्सेंसबर्गर

Monday, November 26, 2012

रीढ़ में लगा कलफ उतर गया

आदमी सड़कों पर ।
चूहे घरों में।
सवाल जेहन में,
बच्चियां पेट में
इंसानियत मर रही है सरेआम
नक्शों में दम तोड़ रहा
देशहर चेहरे पर खुशी है कि मातम
कुछ देर में हंसते हुए रो रहा है
या
रोते हुए हंस रहा है।
कदम दर कदम आगे चलते हुए
दिख रहा है पीछे जाते हुए
पीछे से हंस रहा है कोई
मैं लगातार रास्ते देखता हूं
कभी चमकते हुए, कभी अंधेरे में डूबे हुये
गिनता आता हूं
जेब में पड़े हुए सिक्के
बिक गये जमीर के सहारे
रीढ में लगा कलफ रोज उतर जाता है
चेहरे पढ़ते पढ़ते भूल जाता हूं
छुप बैठी अंतर्मन की आवाज का गीत
पूछता हूं रास्ता अपने घर का रोज शाम को
बीत गये दिन से
सुबह जिसको साथ लेकर चला था
वो कहां गया सांझ होते ही
रात में तलाश करनी होगी
फिर कल के लिये अपने चेहरे की
थक गये जबडों के सहारे
पर्स में छुपा कर रखी हुई
हंसी में देखता हूं
बच्चों को पार्क में झूलते हुये
बीबी के कंधों में खोजता हूं
सुनहरे पर्दों के सपने
कुछ देर में पत्थर में बदल गयी
आंखों के सहारे कदम रखता हूं
रात के आंगन में
खिले हुए फूल छोड़ कर
कल निकला था मैं कक
ये क्या है
मैं रात से पूछता हूं
नींद की नाव को चलाकर
फिर से उतारना होगा
कर्ज एक बार फिर से तेरा
मुझे डर की सुंरगों में भटक कर
सुबह की किरणों से चमत्कार की उम्मीद करनी है
झकझोर कर उठा दिये रास्तें पर
अपनी दिन की कहानी को
एक दिन ओर आगे
एक दिन और पीछे
गिनती कहां से शुरू करूं
आखिर से या शुरू से

यादों मे रह गयी शाम

उन पवित्र शामों में
कुछ भी याद रखने लायक नहीं था
सिवा
उस रोशनी के
जो तारों की झिलमिलाहटों को ढंक देती थी
तुम्हारी आंखों से निकलती थी
ऐसा कुछ भी नहीं था
जो रख लिया जाता
जिंदगी की जैकेट में
अज्ञात रास्तों के नक्शों की तरह
तह करके
सिवा
तेरे चेहरें पर उमड़ती हंसी के
कोई भी चीज नहीं थी
उन धुंधलकों में
जो गीला कर पाती अंदर से
जैसे रेत सींझ रही हो समुद्र तल में
सिवा
तेरी आवाज के झरनों से
मेरे अंदर जमीं सीलन के
ऐसा कुछ भी रखा गया
हवा के सीने पर जो
लहरा कर गुजरे
नयी पत्तियों की टहनियों की तरह
सिवा
रूक रूक कर रखे गये कुछ कदमों के
मुझे क्यों याद रहे
वो
पवित्र शामें
ऐसा क्या था
जो मैं याद रखूं

Sunday, November 11, 2012

भेडियों का लोकतंत्र

डर सिर्फ भेड़ों को ही नहीं लगता है।
भेडिये को भी दर्द होता है।
डरते है वो भी खत्म होने से
उन्हें भी मालूम होते है मौत के मायने
इसी लिये वो भी इकट्ठा होते है
भेड़ों के बा़ड़े के बाहर
अपने दर्द के बयान लिए
कई बार भेड़ियों को बोलते हुए सुनना
भय की बातों को दोहराना होता है
मंच पर चिल्लाते हुए भेडियों को सुनना
दर्द से बिलखते हुए आंतक का अपने लिये रहम की उम्मीद रखना
भेड़ों को लग सकता है किस तरह से खतरे में उनके रहनुमाओं की पीढ़ी
र मैदान में प के मंच से
हैरानी देखने वालों को हो सकती है
भेड़ों के लिए रोते बिलखते हुए भेडिये
भेडियों के बच्चों को दर्द हो रहा है
सूखी घास से जिंदा है मेमने भेडो़ं के
हजारों एकड़ के विशाल जंगलों पर काबिज भेडों को
हरी घास के लिये चलना पड़ रहा है भेड़ों को
ये साजिश है किसी दूसरे भेडियों की
दांत में कई बार हड्डियों के फंसने से भी नुकसान होता है
गले में भेड़ों की हड्डियों से सांस हो गयी बंद
इतनी सी बात से खत्म नहीं हो सकते है भेडिये
किस तरह से संभालना है जंगल
किस तरह से रखना है अपना रेवड़ सही सलामत
खाने के तरीके को बदलना होगा
हर भेडियों को ईजाद करनी होगी खुद की तरकीब
मंच पर चिल्ला रहे भेडियों को गुस्सा है
उस झुंड पर
जो बिना बाडें पर कब्जा जमाये खा जाना चाहते है
मेमने
, भेड़ इसी लिए इस क को चाहिये ताकत भेड़ों की
भेडें चिल्ला रही है रहनुमाओं के लिये
उनको सिखाया गया है अगर खून से नहीं धुले दांत भेडियों के
बढ़ जायेगी पैदावार भेड़ों की
खत्म हो जायेगी घास जंगल की
भेड़ों को बचाने की जद्दोंजहद में भेडियों भिडे है
देसी भेडियों चाहते है विदेशी भेडियों की तकनीक
दूसरे जंगल से आने वाले भेडियों के पास है
ऐसे कई तरीके जिससे खत्म कर सकते है वो रेवड़ के रेवड
एक झटके में
और इन्हीं तरीकों देश में लाने के लिए भेड़ों के दिमाग में छाया डर दूर कर रहे है
देशी भेडिये
घास तेजी से बढ़ेगी
, पानी की कमी में भी घास उग सकती हैऔर भी कई तकनीके है
, बेकार नहीं जाएगा कूड़ासूख गयी घास से भी निकल आयेगा रस
लेकिन ये आसान नहीं है देसी भेडिये के लिये
खतरा है दूसरे के झुंड से
जिसको अभी मांस में हिस्सेदारी नहीं मिल रही है
जंगल के कई हिस्सों में जरूर उनको भेडों
ने चुना है।
लेकन उनकी नजर है पूरे जंगल पर
वो रोक रहे है विदेशी तकनीक
भेड़ों को डराकर
शायद बहक न जाएं
भेड़े ऐसे देशी भेडियों से
यही डर है जो इस वक्त
सत्ता में बैठे झुंड को डरा रहा है
कुछ भेड़ों के जेहन में उठने लगे है सवाल
कुछ भेडें पूछ रही है सवाल
भेडियों का डर यही है
दिमाग में लगाएं हुए ताले कही खुल न जाए
भेडियों के मुंह पर लग न जाए लगाम
इसको लेकर रो रहे है भेडिये
सालों से दादा भेडिया
,नाना भेडिया,मां भेडिया, या बाप भेडिया के सहारे चल रही भेडियों की नयी पीढी है बेहद शातिर है
उसने सब कुछ सीखा है विदेशी भेडियों के ट्रैनिंग स्कूलों में
स्कूल जहां गलती करना नहीं सिखाया जाता
तकनीक के सहारे नुक्स दूर किया जाता है
गुस्से को मुस्कुराहट की जरूरत नहीं
अपने खून में सने दांतों को छुपाना है
बेहद खुशबूदार माउथ वाश से
नफासत दिखे बात चीत के अंदाज में
समझ हो दुनिया के जंगलों की
बाप के नाम पर चुन लेगी भेड़े इनको
भेड़ों को डर है भेडियों के खत्म होने का
वो जानती है पीढियों से इन भेडियों को
खाने का सलीका
. बच्चों को उठाने का सलीकाकिस कदर ये नोंचते है जिस्म
काली भेड हो या फिर सफेद
नोंचने से पहले नारा लगाते है ..........................क्रमश

Sunday, November 4, 2012

एक दिन तुम से मिलूंगा मैं

एक दिन मैं तुमसे मिलूंगा,
एक बार मिलना है मैंने सोच रखा है
आंखों में आंखें डालकर
वो सब बताऊंगा जो तुम जानना चाहोगें,
इतने सारे चेहरों को हटाकर
सारे झूठ को पार कर
मैं आऊंगा, एक रोज तुमसे मिलने.
मेरी मजबूरियां, मेरी जरूरतें ,
उस दिन रोक न सकेंगी मेरे पैर
मेरी हंसी, मेरी आवाज में
कोई पर्दा नहीं होगा उस दिन
मेरी उदासियों में शामिल नहीं होगा कोई झूठ
मेरी बातें किसी अंधें कुएं से आती हुई आवाज नहीं
जबां से कोई छल नहीं
दिन भर मेरे आस-पास मैं रहूंगा
सिर्फ मैं
वक्त के रंग, चलन से दूर
वो लड़का जिसके लिए
आसमान में लड़ी पतंगों की लड़ाईं
की
कीमत दिल्ली की गद्दी से ज्यादा होती थी।
दुनिया के किसी भी आतिशबाजी से दिलचस्प
नालियों मे लड़ते पिल्लों की लडाईं।
मां से खूबसूरत कोई चीज बनी थी दुनिया में
बाप से ज्यादा ताकतवर इंसान
दिन के रथ पर चढ़कर
मिट्टी के महाभारत से निकल कर
पहुंच गया इस शहर में
तब से अब तक मुलाकात नहीं हुई़
इस वादे के साथ मिलूंगा मैं तुमसे
एक रोज, यूहीं बस एक सच के साथ
देख लो मुझे
मैं वही हूं
मैं वही हूं ।

सलीका सीख गया हूं रहने का

इन दिनों
सलीके से रहना आ गया।
कौन से हाथ में पकड़ना है
चाकू और कांटा
कहां से काटना है
और कहां से लगाना है कांटा
वाईन के साथ उठाना है
पहले कौन सा चिप्स
भूने हुए आलू के साथ कौन सी वाईन बेहतर है।
कितने एंगल पर झुकना है,
झुकते हुए आंखें कहा रखनी है
एक लड़की, एक महिला और बूढ़ी औरत के लिए
दायें से रास्ता दे कर आगे निकलना है,
बाएं पर रूकना है.
मेरी मुस्कुराहट का पैमाना भी
लगभग सही हो गया है
मैंने मेहनत से सीखा है
कितने दांतों को खोलना चाहिए
ताकतवर के सामने हंसते हुए
किनती घृणा से डूब जाना चाहिए चेहरा
कमजोर को साथ बिठाकर
मेरी बातों में भी
नपा-तुला अंदाज है
मेरे मजाक में छिपे हुए राज है
आप मुझ पर हंस रहे हो
मुझे जवाब देना है
तुम्हारी पहुंच देखकर
मेरे से गलती नहीं होती है
कार का मेक बताने में
एंटीक की कीमत आंकने में
अक्सर दुनिया के किस शहर की
क्या चीज बेहतर है.
क्यों ऑफिस में
सुंदर सेक्रेट्री हो
शाम के वक्त रखने वाली लड़की की उम्र क्या हो
किस अंदाज में उस लड़की का इस्तेमाल करना है
चारे और प्यार दोनों की तरह
ताकतवर की निगाह में चढ़ जाएं तो
किस खूबसूरती से लड़की को छोड़ देना है उसकी बाहों में
फिर हिसाब रखना है फायदे का
ये सलीका, ये अदब,
ये तरीका मेरी सालों की मेहनत का नतीजा है।
मेहनत इस अदब को सीखने में नहीं
मेरे दोस्त पहले का सीखा हुएं को भूलने में लगी
जिंदा होने में तकलीफ नहीं
मारे हुए को दफनाने में हुई।