Sunday, July 24, 2011

लुटेरों का लॉग मार्च

निवेशकों ने नोएडा में लॉगमार्च किया। अपने घर का सपना संजोंएं हुए हजारों निवेशकों ने नोएडा की सड़कों पर जूलुस निकाला। हाथों में उठाएँ हुए कार्डबोर्ड पर लिखा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिले पैसे नहीं -घर चाहिए। ये सब वो लोग थे जिन्होंने अपने लाख-दो लाख रूपये और कुछ बैंकों से लोन लेकर बिल्डरों को देकर अपने लिए घर पक्का किया था। देश के आंख-नाक और कान में तब्दील हो चुके मीडिया पर इसका सचित्र प्रसारण जारी रहा। बौने से रिपोर्टर उछल-उछल कर निवेशकों के सपने टूट जाने और या फिर ऐसी ही लाईनें कि किसी ने अपनी जमा-पूंजी लगा दी है, या मां-बाप के जीपीएफ का पैसा लगा दिया है जैसी मध्यमवर्ग का दर्द जगाने वाली बाईट्स चला रहे थे। ऑफिसों में भी जो बातचीत चल रही थी उसमें भी ज्यादातर बौंनों का कोरस यही था कि बेचारे निवेशक लोगों का क्या कसूर।
पहली नजर में ये ही लग सकता है कि ये पांच हजार लोग अपने फ्लैट छीन जाने से दुखी है। लेकिन आपको बस इतना करना है पर्दे पर बौने मीडिया की ईबारत मिटानी है। और उसके बाद कोरी स्लेट पर अपने दिमाग से इस पूरे खेल को समझना है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने देश में चल रही लूट का पर्दाफाश करने के लिए बस पर्दे ही हिलाए थे कि देश को लूट के लिए इस्तेमाल कर रहे बिल्डर माफिया, भ्रष्ट्रराजनेताओं और नौकरशाहों का मजमा जुट गया अदालत के आदेश की ऐसी की तैसी करने में। पहले आदेश के खिलाफ पहुंचें सुप्रीम कोर्ट में। करो़ड़ों रूपये की फीस के सहारे दूसरे के बाप को अपना बाप साबित करने को तैयार दलालों की एक पूरी फौंज ने पैरवी की कि ये गलत हो रहा है। लगभग इसी अंदाज में को देश की सबसे बड़ी अदालत ने जानना चाहा कि क्या गलत हो रहा है तो उनका जबाव था हजारों निवेशकों के साथ अन्याय हो रहा है ये बताने को कोई तैयार नहीं था कि भाई किसानों का क्या हो रहा है। कोर्ट ने भी देखा कि लूट के लिए किस तरह का शानदार प्लान तैयार किया जा रहा है। और कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
इस पूरी कवायद में कोर्ट ने देश के उन हजारों लोगों का संवैधानिक अधिकार बरकरार रखते हुए कि जिन का पैसा बिल्डरों ने लिया है उनका पैसा वापस किया जाएगा और ये रकम सूद समेत वापस की जाएंगी। अगर निवेशक ईमानदार होते या फिर उनका देश के गरीब और असहाय किसानों से और देश के कानून से कोई रिश्ता होता तो बात यहीं खत्म हो गयी थीं। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सबसे पहले निवेशकों के पैसे का दर्द का रोना बिल्डरों के एडवर्टाईजमेंट से चलने वाले बौंनों ने रोया। मासूमियत के साथ सवाल बस इतना था कि निवेशकों की गाढ़ी कमाईं का पैसा कौन वापस करेगा। टीवी देखने वाली मध्यमवर्ग की जनता के लिए ये दर्द बहुत बड़ा दर्द है। आखिर में आंसूओं से भरी बाईट्स चलने लगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने तो इस योजना पर ही पलीता लगा दिया कि पैसे से खरीदी गई बाईट्स से पिघल जाएगी देश की सबसे बड़ी अदालत। अदालत ने आदेश दिया कि पैसा वापस हो जाएंगा सूद समेत।
अब आपसे एक सीधा सवाल है कि यदि आपकी लगाई गई लागत मय ब्याज के आपको वापस मिल रही है तो क्या ये आपके साथ अन्याय है। यानि जिन लोगो ने देश में लूट के लिए अपना निवेश किसी बिल्डर के पास नहीं किया बल्कि बैंक में किया वो लोग बेवकूफ है। उन के पास बस लूट में हिस्सेदारी के लिए केवल ढाई लाख रूपये लगाने का कलेजा होना चाहिएं था फिर वो भी इस वक्त भ्रष्ट्राचार के भगवान बने हुए बिल्डरों के साथ गरीब, किसान या असहाय लोगों को लूटने के वहशियाना खेल में शामिल हो सकते थे। एक नया शब्द है जो इंग्लिश पत्रकारों में काफी चलन में है ब्लड मनी यानि खूनी पैसा इसका अनुवाद सही नहीं है आप समझ नहीं सकते है। इसको इस तरह समझा सकते है कि ऐसा पैसा जो खूनी लूट का हिस्सा हो। इन इनवेस्टर यानि निवेशकों को वहीं ब्लड मनी यानि देश के खूनी लूट में अपना हिस्सा चाहिएँ। और इस खबरों को दिखाने का अपना पुनीत कर्तव्य निबाह रहा बौना मीडिया बिल्डरों के टुकड़ों पर अपनी निगाह गढ़ाऐँ बैठा है। ये तो सिर्फ आम सीन है जो आप मीडिया की स्लेट से हट कर पढ़ कर सकते है। लेकिन इससे आगे की कहानी भी आपको दिख सकती है।
एक-एक इनवेस्टर यानि निवेशक ने पचास-पचास या सौ सौ से ज्यादा फ्लैट बुक कराएं हुए है। देश में इस दलाली को पनपाने वाले आर्थिक नीति के समर्थकों ने जब सबसे पहले एक परिवार को एक मकान की शर्त गायब कराई थी तब से पैदा हुई हजारों लाखों करोड़ की रकम ने लगभग करो़ड़ के पार ऐसे नये अमीर पैदा कर दिये थे जो ऐसे लूट में बिल्डरों की ढ़ाल बन कर इस साजिश को कामयाब करते रहते है। ये ट्रिकल डाउन थ्योरी की नाजायज औळाद है जो हिंदुस्तान में गरीब आदमी के लिए रोटी से दूर करने में अपना योगदान दे रही है।
जाति के ठेकेदार से राजनेताओं में तब्दील लुटेरों का गठजोड़ और पर्दे के पीछे छिपे नौकरशाहों के दिमाग के सहारे किसानों की जमीने रातो-रात बिल्डरों के हाथों में पहुंच रही है। किसी मीडिया हाउस को नहीं दिखा कि कैसे हजारों एकड़ जमीन का लैंड यूज पलक झपकते ही बदल गया। ऐसा नहीं कि किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। मीडिया में बहुत से रिपोर्टरों को इसका हाल मालूम था लेकिन या तो चैनल और अखबार ने छापा नहीं या फिर रिपोर्टर ने अपने लिए कुछ इंतजाम कर लिया। फिर ये खेल शुरू हुआ। फिर बिल्डरों को एक और सहूलियत दी गई कि आप जमीन का पैसा दस साल में दस किस्तों में दें सकते हो। यानि जमीन के लिए सिर्फ दस परसेंट और नेताओं की रिश्वत का पैसा देना था बाकि अरबों रूपये के बारे-न्यारें। इनमें से कई बिल्डर्स के पुराने प्रोजेक्ट अभी अधूरे पड़े हैं लेकिन नोएडा एक्टेंशन में तो लूट की आंधी थी लिहाजा पहले इसके आम अपनी टोकरी में डाल लेने थे बाकि तो अपने बगीचे में फल है ही। इसी तर्ज पर लूट चल रही थी। बैंकों ने धड़ा-धड़ लोन करने शुरू कर दिएं एक ऐसी जमीन पर जिसका पूरा पैसा तो असली मालिक ने भी नहीं चुकाया था। इस लूट में जिनता आप गहरा उतरते है उतनी ही आपकी आंखें हैरत से फटती चली जाती है। ये लूट केन्या,सोमालिया और रवांडा जैसे देशों को भी शर्मा सकती है। नौकरशाह और टके के कबीलाईं नेता ने लूट को इस तरह से अंजाम दिया कि कोई भी कानून शर्मा जाएं।
रही बात बिल्डरों की तो उनका खेल साफ है। पैसा किसी कीमत पर नहीं देना है। लूट के लाखों करोड़ रूपये को हजम करने के बाद उसको उगलना एनाकोंडा के लिए आसान होगा लेकिन बिल्डरों से निकलवाना काफी मुश्किल है। लूट में दुनिया के इतिहास में अपनी जगह दर्ज करा चुके यूपी के नौकरशाहों और राजनेताओं के गठजोड़ से एक भी रूपया रिश्वत वापस नहीं होंगी। तब वो क्या करेंगे। रास्ता साफ है मीडिया का हल्ला साफ है। आप को दिख रहा है कि ये इनवेस्टर के हक की बात कर रहा है। ऐसा नहीं है दरअसल मीडिया के इस हल्ले का सच है कि पैसे वापस करने के खेल में बिल्डर का साथ दे सरकार और सरकारी बैंक। यानि सरकार पैसा वापस करने में बिल्डरों का हिस्सा बटाएं और उनको कुछ बैंकों से कम दर पर ब्याज दिलादें। अब ये समझने की बात है कि ये सरकार क्या है जिसका हल्ला मीडिया मचाता रहता है। ये पैसा कहां से लायेगी। पैसा लाएंगी सड़क पर तन बेचकर रोटी खाने वाली और परिवार चलाने वाली औरतें। दिन भर दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर और साल भर मेहनत कर मिलमालिकों और आड़तियों की तिजोरियों को भरने वाले किसान। क्योंकि टैक्स लगाकर ही तो इस रकम की भरपाई हो सकेंगी। यहीं है पूरा खेल मीडिया के इस हल्ले का और इनवेस्टर्स के वेष में मार्च कर रहे लुटेरों का। इसका क्या मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है ये जमीनें अवैध तौर पर जुटाईं गई है लोगों की रोजी-रोटी छीनी गयी है उनसे सवैंधानिक तौर पर राहजनी की गयी है लेकिन इससे इन लुटेरों को क्या। ये तो लूट में अपना हिस्सा चाहते है।
कहानी साफ न हो तो इसको यूं समझें कि एक अपराधी चरित्र के आदमी ने वादा किया कि वो एक लड़की को ला रहा है उससे मुजरा कराएंगा और देह व्यापार कराएंगा। कुछ धनवान लोगों ने पैसा दे दिया। लड़की आने ही वाली थी कि खरीददार पकड़ा गया और पता चला कि वो उस लड़की को शादी का धोखा दे कर ला रहा था और किसी कारणवश उसकी पोल खुल गयी। कानून ने उससे धनवान लोगों के पैसे भी दिलवा दिएं लेकिन उनकी जिद है कि वो तो उस औरत से अब जिना करके ही मानेंगे क्योंकि उन्होंने पैसे इसी शर्त पर दिए थे कि उनकी रात रंगीन होगी। अब ये रात रंगीन करने के लिए वो आदमी यानि बिल्डर चाहते है कि उनकों रिहा कर दिया जाएं।
एक और खबर पर आपकी नजर रहनी चाहिएं कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में सरकार और सबसे अहम योजना आयोग को एक पहेली सुलझाने के लिये कहा है कि कैसे 17 रूपये से ऊपर रोज कमाने वाला गरीबी रेखा से ऊपर है। यानि 17 रूपये में 2400 कैलोरी कैसे आ सकती है इसको हलफनामें बताने को कहा है। देश को अपनी बाजीगरी से अमेरिकी उपनिवेश में बदल चुके मोंटेक सिंह अहलूवालिया और मनमोहन सिंह की जोड़ी कौन सी चाबी से इस ताले को खोलेंगी देखना दिलचस्प होगा। एक बार फिर श्रीकांत वर्मा की ये कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं।
चेचक और हैजे से /मरती है बस्तियां/
कैंसर से/ हस्तियां/ वकील/ रक्तचाप से/
कोई नहीं/ मरता /अपने पाप से

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