जंगल में एक आवारा राक्षस का आतंक था। लोगों ने तय किया कि राक्षस को हर रोज एक आदमी रोज राक्षस को खाने के लिए भेज दिया जाएं। इससे राक्षस भी खुश और शहर का कामकाज भी चलता रहेगा।......कहानी आगे भी है। लेकिन राहुल गांधी को सिर्फ इतना ही याद रहा। अपनी भाषा से इतर रहने के कुछ नुकसान होते है ये नुकसान भी कुछ ऐसा ही है। मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद कांग्रेसियों के कल की सुनहरी उम्मीद यानि युवराज राहुल गांधी ने बयान दिया कि ऐसे आतंकवादी हमले रोके नहीं जा सकते। एक दो हमले तो होते रहेंगे। तब ये कहानी याद आ गयी। बस अब करना ये है कि राहुल गांधी को अपने चाटुकार नंबर बन दिग्विजय सिंह को ये जिम्मेदारी दे सकते है कि वो देश में ऐसे लोगों की पहचान कर ले जिनको आतंकवादियों के सालाना हमले में बलि के लिए पेश करना है। उन मासूम बच्चों की तस्वीरें और उन बेसहारा रह गये बूढ़ों को राहुल गांधी अपनी मासूमियत से समझा देंगे कि देश के लिए उनके बाप या बेटों की बलि जरूरी थी। दुनिया का सबसे ज्यादा डिसीप्लीन्ड प्रधानमंत्री मुआवजें की घोषणा कर देगा। चाहे तो जनार्दन दि्वेदी और सत्यव्रत चतुर्वेदी उन बलि के बकरों को संघ का आदमी बताकर मुआवजा भी बचा सकते है।
मुंबई पर हमले जंगल में होने वाली मौत की तरह से है। हल्ला मचा, बंदरों इधर से उधर कूदे। चिडियों ने शोर मचाया और उड़ गयी। मौत किन्हीं मासूमों को झपट्टा मार कर गायब हो गयी। जंगल शोक नहीं मनाता और न ही मुंबई। मुंबई के लोगों ने अगले दिन बाजार खोला। ट्रेनों में यात्राएं की। अपने कामकाज किये। और देश की लंबाई में सबसे बौने यानि नेशनल मीडिया के लिए बाईट्स मुहैय्या कराई। शेअर मार्किट हमेशा की तरह से ऊपर चढ़ गया। ये हैरानी की बात है कि 26/11 में भी शेअर मार्किट ऊपर चढ़ गया था। आतंकी हमले और मासूमों की मौत से शेअर मार्किट का रिश्ता देश के दलालों से देश के रिश्ते को जाहिर करता है। हमला होता है तो बयान देने का सिलसिला जारी हो जाता है। कोई भी बयान जारी करता है। और उन बयानों पर सबसे पहले नेता-राजनेता और फिर मीडिया के बौनों की बारी होती है।
देश का गृहमंत्री बयान देता है कि पुलिस की चूक नहीं है। इंटेलीजेंस की कोई कमी नहीं। पुलिस ने 31 महीने से हमला नहीं होने दिया। बेचारे गृहमंत्री को याद ही नहीं रहा कि आतंकवादियों ने पिछले 31 महीने से देश में कई जगह हमले किये। लेकिन गृहमंत्री को पिछले कुछ दिनों से याद है तो बस 2 जी स्पेक्ट्रम में अपना नाम न आ जाए बस यही कवायद। चिदंबरम की छवि को इस तरह से बनाया गया कि ये सुरक्षा के ताम-झाम नहीं रखते। रात दिन काम करते है। लेकिन ये छवि फाईनेंस मंत्रालय में क्या कर रही थी।
ए राजा जब देश के लाखों करोड़़ रूपये भ्रष्ट्र बिजनेसमैन के साथ मिलकर लूट रहे थे तो ये ही चिदंबरम साहब उसको वैधानिक बनाने में जुटे है। इनके मेहनताने को खोजने में जुटी है सीबीआई और ये उसको छुपाने में। ऐसे में आपको उम्मीद हो कि ये बताएंगे कि देश को आतंकवादियों से बचाने के प्रयासो में विफलता मिली हो या न मिली हो लेकिन चिदंबरम को कानून का फंदा अपने से दूर रखने में जरूर कामयाबी मिली है।
ये पुलिस वही है जो बेगुनाहों को पकड़ कर आतंक के केस खोल सकती है। ये वही पुलिस है जिसने मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में जाने किन को पकड़़ कर केस खोल दिये। दिल्ली के सरोजनीनगर ब्लास्ट में पकड़ लिए हवाला डीलर और भी कई केस खोल दिये।
आम जनता को उन अफसरों के भरोसे छोड़ दिया है जो सिर्फ जुगत भिड़ा कर मुंबई में पैसा वसूली में जुटे है। जुहू में पुलिसकर्मियों के आवास के लिए आरक्षित एक प्लाट को आईपीएस अफसरों के ग्रुप ने अपनी सोसायटी बनाकर हासिल किया उसमें मंहगें फ्लैट बनाये। और इसके बाद सबको किराये पर दे दिया। बिल्डिंग का ग्राउंड फ्लोर एक निजि कंपनी को दिया है। लगभग 72 लाख रूपये महीना किराये पर। 36 फ्लैट बने है जिनमें हर फ्लैट ऑनर को लगभग दो लाख रूपये महीना मिला। इसके अलावा उन फ्लैटों में रहने वाले देश के आईपीएस अफसरों ने फ्लैट किराएं पर दे दिये और खुद सरकारी फ्लैट में गरीब जनता का खून चूस रहे है। ये खबर किसी चैनल को नहीं दिखाई दी। एक न्यूज पेपर में दिखा कि कुछ अफसरों को महीने में लगभग चार लाख रूपये महीना भी मिल रहा है। ऐसे ही फ्लेट में रह रहे है महाराष्ट्र के राजा आईपीएस। इनमें से कोई आईजी है कोई डीआईजी कोई एडीजी इन्हीं के कंधों पर है देश की जिम्मेदारी। कोई भी साफ चैक कर सकता है कि कैसे ये अफसर लुटेरों को मात दे रहे है। लेकिन कानून में इन लोगों को देश का तारणहार बनाया गया। बिना किसी जिम्मेदारी के बस लूट ही लूट। जितना चाहे लूट लो। हैरानी है कि इस सोसायटी में उन आईएस अफसरों को भी शामिल किया गया है जिन-जिन के हाथों से सोसायटी की फाईल गुजरी।
रही बात बौने मीडिया के लोगो की। आप सिर्फ किसी एक चैनल को लगातार देखते रहे। दो दिन तक उसकी खबरों को लिखते रहे या फिर रिकार्ड करते रहे। फिर आप देखेंगे कि पहले दिन जिस तरह मुंबई रो रही थी उनके शब्दों में अगले दिन वही मुंबई हौसला दिखाती है। कैसे दिखाती है मुंबई अपना हौंसला ये भी जान लीजिये उनके शब्दों में अपना रोज का काम करके। यानि घर में लाशें पड़ी हो और बेटा जाकर दुकान खोल ले तब उसको नालायक बताते है ये लोग-लेकिन वहीं मुंबई के बेमुरौव्वत लोग अपने घर में पड़ी लाशें से बेशर्मी से दूरी बनाते हुए अपने काम पर चलते है रोजाना- ये हौसला है तो वाकई काबिले तारीफ हौसला है। बाकि दुनिया में मैंने कभी नहीं देखा कि ऐसा हौसला कोई दूसरा नहीं दिखाता।
दरअसल ये देश का आतंकवाद के प्रति नजरिया है। जो चाहता है सिर्फ वहीं रोएँ जिनके मर गये है। बाकि के लिए या तो वो बेचारे है, कुछ जिंदा बाईट्स और टीआऱपी है या फिर कुछ के लिए वोट है। अगर मुंबई के लोग एक दिन जिंदगी थाम ले। सड़क पर निकल कर मरने वालों के लिए दो बूंद आंसू बहा दे तो शायद उसको इस का मर्म मिल जाए कि क्यों जूता और जबान एक हो गयी है नेताओं की।
दिग्विजय सिंह के बयान पर नजर डाल लो-सरकार सक्षम थी और उसने बहुत दिन तक आतंकवादियों का मंसूबा फेल रहा। ऐसे में ये विलाप ऐसा ही लगता है जैसे किसी की बेटी के साथ रेप हो जाएँ और वो आदमी इस बात के लिए खुश हो रहा हो कि चलो वो नाना तो बन जाएंगा।
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