Wednesday, December 30, 2009

बहुत निकले वर्दी के गुनाह फिर भी कम निकले

जहरीली हंसी के साथ अदालत से बाहर निकले एसपीएस राठौड़ का वो फ्रेम आज हर उस आदमी के जेहन में जड़ गया जिसने भी टीवी देखा या फिर अखबार पढ़ा। पूरे देश में इस बात को लेकर जैसे एक मुहिम सी छिड़ गयी कि राठौड़ को कड़ी सजा दी जाये। एक बात जो सबको हैरान कर रही है जो खास तौर पर उन लोगों को जो अपराध को कवर करते है वो बात है सरकार और प्रशासन का रवैया। जरूरत से ज्यादा पीडित के साथ दिख रहे है ये लोग। राजनेता हो या फिर पूर्व ब्यूरोक्रेट सब चाहते है कि रूचिका के साथ इंसाफ हो। पब्लिक को लग रहा है कि हां उसकी मुहिम बदलाव ला रही है और सत्ता में बैठे लोग भी भी बदलाव करना चाहते है। लेकिन सालों तक मीडिया में अपराध को कवर करने के बाद मेरा अपना जो अनुभव है वो साफ तौर पर इशारा कर रहा है कि सिस्टम वर्दीवाले गुनाहगारो के खिलाफ उठी एक मुहिम को फिर से विफल कर देना चाहता है पूरे मामले को राठौड़ का रंग देकर। जबकि मामला पूरे अपराधिक न्याय प्रक्रिया से जुड़ा है न कि राठौड़ से।
पूरे देश में शायद ही कोई इज्जतदार आदमी हो जो थाने में जाना पंसद करता हो बिना किसी मजबूरी के। आपको इस बात के हजारों सबूत मिल जायेंगे जिसमें किसी आदमी के घर पुलिस आने का मतलब उस आदमी के लिये बेईज्जती की बात है। देश के लाखों लोग ऐसे है जो थाने में जाकर पुलिस वालों की बदतमीजी का शिकार हुय़े होंगे। पिछले दस सालों से पूरे देश में अपराध के मामले कवर करने के बाद मैं इस बात को अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं अपराधियों के लिये पुलिस वालों से ज्यादा मददगार कोई दूसरा नहीं है। हर आदमी जानता है कि देश में थानों में कैसे दलाली होती है, कैसे कमजोर पीडित की रिपोर्ट के दम पर अपराधियों से पैसे उगाहे जाते है.
कैसे अदालतों में पुलिस के आईओ को याद ही नहीं रहता कि उसने जिस अपराधी को पकड़ा वो ही कठघरे में खडा़ है या नहीं। ऐसे हजारों नहीं लाखों और शायद करोड़ो मामले देश की अदालतों को फाईलों में धूल खा रहे है।
बात अगर मामलों की हो तो मैं ऐसे सैकड़ों मामले गिना सकता हूं जिसमें अपराधी से ज्यादा अपराधी साबित है पुलिस लेकिन उसका कुछ नहीं बिगड़ा।
कुछ मामले मैं आपके सामने रख सकता हूं रूचिका और राजस्थान की मल्ली मीणा मामले की तरह ही ये मामले भी मैंने पांच छह साल पहले टीवी में रिपोर्ट किये थे।
नौशाद नाम के एक अपराधी का दो बार एनंकाउंटर किया गया।
सहारनपुर में एक दो नहीं एक साथ पांच लोगों को एनकाउंटर किया गया और जांच में तत्कालीन एसएसपी हरीशचन्द्र सिंह को आरोपी बनाया गया। रिपोर्ट अभी पैंडिंग है और एसएसपी आज यूपी में आईजी बन चुके है।
हरियाणा के मेवात के फिरोजपुर झिरका थाने में एक रेप हुआ 18 साल की महिला के साथ थानेदार और उसके साथियो ने किया। रिपोर्ट अदालत के आ्देश के बाद हुयी खबर करने के बाद थानेदार की गिरफ्तारी हुयी लेकिन आज वो पूरी टीम बाहर है और पीडित महिला अपने परिवार के साथ घर-परिवार से बाहर जान बचाये घूम रही है।
मेरठ के सरधना इलाके में हुये तीन बेगुनाह लोगों के एऩकाउंटर की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुयी लेकिन बाद में मामला सीबीसीआईडी की फाईळों में घूम रहा है।
मुजफ्फरनगर में एक व्यापारी को हजारो लोगों के सामने अपनी जीप में बैठाकर लूटने औऱ हत्या कर देने वाले पुलिसकर्मियों का मामला भी जांच में गुम है।
इसके अलावा यदि पुलिस वालो की कहानी लिखने लगे तो कम से कम ब्लाग की मेमोरी ही कम पड़ जायेगी।
और प्रशासन जानता है कि इस वक्त पब्लिक सेंटीमेंट का साथ दो फिर मामला ठंडा पड़ने दो औऱ सब चलता रहेगा ऐसे ही जैसे अंग्रेजों के जमाने से चल रहा है यानि कमजोर की जोरो सबकी भाभी और ताकतवर की जोरू सबकी दादी......।

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