Sunday, December 27, 2009

मोहे गोरा रंग दे दे, दूजा रंग मीडिया को न भाये

पिछले दिनों एक अखबार की हैडलाईन पर नजर गड़ गयी। दिल्ली के साउथ इलाके में नये खुले इंटरनेशनल ब्रांड के आईसक्रीम पार्लर ने अपने यहां आने वाले ग्राहको के लिये एक खास किस्म के इंस्ट्रेक्शन जारी किये थे। इंटरनेशनल पासपोर्ट रखने वालो का स्वागत है ये उस लाईन का तर्जुमा है जो उस पार्लर के बोर्ड पर लिखा था। और ये लाईन दिल्ली में छप कर भी पर दुनिया की राजनीति करने वाले अंग्रेजी अखबारों को लगा कि ये तो नस्लवाद है। बात पहली नजर में दिखती भी है। लेकिन एक सेकेंड बाद ही आप को पूरा माजरा समझ में आ सकता है कि जब पूरा देश विदेशी कंपनियों के लिेए अपना जमीर जूते में ले कर खडा हुआ है तो फिर इस बात से कितना हल्ला हो सकता है। बात को यूं भी समझा जा सकता है कि इस खबर का जिक्र किसी हिंदी अखबार ने नहीं किया। पूरे मामले से एक बात जो साफ दिख रही थी कि या तो ये पब्लिशिटी स्टंट है और किसी तेज तर्रार पत्रकार की पार्लर के मीडिया पीआऱ को दी गयी सलाह है कि विवाद खडा कर पेज थ्री के लोगों को बता दो कि आप आ चुके है काले साहबों के लिये एक दम नायाब औऱ अलग सी जगह लेकर या फिर काले साहबों को ये दर्द दे दो कि तमाम क्रीम इस्तेमाल करने के बावजूद एक इंटरनेशनल ब्रांड उनको अग्रेंजों के बराबर नहीं मान रहा है। और इस पार्लर में जाने से उनका दर्जा बढ़ सकता है तो जल्दी ही ये पार्लर ग्राहकों से भर जायेगा।
रही बात रंगभेद की तो आम हिंदुस्तानी की तो वो जाने लेकिन हिंदुस्तानी मीडिया तो रंगभेदी है इस बात के सबूत आपको आसानी से मिल जाएंगे। सिर्फ देश भऱ के अखबारों में छपने वाले विज्ञापनों पर नजर दौड़ाने की देर भऱ है। मैंने खबर पढने के बाद देश के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबारों में छप रहे विज्ञापनों पर निगाह डाली तो मुझे एक भी विज्ञापन में कोई काला रंग का तो छोड़ा श्याम रंग का मॉडल नजर नहीं न आया और न आयी। आप खुद अपने अखबारों में ये देख सकते है कि विज्ञापन घडी का या फिर स्वेटर का हर विज्ञापन में फिरंगी चेहरे मौजूद है। हर और सिर्फ फिरंगी चेहरे। और इस बात को और सरलता से समझने के लिये आपको सिर्फ रीयल स्टेट के विज्ञापनों पर निगाह दौडानी है। हर बिल्डर के ब्रोशर में जो फैमली नजर आ रही है वो विदेशी गोरे है और खेलती फिरंगियों के बच्चे। गार्डन जो सिर्फ ब्राशर में दिखते है उन में उछलते बच्चे, स्वीमिंग पूल जो विज्ञापन में पूरी बिल्डिंग से बडा नजर आता है और मौके पर जाने पर घऱ के बाथरूम से भी छोटा उसके किनारे पर बैठी विदेशी जवान लडकियां और पूल में तैरता कोई एक फिरंगी जोड़ा। अगर आप इससे भी मुतमईन न हो तो एक काले जोड़े का विज्ञापन मुझे जरूर बता दे ताकि मुझे लगे कि मेरी राय गलत है। एक बार मजाक में ही सही एक सहकर्मी ने ऐसे ही एक ब्रोशर को देख कर कहा था कि यार इन गोरो को देखन के लिये मैंने कितने संडे खराब कर इन बिल्डिंगों की खाक छानी है कही कोई विदेशी सूरत नहीं मिली। और वही से मैंने ध्यान दिया कि किसी भी विज्ञापन में देशी सांवले रंग या फिर काले रंग को तरजीह तो दूर की बात है जगह भी नहीं दी जाती हैं। तब मुझे लगता है इंगलिश मीडिया के काले साहबों को कोई बात नहीं चुभती है।
ऐसे में एक पार्लर को लेकर आसमान सिर पर उठाने वालों को मेरा सिर्फ यही सलाह है कि पेड न्यूज सिर्फ राजनीतिक खबरों में नहीं है मेरे भाई अपने मुद्दों पर भी नजर डालों। इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिये सब लोग एंकरों को तो देखते ही हैं भाई.........।

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